जीवन में सफलता पाने के दो रास्ते हैं। एक रास्ता वह है जिसमें हम अपनी बुद्धि और बल पर भरोसा रखें, ईश्वर पर अगाध और अड़िग श्रद्धा रखें तथा सेवा, परोपकार एवं संस्कारों के साथ अपने कर्मयोग में पूर्ण समर्पण के साथ जुटे रहें। यह रास्ता इतना शाश्वत और सत्य भरा है कि इसकी बदौलत जो काम होते हैं वे कालजयी होते हैं और आशातीत व अप्रत्याशित परिणाम प्रदान करने वाले होते हैं। इस माध्यम से जो भी प्राप्त होता है वह विशुद्ध और कल्याणकारी होता है। पर इस मार्ग पर चलना हम जैसे सामान्य लोगों के बस में नहीं है क्योंकि हम ऎषणाओं के दास होते जा रहे हैं और हमारे लिए रोजाना कई सारी इच्छाएं और कल्पनाएं बनी रहती हैं जिन्हें साकार करने की चिन्ता हमें हर पल सताये रखती है।
इस स्थिति में हमें न अपने आप पर भरोसा होता है, न ईश्वर पर। इस हालत में हम भविष्य को लेकर आशंकित, भ्रमित और उद्विग्न रहने की आदत पाल लेते हैं। जब इंसान का अपने आप पर भरोसा नहीं होता तब वह औरों के पीछे पागल होने लगता है और एक बार जब हम छोटा-मोटा पागलपन कर गुजरते हैं तब इसकी ऎसी बुरी आदत पड़ जाती है कि जिंदगी भर इसके बगैर हमारा काम नहीं चल पाता।
भविष्य को सुनहरा बनाने के फेर में हम लोग जिन हरकतों और मार्गों का सहारा लिया करते हैं उनकी बजाय अपने आप पर, अपने कर्म पर भरोसा रखें, पूरी मेहनत करें और ईश्वर पर भरोसा रखें तो हमारे कई सारे काम अपने आप होते चले जाने का जो सुख और सुकून प्राप्त होगा उसकी कल्पना न हम कर सकते हैं, न वे लोग ही, जिन्हें हम बड़े, समृद्ध, वैभवशाली और भाग्यवान मानते हैं।
आजकल हम सभी लोग सफलता के शोर्ट कट तलाशने के आदी हो गए हैं। अध्ययनकाल से ही पाठ्यपुस्तकों की बजाय पासबुक्स का शौक इतना चढ़ा होता है कि हमें हर क्षण उस शोर्ट कट की तलाश रहती है जिसके सहारे हम कम से कम समय में अधिक से अधिक प्राप्त कर लें, और वह भी बिना कुछ परिश्रम के।
हमारी इसी मनोवृत्ति का परिणाम है कि हमारे भीतर का शौर्य-पराक्रम, जिजीविषा, कत्र्तव्यपरायणता और परिश्रम हमसे छिटक कर दूर हो चले हैं और हम पुरुषार्थ से किनारा करते जा रहे हैं। पुरुषार्थ चतुष्टय धर्म, अर्थ, कर्म और मोक्ष का पूरा संतुलन गड़बड़ा गया है और हमारा पूरा का पूरा ध्यान अर्थ पर केन्दि्रत हो गया है। और वो अर्थ भी ऎसा कि जिसका मनुष्य जीवन के लिए कोई अर्थ नहीं है बल्कि यह अर्थ असंतोष और अशांति का जनक हो चला है।
भविष्य को बनाने के लिए जो भी धर्मसंगत व न्यायसंगत कर्म हैं उनमें कभी पीछे नहीं रहना चाहिए लेकिन इसके लिए अपात्रों की जी हूजूरी, चापलुसी और गलत रास्तों का इस्तेमाल करना जायज नहीं है। हम अपने लाभ और भविष्य को देखते हुए ही संबंधों का ताना-बाना बुनते और बिगाड़ते हैं। उगते सूरज की अगवानी और अस्ताचल को जाते सूरज की ओर मुँह फेरने की हमारी पुरानी आदत रही है। हम पूरी जिन्दगी यही करते आ रहे हैं। इसी चक्कर में हम कुछ लोगों को छोड़ते जाते हैं, पुरानों को तिरस्कृत करते जाते हैं और उन सभी नयों-नयों का सामीप्य पाने को लालायित रहते हैं जो आने वाले समय में हमारे काम आ सकते हों।
कई सारे लोगों को यह शंका होनी स्वाभाविक है कि भविष्य बनाने के लिए संभावनाओं और दूसरे सारे रास्तों को खुला न रखें तो जीवन में कभी भी धोखा खा सकते हैं और जब बात अपने भविष्य की है तो यह सोचा लाजमी भी है ही। लेकिन इसका सशक्त आध्यात्मिक पक्ष यह है कि दुनिया में जो सज्जन लोग अच्छे कार्य करते हैं, निष्काम सेवा और परोपकार में डूबे रहते हैं, ईश्वर पर अगाध आस्था रखते हैं उन लोगों के कामों को पूरा करने के लिए ऎसी कई शक्तियां ब्रह्माण्ड में परिभ्रमण करती रहती हैं जिन्हें पात्र और उत्तम विचारों वाले लोगों की तलाश होती है, वहीं ईश्वरीय शक्तियां और आकाशचर सिद्ध भी मदद करने को सदैव समुत्सुक रहते हैं। ऎसे में यदि किसी सज्जन और पवित्र व्यक्ति का जहां कहीं कोई सा कार्य होता है उससे संबंधित व्यक्तियों को ये शक्तियां दिव्य वैचारिक तरंगों के माध्यम से प्रेरित करती हैं और ऎसे अनुकूलतम माहौल का सृजन कर देती हैं जिससे कि अच्छे लोगों के काम अपने आप निकल जाते हैं।
यह कोई नई बात नहीं है, सज्जनों और शुचितापूर्ण व्यक्तियों के लिए ईश्वरीय शक्तियां ऎसे काम कर लिया करती हैं जो हजारों राजपुरुष और पॉवरफुल बड़ी हस्तियां भी मिलकर नहीं कर सकती। एक बार ईश्वरीय और दिव्य मार्ग पर बढ़ चलने की जरूरत भर है फिर सारे काम अपने आप होते चले जाने का वो मार्ग खुल जाएगा कि आशातीत सफलताएं कभी रुके नहीं रुकने वाली।
यह तय मानकर चलें कि अच्छे कामों और अच्छे लोगों के लिए ईश्वरीय ताकत सदैव प्रेरणा का संचार करती है और यह प्रेरणा संचार किसी में भी संभव है, कोई इससे बच नहीं सकता।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com

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