किसी भी विधानसभा क्षेत्र से कुल कितने विधायक चुने जाते हैं और किसी भी चुनाव में कोई मतदाता कुल कितने वोट डाल सकता है, इन दोनों ही सवालों का एक ही जवाब है कि एक विधानसभा क्षेत्र से केवल एक ही विधायक चुना जा सकता है और कोई भी मतदाता किसी भी चुनाव में अपना केवल एक ही वोट डाल सकता है। ये जवाब बेषक, मौजूदा हालात और वर्तमान निर्वाचन व्यवस्था के मद्देनजर बिलकुल सही है, लेकिन ये हमेषा कतई सही नहीं रहे है।
सभी जानते हैं कि अपना देष 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ और आजादी के बाद प्रथम आम चुनाव सन् 1952 में हुए थे। उस दौरान 1952 तथा उसके बाद हुए 1957 के चुनावों में विदिषा विधानसभा क्षेत्र से एक साथ दो-दो विधायक चुने गए थे। देष के अन्य अनेक क्षेत्रों में भी ऐसा ही हुआ था, क्योंकि तब निर्वाचन प्रावधान था भी वैसा ही। आखिर वैसा क्यों होता था ?
दरअसल, उन प्रारंभिक दो निर्वाचनों में मौजूदा जातिगत आरक्षण निर्धारण नहीं हुआ था। नतीजे में प्रत्येक जिले के किसी एक विधानसभा क्षेत्र से एक अनारक्षित विधायक के साथ एक आरक्षित विधायक अनिवार्य रूप से चुने जाने का नियम था। जब एक क्षेत्र से एक साथ दो विधायक चुने जाते थे तो प्रत्येक मतदाता वोट भी दो ही डालता था। यही वजह रही कि सन 1952 में सम्पन्न विदिषा विधानसभा के चुनाव में डाॅ. जमना प्रसाद मुखरैया ने अनारक्षित हिन्दू महासभा उम्मीदवार के रूप में अनारक्षित कांगे्रसी उम्मीदवार बाबू रामसहाय सक्सेना को पराजित कर विजयश्री का वरण किया थ। तब डाॅ. मुखरैया को 13,669 और बाबू रामसहाय को 12,750 वोट मिले थे। इसी प्रकार उसी चुनाव में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हिन्दू महासभा के उम्मीदवार के रूप में चतुर्भुज जाटव ने कांग्रेसी उम्मीदवार सुन्नूलाल को पराजित किया था। श्री जाटव को 12,452 तथा सुन्नूलाल को 10,889 वोट मिले थे।
विधानानुसार यही व्यवस्था सन 1957 के चुनाव में भी जारी रही, पर उस चुनाव डाॅ. मुखरैया पराजित हुए थे और चतुर्भुज जाटव ने तो चुनाव ही नहीं लड़ा था ? उस चुाव में अनारक्षित कांग्रेसी उम्मीदवार अजय ंिसंह रघुवंषी ने हिन्दू महासभा उम्मीदवार डाॅ. मुखरैया को हराया था। श्री रघुवंषी को 22,545 वोट मिले थे। इसी प्रकार आरक्षित कांग्रेसी उम्मीदवार हीरालाल पिप्पल ने हिन्दू महासभा के प्रत्याषी सुम्मा को पराजित किया था। श्री पिप्पल को 24,753 तथा सुम्मा को 14,754 वोट मिले थे।
देष के अन्य हिस्सों में उपर्युक्त व्यवस्था चाहे 1952 तथा 1957 के दो आम चुनावों तक सीमित रही, पर विदिषा में उस व्यवस्था के अंतर्गत तीन चुनाव हुए थे। सन 1955 में यहां उप चुनाव भी हुआ था। उस चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री बाबू तख्तमल जैन ने हिन्दू महासभा के बृजनारायण बृजेष को पराजित किया था। आरक्षित कांग्रेसी उम्मीदवार हीरालाल पिप्पल ने हिन्दू महासभा के सोमता को हराया था।
उन चुनावों के मतगणना आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि 1952 के चुनाव में डाॅ. मुखरैया ने बाबू रामसहाय को केवल 919 वोटों से हराया था। इसी प्रकार सुन्नूलाल केवल 1563 वोटों से हारे थे। अन्य निर्वाचन परिणाम भी कमोवेष ऐसे ही रहे थे। इसी के साथ बड़ी हकीकत यह है कि उस समय इतने कम वोट पड़ा करते थे, जितने वोटों से आजकल हार-जीत होती है। उस समय मतदाता संख्या तो कम थी ही, साथ ही मतदान में उत्साह भी आज जैसा नहीं रहता था। मसलन, विदिषा विधानसभा के पिछले ही चुनाव में लगभग 30 हजार वोटों के अंतराल से हार-जीत हुई, जबकि 1952, 1955 के मध्यावधि तथा 1957 के आम चुनावों में से किसी भी चुनाव में 30 हजार वोट तो विजेता उम्मीदवार को भी नहीं मिल पाए थे।
---जगदीश शर्मा---
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