राष्ट्रपति डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने शिक्षक समाज को सम्मान दिलाया- - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 5 सितंबर 2014

राष्ट्रपति डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने शिक्षक समाज को सम्मान दिलाया-

teachers-day
शिक्षक दिवस गुरू की महत्ता बताने वाला प्रमुख्य दिवस है । भारत में शिक्षक दिवस पेत्येक बर्ष 5 सितम्बर को ही मनाया जाता है ।  शिक्षक का समाज में आदारणीय व सम्माननीय स्थान होता है ।  भारत के व्दितीय राष्ट्रपति डाॅक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस और उनकी स्मृति के उपलक्ष्य में मनाया जाने बाला शिक्षक दिवस एक पर्व की तरह है, जो शिक्षक समुदाय के मान-सम्मान को बढ़ाता है । शिक्षक उस समान है, जो एक बगींचे को भिन्न-भिन्न रूप-रंग के बृक्षों,पौधों को लगाकर उनमें उगने बाले फूल-फलों को उगाकर स्वयं खुषी होकर समाज व देष को खुषी, सुखी व विकाष से जोड़ता है । शिक्षक बच्चों के मन व विचारों को परिवर्तन करते हुये उन्हे काॅटों पर भी मुस्कुराकर चलने को प्रेात्साहित करने का साहक रखता है । गुरू-षिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है , जिसके कई स्वर्णिम उदाहरण इतिहास में दर्ज हैं । भारतीय संस्कृति के इतिहास में गुरू एवं षिष्य के पवित्र रिष्ते चले आ रहे है । संत तुलसीदास जी ने अपने महाकाब्य ग्रन्थ श्री राम चरित मानस में लिखा है कि गुरू ग्रह पढ़न गये रघुराई ।  अल्प काल षिक्षा सब पाई ।। साथ ही उन्होने लिखा कि -गुरू विनु ज्ञान कहाॅ जग माही ....? बिना गुरू के किसी को ज्ञान प्राप्त नही होता है । गुरू षिक्षक से जीवन का उपहार षिक्षा ग्रहण करने के लिए उनके आश्रम या आवास पर जाने की प्रथा प्राचीन है लेकिन षिक्षा के बदले दान देने की प्रथाये थी बर्तमान में परितोषिक स्वरूप धन दिया जाता है । 

हम और आप बचपन से ही पूर्व राष्ट्रपति डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जन्म तिथि 5 सितम्बर को षिक्षक दिवस के रूपमें मनाते आ रहे है अंग्रेजी में टीचर्स डे कहा जाता है । संसार के सभी देषों में टीचर्स डे को किसी न किसी रूप मे स्वीकार किया गया है तथा विभिन्न तिथियों में स्वीकार किया है ।  संतों, साधुओं, अध्यात्मिकता से जुड़े लोग गुरू पूर्णिमा मनाते है । इसलिए कहीं न कहीं गुरू षिष्य की परम्परायें अनादि काल से चली आ रही है । वैज्ञानिक युग, भौतिकवादी युग में एक षिक्षक प्रजातंत्र के सर्वोपरि सर्वोच्च स्थान राष्ट्रपति के पद पर पहुॅच जाने के कारण उसको कानूनी रूप  से संविधान में उच्च स्थान दिया गया है जिसका श्रेय राष्ट्रपति डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को गया । इस कारण 5 सितम्बर उनके जन्म दिवस से इस दिन की पवित्रता को संस्कृति में उच्च स्थान मिला है । षिक्षक को अध्यापक की उपाधि मिली है अध्यापक राष्ट्र की प्रथम आधार षिला मानी जा सकती है क्योकि एक अध्यापक ही राष्ट्र के निमार्ण के लिए माली बनकर बच्चेंा को पौधा की तरह पालन पोषण देख -रेख सींच कर बृक्ष तैयार कर देता है । बच्चें माॅ-बाप से अधिक अपने टीचर्स, षिक्षक, गुरू, अध्यापक, संत, महापुरूषों की विचारों एवं उनकी वाणी पर विष्वास करते है । उत्तम षिक्षा, योग्य षिक्षक और अनुसासित षिक्षर्थी ही संस्कारित, सुसभ्य और स्वच्छ-स्वस्थ समाज का निर्माण करने में सामथ्र्य होता है । संस्कृति का उदग्म ही श्रेष्ठ संस्कारों के गर्भ से होता है जिससे सामाजिक गतिबिधियों  को सांस्कृतिक ष्षक्ति एवं संवल प्राप्त हो जाता है । भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द मोदी जी ने षिक्षक दिवस के अवसर पर पूरे देष की षिक्षण संस्थाओं में षिक्षक दिवस राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाने का ऐलान किया, जो भारतीय संस्कृति की संरचना का बचाने के लिए मील का पत्थर साबित होगा । 
              
संतों एवं महापुरूषों का जहां जन्म होता है, वह जन्म भूमि पवित्रता की श्रेणी में आ जाती है, जहां जहां संत-महापुरूष निवास करते है या उनके जीवन के अध्ययन करने के स्थान एवं अंत में उनकी मृत्यू के बाद उनके संस्कारों के स्थान पवित्रता के प्रतीक बनकर समाज वे देष के लिए स्मारक बनकर प्रेरणा देने बाले हो जाते है । प्रत्येक मानव - व्यक्ति को अपनी अंतर आत्मा, आत्मषक्ति, में परमपिता के दर्षन करना चाहिए साथ ही अच्छे बुरे कर्मो का विषलेषण करते हुये मानव जीवन जीने की कला एवं आनंद का ग्रहण करने का हर पल, हर क्षण प्रयास जारी रखना चाहिए । मन की चंचलता एवं विलक्षणता के कारण मानव की करनी एवं कथनी को बिखरने में पल नही लगता है । इसलिए मन की बागडोर आत्मा के सारथी को सौंप कर ही प्रत्येक कार्य करना चािहए । 

लेकिन बर्तमान समय में कई ऐसे लोग भी है, जो अपने अनैतिक चरित्र, कारनामों और लालची स्वभाव के कारण षिक्षक समाज में कंलकित भी कर आघात पहुॅचाने में भी पीछे नही है । षिक्षा सभ्यता का प्रतीक ष्षव्द को बर्तमान में व्यापार समझकर बैचा जाने लगा है । ऐसे षिक्षकों को छात्र/छात्रायें या षिष्य भी अपने जीवन में गुरू का स्थान नही दे पाते है । जिस कारण षिक्षक को आर्थिक लाभ तो प्राप्त हो सकता है लेकिन सम्मान नही । 





santosh gangele

-लेंखक-
---संतोष गंगेले---
प्रान्तीय अध्यक्ष प्रेस क्लब म.प्र.
सम्पर्क नं0 9893196874           

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