विशेष आलेख : भाजपा के प्रति साफ्ट कार्नर का एक और सबूत - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 12 दिसंबर 2014

विशेष आलेख : भाजपा के प्रति साफ्ट कार्नर का एक और सबूत

एक फिल्मी गीत का मुखड़ा है लाख छुपाएं मगर दुनिया को पता चल जाएगा। समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह की ऊपर से भाजपा पर गरजने बरसने और अंदर ही अंदर प्रीति बढ़ाने की नीति को लेकर यह गीत एक दम मौजू लगता है। एक समय था जब मुलायम सिंह अपने आपको सांप्रदायिकता विरोधी राजनीति का चैंपियन साबित करने के लिए केेंद्र में अपनी ही पार्टी की सरकार के अस्तित्व को दांव पर लगाने में नहींचूके थे। 1990 में उनकी सद्भावना रैलियों ने दुर्भावना फैलाकर शहरी पार्टी मानी जाने वाली भाजपा के नाम से गांव-गांव तक जनजीवन को न केवल परिचित करा दिया बल्कि क्रिया की प्रतिक्रिया के सिद्धांत के तहत लोगों में हिंदुत्व और भाजपा के प्रति अपनत्व भी पैदा कर दिया। मुस्लिम मुद्दों पर उनके आक्रामक रुख के कारण यह भ्रम बराबर बना रहा कि वे सांप्रदायिकता विरोधी राजनीति के कट्टर अगुवा हैं। हालांकि अयोध्या में बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद इसके लिए कुछ हद तक जिम्मेदार नरसिंहा राव सरकार को जमाए रखने में जब उन्होंने अपना योगदान किया तभी उनकी नीयत संदेह के घेरे में आ गई थी। आज भी मुलायम सिंह नरसिंहा राव के प्रशंसक हैं। नरसिंहा राव ही क्या वे तो लालकृष्ण आडवाणी तक को अपना प्रेरणास्रोत कह चुके हैं। कल्याण सिंह के साथ उनके द्वारा किया गया गठबंधन अनायास नहीं था बल्कि यह उनकी सैद्धांतिक फिसलन और अवसरवादी राजनीति की ही स्वाभाविक परिणति थी। हालांकि यह गठबंधन उन्हें चुनाव में बहुत भारी पड़ा और जब उनको सत्ता गंवानी पड़ी तो वे फिर मुस्लिम परस्ती के अपने अवतार में लौट आए। मुलायम सिंह अपने बारे में जनमत को भ्रमित रखने में माहिर हैं इसी वजह से जब उन्होंने लोक दल परिवार को एकजुट करके इन शक्तियों के सम्वेत और नए दल के गठन का निश्चय व्यक्त किया तो राजनीतिक प्रेक्षक इस भुलावे में आ गए कि मुलायम सिंह का यह उपक्रम उनके द्वारा पूरी ताकत के साथ मोदी के खिलाफ मोर्चा तैयार करने का उपक्रम है। सांप्रदायकिता विरोधी राजनीति के मुलायम सिंह स्वयंभू चैंपियन हैं जिसके कारण उनके कदम को लेकर ऐसा आंकलन लगाया जाना कच्ची राजनीतिक समझदारी वाले प्रेक्षकों के लिए लाजिमी था लेकिन जनता दल के समय से ही मुलायम सिंह की नीति रही है कि कम से कम उत्तर प्रदेश में तो भाजपा विरोधी राजनीति पर उनकी इजारेदारी हो जाए। इसके बाद उनको अंदरखाने में भाजपा की निभाने में भी हानि नहीं होगी। जनता दल के समय ऐसा नहीं हो पा रहा था। उनके द्वारा जनता दल के विभाजन की परिस्थितियां उत्पन्न करने की यही मुख्य वजह थी। आज भी मुलायम सिंह की नजर उत्तर प्रदेश में भाजपा विरोधी राजनीतिक धरातल पर अपना एकछत्र कब्जा कायम करना है। इस लक्ष्य में उनकी प्रतिद्वंद्विता भाजपा से न होकर बसपा से है। अगर बसपा अप्रासंगिक हो जाए तो मुलायम सिंह का मंसूबा आसानी से सध जाएगा इसलिए मेरा बार-बार कहना है कि लोक दल परिवार की एकता की आड़ में मुलायम सिंह द्वारा यही खेल खेला जा रहा है।

साध्वी निरंजन ज्योति के आपत्तिजनक बयान के मामले में जिस तरह से मुलायम सिंह ने कांग्रेस को गच्चा दिया और इसके बाद राज्य सभा में कांग्रेस अपने कदम पीछे खींचने को मजबूर हुई उसी से यह जाहिर हो गया था कि मुलायम सिंह भाजपा से कोई लड़ाई नहीं लडऩा चाहते। इस आंकलन को पुष्ट करने के लिए मुलायम सिंह लगातार दूरंदेशी प्रेक्षकों को सुबूत देते जा रहे हैं। तृणमूल कांग्रेस कल्याण बनर्जी के मोदी के मामले में बयान को लेकर उन्होंने भाजपा का खुलेआम पक्ष समर्थन किया जो गौरतलब है। मुलायम सिंह ने दुहाई दी कि राजनीतिक मतभेद अलग हैं लेकिन उनकी पार्टी प्रधानमंत्री के लिए व्यक्तिगत रूप से अभद्र टिप्पणी को बर्दाश्त नहीं करेगी। मुलायम सिंह का रुख संसदीय मर्यादाओं को बचाए रखने के दृष्टिकोण से एकदम उचित है लेकिन उनका प्रीवियस रिकार्ड यह नहीं बताता कि उन्होंने पहले कभी इसकी परवाह की है बल्कि इस समय भी उनके बेटे की सरकार के नगर विकास मंत्री मो. आजम खान भाजपा और आरएसएस के नेताओं पर जिस तरह के कमेंट करते हैं वे तो कल्याण बनर्जी द्वारा की गई टिप्पणियों से हजार गुना ज्यादा आपत्तिजनक हैं। इसे लेकर बार-बार उनसे मांग होती रही है कि वे मो. आजम खान को इस तरह की बयानबाजी करने से रोकेें और पूर्व में दिए गए बयानों को लेकर माफी मांगने को कहें पर मुलायम सिंह ने इस पर ध्यान तक नहीं दिया। अचानक मुलायम सिंह को राजनीति में मर्यादा की फिक्र क्यों हो आई। मुलायम सिंह अगर वास्तव में भाजपा के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर कोई सशक्त मोर्चा बनाने की तैयारी कर रहे होते तब भी वे ममता बनर्जी को साथ लाने के लिए कल्याण बनर्जी को चेतावनी देने की बजाय उनका प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन ही करते। वास्तव में न तो मुलायम सिंह ममता बनर्जी से साथ जुडऩे की उत्सुकता दिखा रहे हैं और न ही वाम दलों और न ही बीजू पटनायक, चंद्रबाबू नायडू, जयललिता या करुणानिधि को अपने साथ जोडऩे में उन्होंने दिलचस्पी ली है। इससे भी उनकी मंशा स्पष्ट है। आगरा में 57 मुस्लिम परिवारों के विवादास्पद शुद्धिकरण के मामले में भी वे वहां के बजरंग दल व धर्म जागरण मंच के नेताओं के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई अपने बेटे की प्रदेश सरकार से करा रहे हैं। मुलायम सिंह के इस रुख से भाजपा भी काफी राहत में है और इसी कारण फिलहाल राज्यपाल ने राज्य सरकार के विरोध में अपनी बयानबाजी को संतुलित कर लिया है।





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के पी सिंह 
ओरई 

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