अगर जोरजबरदस्ती हुआ भी तो इस दौरान कहां था प्रशासनिक अमला। क्या कर रही थी अखिलेश यादव की पुलिस, खुफिया तंत्र, एलआईयू आदि। कहा यह भी जा रहा है कि उन्हें लालच दिया गया वह भी बीपीएल कार्ड, आधार कार्ड बनाने का या अन्य। मतलब साफ है अखिलेश सरकार समाज के अंतिम व्यक्ति को कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं दे पा रही है। सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान पर आम आदमी नहीं पहुंच पा रहा है। तभी तो लोग हजार-दो हजार, करोड़ दो करोड़ नहीं बल्कि सरकार की उपेक्षा से आजिज आकर मात्र बीपीएल व आधार कार्ड के लालच में ही धर्म परिवर्तन करने को विवश है।
ताजनगरी आगरा में धर्मांतरण को लेकर हायतौबा मचना लाजिमी है। बेशक धर्म चाहे कोई भी किसी का जबरन या लालच देकर धर्म परिवर्तन नहीं कराया जा सकता। अगर कोई कराता है तो वह जूर्म है। लेकिन यहां सवाल यह है कि आगरा में जो कुछ हुआ वह आनन-फानन में नहीं बल्कि पूरे इंतजमात के बीच हुआ। मिनट दो मिनट नहीं बल्कि पूरे पांच घंटे की तैयारी के बीच हुआ। मीडिया से लगायत हर आम-ओ-खास की जानकारी में हुआ तो फिर इसमें जोरजबरदस्ती की बात कहा से आ गया। इनसब कहानी को रचने व लोगों को तैयार करने में दो-चार दिन का वक्त लगा होगा। अगर जोरजबरदस्ती हुआ भी तो इस दौरान कहां था प्रशासनिक अमला। क्या कर रही थी अखिलेश यादव की पुलिस, खुफिया तंत्र, एलआईयू आदि। कहा यह भी जा रहा है कि उन्हें लालच दिया गया वह भी बीपीएल कार्ड, आधार कार्ड बनाने का या अन्य। मतलब साफ है अखिलेश सरकार समाज के अंतिम व्यक्ति को कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं दे पा रही है। सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान पर आम आदमी नहीं पहुंच पा रहा है। तभी तो लोग हजार-दो हजार, करोड़ दो करोड़ नहीं बल्कि सरकार की उपेक्षा से आजिज आकर मात्र बीपीएल व आधार कार्ड के लालच में ही धर्म परिवर्तन करने को विवश है। जबकि मुस्लिम धर्म गुरुओं की मानें तो परिस्थितियां चाहे जो भी हो अगर धर्म परिवर्तन हुआ तो गरीबी ही प्रमुख समस्या जान पड़ती है, जो क्षणिक लाभ के लिए ऐसा किया प्रतीत हो रहा है।
देश में धर्मांतरण के नाम पर जिस तरह का खेल चल रहा है वह वाकई देश की एकता को खतरा पहुंचा सकता है. धर्म के नाम पर उग्र हो रही राजनीति का क्या है कारण कि सड़क से संसद तक आज इसी युद्ध की गूंज सुनाई दे रही है। धर्म जो बुनियादी तौर पर शांति का संकेत देता है वह अब संग्राम का सबब बनता दिख रहा है। फिरहाल संग्राम सियासी है मगर इसके पीछे साजिशों की जो सुगबुगाहट सुनाई दे रहा है वह पूरे मामले को नया रंग दे रहा है। आगरा में धर्मांतरण मामले के बाद जिस तरह मामला तूल पकड़ता जा रहा है वह देश के लिए खतरे का संकेत भी है। सवाल उठता है कि ऐ किस मुकाम पर आ खड़ी हुई है देश की सियासत। सड़क से लेकर संसद तक सियासी बहस का ये मुद्दा किसने बदल दी। जिस देश का संविधान अपना धर्म चुनने और उसके साथ पूरी आजादी से जीने का हक देता है उसकी सबसे बड़ी पंचायत के बीच बहस में वही मजहब कहां आ गयी। संसद में विपक्ष के हमले के बीच सरकार की सांस फूलती दिखी। जवाब में कहा जा रहा है कि यह राज्य का मामला है तो यूपी सरकार कह रही है कि अगर यह फोर्स कनर्वजन होगा तो इस मामले में किसी को भी बख्शा नहीं जायेगा। इन तीन बयानों से धर्म परिवर्तन की पूरी सियासत साफ दिख रही है। इस रुख में बहस जो छिड़ी है तो कहां तक पहुंचेगी कहना मुश्किल है क्यूंकि ईमान की बात कोई कर ही नहीं रहा तो फिर कोई अंदाजा भी क्या लगाएं। कायदे से धर्म और सियासत नदी के वो दो किनारे की तरह होेने चाहिए जो कभी आपस में मिला नहीं करते, पर बा रे हिन्दुस्तान जब भी धर्म के नाम पर सियासत का मौका आता है तो कोई उसे छोड़ना नहीं चाहता। आगरा में जबरन धर्मांतरण पर अब सियासी बवाल मचने लगा है। परिवारों की शिकायत के बाद पुलिसिया कार्रवाई शुरू हो गई है, जबकि राजनीतिक गलियारों में बयानबाजी का दौर तेज है। शिवसेना कह रही है कि आगरा में धर्म परिवर्तन जबरन नहीं करवाया गया है। दर्ज की गई एफआईआर झूठी है। भारत एक हिंदू राष्ट्र है और यहां हिंदुओं के खिलाफ लगातार सजिश रची जाती है। जबरन मुस्लिम बने लोग अगर वापस आना चाहते हैं तो अपने धर्म में स्वागत है। कांग्रेस इस पूरे मामले को केन्द्र सरकार को घेरते हुए कह रही है कि भारत जैसे सेक्युलर देश में जबरन धर्म परिवर्तन करवाया जाना गलत है इस पर कार्रवाई करनी चाहिए। बीजेपी नेता कलराज मिश्र ने आरोपों और एफआईआर को झूठा करार देते हुए कह रहे आरोप बेबुनियाद हैं। धर्मांतरण जबरन नहीं करवाया गया है। लोगों ने अपनी इच्छा से हिंदू धर्म को अपनाया है।
दरअसल धर्म जागरण प्रकल्प और बजरंग दल ने आगरा के देव नगर बस्ती के करीब 60 परिवारों के 387 मुस्लिमों को हिंदू धर्म में शामिल करने का दावा किया था। हिंदूवादियों ने बाकायदा बस्ती में काली प्रतिमा रखकर पूजा कराई। हवन कराया और मुस्लिमों से आहुतियां डलवाईं। दावा किया कि हर रोज हिंदूवादी कार्यकर्ता यहां सुबह-शाम आकर पूजा आरती कराएंगे। नए हिंदू बने लोगों को परंपराएं सिखाएंगे। ठीक एक दिन बाद धर्म परिवर्तन करने वाले लोगों का बयान आया कि उन्हें धोखे में रखा गया। राशन कार्ड, बीपीएल कार्ड, पहचान पत्र और कुछ सुविधाओं का लालच दिया गया। फार्म भी भरवाए गएं। फोटो खिंचाने को इकट्ठा करके हवन में शामिल करा दिया। डर के मारे सभी को शामिल होना पड़ा। उन्हें पूजा और हवन की बात नहीं बताई गई। कोई भी हिंदू नहीं बना है। सभी मुस्लिम थे और रहेंगे। इसके बाद कुछ मौलाना बस्ती में पहुंचे और उन्हें कलमा पढ़ा दिया। इसकी हकीकत क्या है यह तो जांच रिपोर्ट आने के बाद पता चलेगा लेकिन यह कहानी जो अपने आप पलटी है वो कहानी अपने आप में पूरी कहानी बया कर रही है। सियासत इस हकीकत को उलझाने में जुटी है मगर मजहब के नाम पर जिनकी मजबूरी व गुरबत से खेला जा रहा है उनका बयान सोचने पर मजबूर जरुर करता है। आगरा के उस मुहल्ले में देखे तो पता चल जायेगा कि उन गरीब परिवारों पर कोई फर्क नहीं पड़ता मजहब के बदल जाने से, घर घर में गुरबत का आलम कल भी था, रोजी-रोटी का रोजाना संघर्ष आज भी दिखता है। लोग कबाड़ के रोजगार से कमाई गयी चंद रुपयों से दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में ही व्यस्त है। इन्हें देखकर कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकताये किस धर्म या मजहब के है। धर्म या मजहब की चिंता छोड़ पूरी की पूरी आबादी रोजमर्रा की इसी मेहरबानी पर जी रही है। कल तक रोजी-रोटी के बीच बेहतरी का इनसे कोई वास्ता नहीं रहा, आज अचानक उनके लिए ईमान क्यों मायने रखने लगा। कहा जा सकता है कि धर्म के नाम पर ये सियासत है या साजिश।
जहां धर्म परिवर्तन हुआ है उस बस्ती का ठेकेदार इस्माइल है। उसकी बात सभी लोग मानते हैं। इस्माइल का पहले बयान आया कि हिंदू धर्म की जानकारी होने पर उसकी इससे जुड़ने की इच्छा हुई। मेरे पिता मुस्लिम थे। अब मैं हिंदू धर्म अपना रहा हूं। सभी धर्मों में मेरी आस्था है। लेकिन 24 घंटे बाद जब मामला तूल पकड़ा तो वही इस्माइल बोला उसके साथ धोखा हुआ है वह ऐसा नहीं किया है। फिरहाल संबंधित लोग बयान चाहे जो दुहाई दे, पर सच तो यह है कि यदि कोई व्यक्ति धर्म परिवर्तन करता है तो किसी लाभ के पद या कानूनी प्रक्रिया के लिए उसे इस संबंध में एक शपथपत्र देना होगा। साथ ही धर्म परिवर्तन कराने वाले आचार्य या शास्त्री का बयान कोर्ट में कराना होगा। मतदाता पहचान पत्र में परिवर्तन के लिए भी उसे निर्वाचन आयोग में धर्म परिवर्तन के संबंध में शपथपत्र के साथ-साथ, धर्म परिवर्तन कराने वाले की तरफ से भी शपथपत्र दिलवाना होगा। क्या ये औपचारिकताएं पूरी गयी है। अगर नहीं तो यह गैरकानूनी ही कहा जायेगा। इससे जुड़े लोगों की जांच होनी ही चाहिए कि उन्होंने धर्म परिवर्तन कराने के लिए कौन सा कानूनी फार्मूला अपनाया। सपा, बसपा, माकपा और कांग्रेस ने संसद में मामला उठाकर गर्मा तो दिया लेकिन वह यह क्यों भूल रही है कि इस वाकया से पहले भी कई बार धर्मांतरण की खबरे आती रही है या यूं कहे लोगों ने गरीबी, बेवसी से उबकर धर्म परिवर्तन किया है, तो उस वक्त इतना हंगामा क्यों नहीं बरपा। क्यों नहीं इससे जुड़े लोगों को चिन्हित कर कार्रवाई की गयी। अगर अब जब भाजपा का जनाधार लगातार बढ़ रहा है तो अपनी दुकान बचाने के लिए हो-हल्ला करना कहां तक लाजिमी है।
अगर बेबस-लाचार लोग धर्म परिवर्तन कर रहे है तो उनके दुख-तकलीफों को क्यूं नहीं नेता या सरकारी मशीनरी दूर कर पा रही है। या यूं कहें यह सब 2017 के यूपी चुनाव को ध्यान में रखकर हो रहा या कराया जा रहा है। हालांकि इस मामले में शामिल कई परिवारों की शिकायत के बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई शुरू कर दी गई है। सूत्रों की मानें तो इस कहानी के पीछे बस्ती के ही नजदीक रहने वाला एक युवक है, जो हिन्दूवादी संगठनों के संपर्क में था। उसी ने हिन्दूवादी कार्यकर्ताओं से मिलवाया। संबंधित ठेकेदार द्वारा कहा गया कि बस्ती में पानी, बिजली की सुविधा नहीं है। वोटर आईडी, पहचान पत्र, राशन कार्ड और बीपीएल कार्ड नहीं हैं। यह सब बनवाए जाएंगे। बदले में वहां एक मंदिर की स्थापना होनी है। ठेकेदार के ही झांसे में लोग पुरुष टोपियां और महिलाएं बुरका पहनकर पहुंचे। बताया गया कि सिर्फ फोटो खिंचाया जाएगा। हवन में सामग्री डालने के दौरान लोग हिचके जरुरपर बवाल की आशंका के चलते आहुतियां डाल दीं। तब तक संगठनों ने झोपडि़यों पर भगवा ध्वज फहरा दिए। एलान कर दिया कि सभी हिन्दू हो गए हैं। कहा यह भी जा रहा है कि उन्हें बांग्लादेशी साबित करने का डर दिखाया गया। कहा गया कि आधार कार्ड, बीपीएल, राशन कार्ड बन जाएंगे तो सभी मुख्यधारा में शामिल हो जाओगे। यहीं के स्थायी निवासी हो जाओगे। वरना लोग तुम्हें बांग्लादेशी साबित कर देंगे। पुलिस उठा ले जाएगी। सभी मुश्किल में फंस सकते हो। फिर सब सरेंडर हो गए।
किसका खुदा, किसका ईश्वर और किसका भगवान यह कौन तय करेगा, संविधान में तो इसे चुनने की आजादी व्यक्ति विशेष को है। धर्म बदले उसके दिल और उसके दिमाग की निभर्रता पर सबकुछ छोड़ दिया जाता है। लेकिन बावजूद इसके इस देश में धर्मांतरण अभियान चलाया जा रहा है। संघ, विहिप व बजरंग दल जैसे संगठन इसका ऐलान भी कर रहे है। इसे सीधे तौर पर अपनी मर्जी से घर वापसी अभियान का नारा भी दिया जा रहा है। मगर सच्चाई वाकई क्या यही है या सबकुछ राजनीतिक विसात पर है। इसकी पड़ताल तो करनी होगी। क्योंकि मजहब का सवाल उठा तो इस पर सियासत सिर चढ़कर बोल रहा है। आगरा के वेदनगर इलाके की ओर रुख करने वालों की तादाद अचानक बढ़ गयी है। वरना कौन आंख उठाकर देखता था इनकी तन्हाई की तरफ। जीने की रोजाना जद्दोजहद की तरह सबकुछ इनका आम दिनों की ही तरह बीत रहा था। इनकी चिंता किसी को नहीं थी। सवाल ये नहीं है कि यह वाकई धर्मयुद्ध है, मुश्किल यह है दरअसल धर्म से बड़ी राजनीति कुछ होती नहीं और राजनीति भी इस दौर में धर्म के रुप में तब्दील हो चुका है।
(सुरेश गांधी)

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