सोशल मीडिया बना बसपा का नया मंच - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 26 जुलाई 2014

सोशल मीडिया बना बसपा का नया मंच

bahujan samajwadi party on social media
उत्तर प्रदेश की सत्ता गंवाने और लोकसभा चुनाव में राज्य की एक भी सीट हासिल न कर पाने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती को इस बात का अहसास होने लगा है कि पार्टी जनता से दूर होती जा रही है और यही वजह है कि मायावती तथा उनके प्रमुख सिपहसालार अब पार्टी को जनता के करीब लाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। मायावती ने फैसला किया है कि बसपा नेता हर मंच का इस्तेमाल करेंगे, मीडिया से दूरी नहीं रखेंगे और सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक और यू-ट्यूब) पर पार्टी का पक्ष तत्काल रखा जाएगा। 

सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ शरद मिश्र सोशल मीडिया पर बसपा के पहुंचने को मायावती की मजबूरी बता रहे हैं। उनके अनुसार, मायावती अपना संदेश जनता तक पहुंचाना चाहती हैं और यह समझ गई हैं कि सोशल मीडिया ही उनकी इस मंशा को पूरा कर सकता है। उन्हें अहसास हुआ है कि सोशल मीडिया के मंच पर पहुंचने में उनकी पार्टी कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और अन्य दलों से पीछे छूट गई है। बसपा महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने अपने फेसबुक अकाउंट पर पूर्ववर्ती मायावती सरकार की उपलब्धियों का बखान करते हुए अखिलेश सरकार के कामकाज पर जनता की राय लेने का अभियान शुरू किया है। पार्टी में उनके खास कहे जाने वाले सांसद बृजेश पाठक भी फेसबुक पर अपने समर्थकों को 'गुडमार्निग' कहने लगे हैं। वह पार्टी के नारे भी अपने अकांउट पर चस्पा करते हैं।

सोशल मीडिया पर बसपा की इस आमद ने लोगों को आश्चर्य में डाल दिया है, क्योंकि अपनी स्थापना के समय से ही बसपा नेताओं की मीडिया से नहीं बनी। हाल के लोकसभा चुनाव तक मायावती मीडिया को मनुवादी बताती रही हैं। पार्टी के संस्थापक कांशीराम भी कहते थे, "हमारा वोटर अखबार नहीं पढ़ता।" संभवत: इसी सोच के तहत मायावती ने मुख्यमंत्री रहते हुए किसी भी अखबार और चैनल को कोई इंटरव्यू नहीं दिया। सत्ता के बाहर होने के बाद भी उनका यह रुख कायम रहा। सच तो यह है कि मीडिया से मायावती की दूरी को देख पार्टी के अन्य नेता भी किसी मुद्दे पर प्रतिक्रिया देने से बचते रहे। नतीजा यह कि अहम राजनीतिक मुद्दों पर भी बसपा का विचार लोगों तक पहुंच नहीं पाता था।

लगातार बदल रहे समाज में त्वरित प्रक्रिया 'जन संपर्क' बढ़ाती है। मगर बसपा ने इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया और लोकसभा चुनाव में मायावती इस मामले में मात खा गईं। इसके बाद वह समझ गईं कि पार्टी से जनता को जोड़े बिना कुछ होने वाला नहीं है। जनता को अपने साथ जोड़ने के लिए मीडिया का साथ और सोशल मीडिया पर पार्टी की मौजूदगी जरूरी है। यह समझ में आते ही मायावती ने प्रमुख नेताओं को सोशल मीडिया पर पार्टी के विचार उजागर करने की छूट दे दी। पार्टी प्रमुख से मिली इस छूट के तहत बसपा महासचिव सतीश चंद्र मिश्र अब अपने फेसबुक अकाउंट के जरिए जनता से पूछ रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में बेहतर शासन कौन कर सकता है? मायावती या अखिलेश यादव? मिश्र के इस सवाल पर लगभग 900 लोगों ने मिश्रित प्रतिक्रिया दी है। 

बसपा नेता ने अपने इस अकाउंट पर यह भी बताया कि मायावती ने अपने शासन काल में ऊर्जा की खपत को ध्यान में रखते हुए और विद्युत वितरण प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए क्या महत्वपूर्ण निर्णय लिए थे। गरीबी की रेखा के नीचे के लोगों को बेहतर चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराने के लिए क्या कदम मायावती सरकार में उठाए गए थे। अखिलेश सरकार द्वारा प्राथमिक स्कूलों के बच्चों को स्कूल बैग और यूनीफार्म देने संबंधी निर्णय का संज्ञान लेते हुए मिश्र ने फेसबुक पेज पर दावा किया कि मायावती सरकार में करीब तीन करोड़ बच्चियों को नि:शुल्क ड्रेस उपलब्ध कराई गई थी। यूपीएसआरटीसी की बसों के संचालन के लिए कंप्यूटर की जो मदद ली जा रही है उसकी शुरुआत मायावती के शासन में ही हो गई थी। 

बसपा महासचिव ने अपने फेसबुक अकाउंट पर अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के प्रति आक्रमक रुख नहीं दिखाया है। माना जा रहा है कि मायावती के निर्देश पर जल्दी ही मोदी के 'अच्छे दिन' वाले वादे पर तंज कसे जाएंगे। तब तक मिश्र मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के शासन की खामियों को फेसबुक पर उजागर करते रहेंगे।

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