मौजूदा आर्थिक सुस्ती के माहौल में तीसरा मोर्चा विकास का इंजन नहीं बन सकता हैं। इसकी आहट मात्र से भी अर्थव्यवस्था की बची हुई साख पर प्रश्न चिन्ह लग सकता हैं। इसका सबसे बड़ा कारण होगा मोर्चे के गठबंधन सरकार की महामजबूरी जहाँ सत्ता के एक नहीं अनेक केंद्र होंगे। ऐसे में सरकारी फैसले देश के आर्थिक विकास के हित में नहीं बल्कि पार्टी हित और निजी स्वार्थ के हिसाब से लिए जायेंगे। इसका ताजा उदाहरण है यूपीए-2 के गठबंधन वाली सरकार का कार्यकाल जिसने भ्रष्टाचार वाली महंगाई को पनपने दिया और आम लोगों का जीवन मुश्किल कर दिया।
मौजूदा हालत में देश के विकास के लिए स्थिर और मजबूत सरकार का होना बहुत जरूरी है जबकि इतिहास गवाह रहा है कि तीसरा मोर्चा स्थिर और मजबूत सरकार देने में कामयाब नहीं रहा है। इसलिए वर्त्तमान राजनीतिक परिदृष्य में तीसरे मोर्चे का गठन और उसका सरकार में आना अर्थव्यवस्था को बीमार कर सकता है। यह बिलकुल साफ है की तीसरा मोर्चा गठबंधन नहीं महागठबंधन के सहारे सत्ता में आएगा और इसके जरिये राजनीतिक दल सरकार में अपनी ताकत का प्रदर्शन करते रहेंगे। यह बिलकुल सच है कि गठबंधन की सरकार में तालमेल की कमी होती है। ऐसे में तीसरे मोर्चे के महामजबूरी के खेतों में निजी स्वार्थ की जमकर खेती होगी जिसको सिंचित करेंगे दलाल और लालची उद्योगपति घराने। फलस्वरूप भयंकर महंगाई, बेरोजगारी और लूट खसोट की फसल देश की जनता को काटनी पड़ेगी।
ऐसा नहीं है कि तीसरे मोर्चे को खड़ा करने वाली पार्टियों के राजनेताओं में देश चलाने की क्षमता नहीं है। इनमे से कई सारी पार्टियां प्रादेशिक स्तर अच्छे सरकार और नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन करती आई है लेकिन ज्यादातर लोगों कि राष्ट्रीय छवि नहीं है। तीसरे मोर्चे में ऐसे बहुत कम नेता है जो कई पार्टियों को साथ लेकर चलने का माद्दा रखते हो या उनकी स्वीकार्यता सभी पार्टिओं में सामान रूप से हो। ऐसे में देश के आर्थिक विकास के हित में सर्वसम्मति से फैसले लेने कठिनाई होगी।
---राजीव सिंह---
ईमेल : vittamantra@yahoo.com

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