हमारे देष की लगभग 70 प्रतिषत जनसंख्या गांव में निवास करती है। षहरी क्षेत्रों के मुकाबले ग्रामीण इलाकों में समस्याओं की भरमार है। ग्रामीण क्षेत्र आज भी षिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। जम्मू एवं कष्मीर का जि़ला पुंछ सरहद पर होने की वजह से तमाम बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। केंद्र सरकार की सारी कल्याणकारी योजनाएं यहां पहुंचते पहुंचते दम तोड़ देती हैं। राजनेताओं और अधिकारियों के जनता से तमाम वादों के बावजूद तहसील मंडी के अड़ई में बुनियादी सुविधाओं का बड़ा अभाव है। अड़ई पुंछ मुख्यालय से तकरीबन 30 किलोमीटर की दूरी पर दो पहाडि़यों की आगोष में स्थित है। सरकार और आला अधिकारियों की मेहरबानियों से यहां तमाम बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। न जाने यहां की जनता को किस जुर्म की सज़ा मिल रही है। वैसे अड़ई में तमाम बुनियादी सुविधाओं का अभाव है लेकिन यहां सबसे बड़ी परेषानी सड़क की है। मंडी से लोरन होती हुई अड़ई को जाने वाली सड़क का काम 1980 के दषक में षुरू हुआ था जो 24-25 साल का लंबा अर्सा गुज़रने के बाद भी पूरा न हो सका। इस दौरान राजनेता भी जनता से झूठे वादे कर उनका वोट पाते रहे लेकिन अड़ई सड़क से वंचित ही रहा। अचानक 2003-04 में अड़ई को सरकार की ओर कुछ रकम पगडंडी बनाने के लिए मिली। भौगोलिक स्थिति वाले अत्यंत जटिल अड़ई क्षेत्र में पहाड़ों में से जनता के लिए छोटा सा रास्ता निकाल दिया गया। इस रास्ते से यहां की जनता को बहुत आसानी हुई। यही रास्ता बाद में रोड का सर्वेक्षण करने आए इंजीनियर के लिए काफी मददगार साबित हुआ।
2004 के आखिर में दोबारा इस रोड के निर्माण का काम षुरू हुआ लेकिन इस रोड के लिए आए पैसे एक बड़ा हिस्सा ठेकेदारों ने अपनी प्रापर्टी को बढ़ाने में खर्च किया। रोड का निर्माण काम पूरा न हो पाने की वजह से आखिर में इसे प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना के हवाले कर दिया। इस योजना के तहत 2007 में मंडी लोरन रोड पर अड़ाई कठा से लेकर अड़ाई हवेली तक सिर्फ चार किलोमीटर का काम हाथ में लिया गया जो सात साल बाद भी पूरा नहीं हो सका है। इस चार किलोमीटर सड़क पर सिर्फ तारकोल डाली गयी है। पानी की निकासी न होने की वजह से जगह जगह गड्ढे पड़ने लगे हैं, नाली भी नहीं बनाई गई है। इसके अलावा लोगों की जो ज़मीने रोड के दायरे में आ गयीं थीं उनमें से कुछ लोगों को बदले में मुआवज़ा भी नहीं मिला है। हवेली से पीर बहादुर षाह साहिब पीरां तक की सड़क का आगे का चार किलोमीटर तक का काम 2010-11 में षुरू किया गया था। बाद में इस रोड का काम बंद कर दिया गया। इस सड़क के निकलने से गरीब जनता की ज़मीन और फलदार वृक्षों को बहुत नुकसान हुआ, जिससे गरीब आवाम का गुज़र-बसर होता था। अपनी परेषानियों को व्यक्त करते हुए हाफीज़ जलालउद्दीन राथर, मोहम्मद दीन तांतरे और अब्दुल अज़ीज़ राथर आदि मकान मालिक सरकार से अपनी नाराज़गी को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि सड़क के चक्कर में हमारे फलदार वृक्षों, अखरोट के पेड़ों की बहुत बड़ी तादाद बर्बाद कर दी गई लेकिन सड़क निर्माण का काम अभी भी पूरा नहीं हो सका है। इसके अलावा सड़क के दायरे में आने वाले आवासीय मकानों के मालिकों को काफी नुकसान हुआ है। लेकिन हम गरीबों की कोई सुनने वाला ही नहीं है। न तो सड़क निर्माण का काम पूरा किया जा रहा है और न ही हमें हमारे मकानों के बदले मुआवज़ा दिया जा रहा है।
वहीं अड़ई की दूसरी पंचायत अड़ई मलकां को तमाम बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखा गया है। यहां की स्थिति को देखकर आज़ादी से पहले की याद ताज़ा हो जाती है क्योंकि विकास के नाम पर इस पंचायत को आज तक कुछ भी नहीं मिला है। आज के आधुनिक दौर में किसी क्षेत्र के विकास और खुषहाली के लिए सड़क एक रीढ़ की हड्डी की तरह है। रोड न होने की वजह अड़ई में चिकित्सा सुविधाओं की हालत भी बदतर है। बीमार होने पर यहां के लोगों को आनन फानन में मंडी ले जाना पड़ता है। मरीज़ की हालात ज़्यादा खराब होने पर हर साल तकरीबन तीन से चार लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। सड़क न होने की वजह से यहां के स्कूलों में अध्यापकों की उपस्थिति बहुत कम रहती है जिससे छात्र-छात्राओं का भविश्य भी बर्बाद हो रहा है। यहां के छात्र-छात्राओं को स्कूल जाने के लिए 18 किलोमीटर का सफर रोज़ करना पड़ता है। थके हारे इन स्कूली बच्चों का सारा समय आने जाने में ही बर्बाद हो रहा है जिसकी वजह से यह बच्चे परीक्षा में भी अच्छे नंबर हासिल नहीं कर पाते हैं। इससे मायूस होकर यहां के बच्चे अपने तालीमी सफर को पीछे छोड़ते हुए अपना भविश्य ताक पर रखकर रोज़ी रोटी के लिए कुछ काम धंधे की तलाष में लग जाते हैं। अड़ई मलकां पंचायत में सड़क का न होना यहां की जनता की बदकिस्मती के साथ साथ सरकार और स्थानीय अधिकारियों की लापरवाही करार दी जा सकती है। पंचायत मलकां में अगर सड़क होती तो यहां के बच्चे भी देष के दूसरे बच्चों के साथ मिलकर अपने देष के साथ साथ गांव का नाम भी रोषन करते। सड़क से दूसरे षहरों से तालमेल बढ़ता है जिससे ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों की जिंदगी बेहतर होती है। मोदी सरकार के साथ ही अच्छे दिन की षुरूआत हो चुकी हैै। अब देखना यह है कि अड़ई गांव के लोगों के अच्छे दिन आते हैं या नहीं। वैसे यहां के लोगों को मोदी सरकार से बहुत आषा है। देखना यह है कि सरकार इनकी उम्मीदों पर कितना खरा उतर पाती है।
मकसूद अहमद लोन
(चरखा फीचर्स)

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