अतिआत्मविश्वास व मोदी जीत के खुमार ने किया भाजपा का बंटाधार - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 26 जुलाई 2014

अतिआत्मविश्वास व मोदी जीत के खुमार ने किया भाजपा का बंटाधार

tirath singh rawat
देहरादून, 26 जुलाई (राजेन्द्र जोशी)। मोदी की जीत के जश्न में डूबी भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश में विधानसभा उप चुनाव में खुद ही अपना बंटाधार किया। इसके लिए जहां पार्टी के बड़े नेता जिम्मेदार हैं वहीं इस हार की सीधे जिम्मेदारी से प्रदेश अध्यक्ष तीरथ सिह रावत भी नहीं बच सकते। वहीं दो माह पूर्व संसद में गये सांसदों के हाथ भी इस हार से निकली ज्वाला में झुलस सकते हैं। 

भाजपा ने खुद ही धारचूला में कांग्रेस को वॉक ओवर देने जैसी स्थिति पैदा कर दी तो सोमेश्वर व डोईवाला में पार्टी ने अपने ही पैर पर खुद ही कल्हाड़ी मार ली। अल्मोड़ा सांसद के भ्रातृ प्रेम के चलते रेखा आर्य को कांग्रेस में जाने दिया और सांसदों के अपनों को टिकट दिये जाने को लेकर मचे घमासान के बीच त्रिवेंद्र के टिकट को लेकर अंत समय तमाशा किया जाता रहा। वहीं मोदी लहर की खुमारी में डूबे भाजपाइयों को तीन सीटों के उप-चुनाव ने दूर कर दिया। रणनीतिक और सांगठनिक तौर पर प्रदेश भाजपा इस इम्तिहान में फेल हो गई। धारचूला में सीएम हरीश रावत के सामने पूर्व ब्लॉक प्रमुख बीडी जोशी को उतारकर पार्टी अपने प्रत्याशी को भूल गई।

 प्रदेश अध्यक्ष तीरथ सिंह रावत केवल एक बार धारचूला गए। तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों व किसी केंद्रीय नेता के एजेंडे में धारचूला नहीं था। ऋषिकेश में प्रदेश प्रभारी राधा मोहन सिंह की मौजूदगी में हुई बैठक में डोईवाला को लेकर शुरू हुई तकरार का असर चुनाव परिणामों के आने के बाद तक साफ दिखायी दिया। पूर्व सीएम निशंक इस सीट से रुचि भट्ट व पूर्व सीएम बीसी खंडूड़ी यहां से सौरभ थपलियाल को टिकट दिलाना चाहते थे।

 तब स्थिति ज्यादा खराब हुई जब धारचूला व सोमेश्वर के नाम घोषित कर डोईवाला में त्रिवेंद्र रावत के नाम को लटका दिया गया। बीसी खंडूड़ी तो पत्नी की बीमारी के चलते नहीं आ सके लेकिन निशंक केवल एक दिन आए और चले गए। उधर, पंचायत की राजनीति से जुड़े एक सांसद का बड़ा गुट पार्टी प्रत्याशी को हराने में लगा रहा। बस ये सब कारण त्रिवेंद्र की हार की इबारत लिख गए।सोमेश्वर में भी भाजपा ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया। पहले रेखा आर्य को लोकसभा के टिकट के लिए उलझाए रखा, बाद में उप-चुनाव के लिए आश्वस्त कर दिया और फिर हाथ खड़े कर दिए। क्योकि यहां से भाजपा संासद अपने भाई को चुनाव लड़वाना चाहते थे। यही कारण रहा कि काफी इंतजार के बाद रेखा कांग्रेस में चली गई। भाजपाई जानते थे कि रेखा दमदार प्रत्याशी है। क्योंकि पिछले विधान सभा चुनाव में बतौर निर्दलीय मात्र ढाई हजार वोटों से हारी थी। यह सब जानते हुए भी रेखा आर्य को कांग्रेस में जाने दिया। उधर, अल्मोड़ा सांसद अजय टम्टा भी रेखा के खिलाफ थे और उन्होंने बहुत दिल से चुनाव में काम नहीं किया। 

प्रदेश में हुए उपचुनाव में भाजपा का प्रदेश संगठन तो पूरी तरह नकारा साबित हुआ लेकिन जिन विधायकों के सांसद निर्वाचित होने से इन सीटों पर उपचुनाव हुआ उनकी अहमियत को भी जनता ने नकार दिया। डोईवाला सीट से लोस प्रत्याशी रमेश पोखरियाल निशंक को 20 हजार से ज्यादा मतों की लीड मिली थी और अजय टम्टा सोमेश्वर से छह हजार से भी ज्यादा मतों से जीते थे। लेकिन दो महीने में ही कहानी पलट गई। इससे साफ हो गया है कि उपचुनाव में न मोदी की जीत का खुमार भाजपा को ले डूबा और साथ ही संगठन पर भी सवालिया निशान छोड़ गया।  

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