जानेमाने भारतीय संगीतज्ञ मोहन नाडकर्णी का मंगलवार को न्यूजीलैंड के ऑकलैंड में निधन हो गया। वह 91 साल के थे। नाडकर्णी के बेटे देव ने बुधवार सुबह फोन पर आईएएनएस को बताया, "उन्हें कुछ दिनों से सीने में संक्रमण था, जो ठीक नहीं हो पाया था। पिछले करीब दो साल से उन्हें बढ़ती उम्र संबंधी समस्याएं हो रही थीं, जिसके कारण उन्हें चलने-फिरने में समस्या होती थी, लेकिन वह मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ थे।"
नाडकर्णी के परिवार में उनकी पत्नी सुनीति और एक बेटा देव है, जो कि लेखक है। वे न्यूजीलैंड में रहते हैं। नाडकर्णी का अंतिम संस्कार बुधवार सुबह हुआ। नाडकर्णी पांच दशक से ज्यादा समय तक 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' के लिए संगीत समीक्षा करते रहे। 1948 से 2000 तक उन्होंने हजारों संगीत कार्यक्रमों एवं गायकों की समीक्षाएं की।
संगीत की औपचारिक शिक्षा लेने वाले नाडकर्णी को रागों की गहरी समझ थी और वह घंटों स्वाध्याय करते थे जिसके कारण वह आधिकारिक लेखक, संगीत स्तंभकार और सम्मानित संगीत समीक्षक बने। उन्होंने आकाशवाणी और दूरदर्शन में भी काम किया और देश-विदेश में हिंदुस्तानी संगीत पर भाषण भी दिए थे।
उन्होंने भारतीय और विदेशी प्रकाशनों के लिए हिंदुस्तानी संगीत, मराठी और संस्कृत नाटकों पर 4,000 से अधिक लेख और समीक्षाएं लिखी। नाडकर्णी ने पंडित रवि शंकर, उस्ताद अली अकबर खान, उस्ताद फजल कुरैशी, उस्ताद अल्ला रक्खा और उस्ताद जाकिर हुसैन जैसे कलाकारों के संगीत समारोह और प्रस्तुतियों पर समीक्षाएं लिखी।
उन्होंने पंडित भीमसेन जोशी की जीवनी सहित हिंदुस्तानी संगीत पर बहुत-सी किताबें लिखीं। कर्नाटक सरकार के 'कलाश्री पुरस्कार' सहित कई राज्यों ने उन्हें सम्मानित किया। वह संगीत अनुसंधान अकादमी, कोलकाता के स्थायी सदस्य थे। उन्होंने अपना पूरा संगीत संग्रह, दुर्लभ तस्वीरें, लेख और अन्य रिकॉर्ड एसएनडीटी विश्वविद्यालय, पुणे के संगीत विभाग को दान कर दी थी।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें