दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सरकार के जाने के बाद विधायकों को चार करोड़ का एमएलए फंड बंद करने का उसका फैसला पलटा जा सकता है। दिल्ली के विधायकों को यह फंड वापस मिलने के संकेत हैं। उप-राज्यपाल नजीब जंग ने सरकार के शहरी विकास विभाग से पूछा है कि क्या राष्ट्रपति शासन के दौरान विधायक फंड व पार्षद फंड जारी किया जा सकता है। दरअसल इसके लिए केजरीवाल भी ज्यादा जिम्मेदार हैं। इस्तीफा देने में जल्दबाजी के कारण उनके फैसले दिल्ली में वित्तीय संकट की वजह बन सकते हैं।
गौरतलब है कि केजरीवाल सरकार ने विधायकों व पार्षदों को दी जाने वाली विकास राशि को रोक दिया था। केजरीवाल सरकार में मंत्री मनीष सिसोदिया शुरू से इसके पक्ष में थे। AAP सरकार विकास का काम मोहल्ला सभाओं के माध्यम से करवाना चाहती थी। इसके लिए केजरीवाल सरकार स्वराज बिल लाई थी और और एमएलए व अन्य फंड रद्द कर इसमें 800 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था। इसे कैबिनेट से मंजूरी भी मिल गई थी, लेकिन इसे विधानसभा में पारित करवाने से पहले ही केजरीवाल सरकार ने इस्तीफा दे दिया।
केजरीवाल सरकार अपनी 49 दिनों के कार्यकाल के दौरान मोहल्ला सभाओं का गठन भी नहीं कर पाई थी। इससे स्वराज बिल के लिए दिया गया यह पैसा अटका पड़ा है। इसको देखते हुए अब शहरी विकास विभाग से कहा गया है कि वह बताए कि विधानसभा को निलंबित रखे जाने की सूरत में क्या स्वराज बिल का यह फंड जारी किया जा सकता है अथवा नहीं।
दिल्ली में नई सरकार के गठन की संभावनाओं के मद्देनजर दिल्ली के अगले छह महीने के बजट में इसके लिए भी पैसा रखे जाने का प्रस्ताव है, ताकि अगर अगली सरकार यह फंड जारी रखना चाहे तो इसे उसे दिक्कत न हो। सूत्रों के मुताबिक अगर उप-राज्यपाल की देखरेख में शहर का अंतरिम बजट तैयार किया जाता है तो और इसे संसद मंजूरी दे देती है तो इसकी पूरी संभावना है कि मौजूदा विधायक अगले वित्तीय वर्ष के लिए एमएलए फंड पा सकेंगे। हालांकि आप के 27 विधायक इस फंड को ठुकरा सकते हैं।
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