- - पीडि़त 2.36 लाख, मकान बने महज 27 हजार
- - 37 में से एक ही ग्रामीण सड़क बन कर तैयार
- - अभी भी नहीं बन पाये 70 में से 34 पुल-पुलिया
- - विश्व बैंक ने घटाया योजना का लक्ष्य
- - हजारों एकड़ खेतों में आज भी जमा है बालू
- - 9000 करोड़ की है पुनर्वास योजना
मधेपुरा के षंकरपुर प्रखंड स्थित मधेली नहर के पास बिरेन यादव का ध्वस्त मकान आज भी उसी हालत में है, जैसा 2008 में कोसी नदी की धारा ने उसे छोड़ा था। वे पिछले छह सालों से प्रखंड मुख्यालय की दौड़ लगा रहे हैं कि उनके ध्वस्त मकान का मुआवजा मिल सके और वे अपने खास्ताहाल मकान को ठीक ठाक करा सकें। इस बीच 2011 से कोसी के इलाके में विष्व बैंक समर्थित नौ हजार करोड़ वाली पुनर्वास योजना भी शुरू हो चुकी है। मगर बिरेन यादव जैसे हजारों लोग कोसी की उस भीषण आपदा के छह साल बाद भी एक अदद मकान के लिए तरस रहे हैं। इस काम को अंजाम देने में जुटी बिहार आपदा पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण सोसाइटी अब तक कोसी के इलाके में महज 27 हजार लोगों को घर उपलब्ध करा पायी है। जबकि खुद सरकार ने कभी माना था कि 2008 की भीषण बाढ़ में 02 लाख 36 हजार 632 मकान क्षतिग्रस्त हुए थे। तस्वीर बदल देने के वायदों के बावजूद कोसी आज भी उजड़ी की उजड़ी है। खेतों में बालू भरे हैं और लोग पलायन को मजबूर हैं।
2008 के बाढ़ पीडि़त इलाकों में पुनर्वास के तहत बन रहे मकानों की हालत बहुत बुरी है। 2011 में शुरू हुए कई मकान अब तक लिंटर से उपर नहीं जा पाये हैं। अधबने मकानों पर झाडि़यों और लताओं ने डेरा बना लिया है। ऐसे ही एक लाभुक रायभीड़ पंचायत के अरताहा गांव के जनार्दन ठाकुर कहते हैं क्या करें पुनर्वास के तहत जितना पैसा मिला था उससे मकान बना पाना संभव नहीं है। जो पैसा मिला है वह इंदिरा आवास से भी कम है। इसमें मकान, शौचालय और सोलर लाइट तक लगवाना है। सब नक्शा के मुताबिक। इस बीच बालू, सीमेंट और छड़ का दाम दुगुना तिगुना हो गया है। जिनके पास पैसा है वे लोग अपना पैसा लगाकर किसी तरह मकान पूरा कर रहे हैं, हम गरीब लोग के पास इसमें लगाने के लिए पैसा कहां है। इधर पुनर्वास सोसाइटी के अधिकारी भी काम की गति कम होने की बात स्वीकार करते हैं। वे बताते हैं कि अब तक सिर्फ 27 हजार 203 मकान ही बन पाये हैं। हैरतअंगेज बात तो यह है कि उन्होंने लक्ष्य ही 66 हजार 203 लोगों को मकान देने तक सीमित कर लिया है। जो पहले एक लाख का था। संभवतः काम की रफ्तार देखकर विश्व बैंक ने लक्ष्य में संशोधन किया है। विश्व बैंक के पर्यवेक्षक भी कई बार धीमी रफ्तार की शिकायत कर चुके हैं। अधिकारी बताते हैं कि ग्रामीण सड़क निर्माण की 37 योजनाओं में से महज एक ही पूरी हुई है और 70 में से महज 36 पुल ही बनाये जा सके हैं। ऐसी जानकारी है कि स्थानीय स्तर पर ठेकेदार जानबूझकर काम को लटका रहे हैं और सोसाइटी उन पर समुचित दबाव नहीं बना पा रही है।
विडंबना तो यह है कि खेतों से बालू निकालने के काम को 2016 तक के लिए टाल दिया गया है। अधिकारी कहते हैं कि यह काम दूसरे फेज में होना है। जबकि सुपौल जिले के कई गांवों में खेतों में बालू भरे हैं। आरटीआई एक्टिविस्ट महेंद्र यादव की आरटीआई के जवाब में सरकार ने स्वीकार किया था कि 14,129.70 एकड़ जमीन पर बालू जमा है। कई खेतों में 2 से 4 फीट बालू है। सरकार ने किसानों को खेतों से बालू हटाने के लिए 4 से 5 हजार रूपये प्रति एकड़ की राशि दी थी, मगर किसानों का कहना है कि एक एकड़ जमीन से बालू हटाने का खर्च 50,000 रूपये प्रति एकड़ से कम नहीं है और उनके सामने सबसे बड़ा सवाल था कि इस बालू को हटाकर रखें कहां। ऐसे में लोगों की खेती ठप पड़ गयी है और लोगों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
कोसी के पुनर्वास के लिए विश्व बैंक की योजना: विश्व बैंक ने कोसी पुनर्वास के लिए 1009 मिलियन डाॅलर की राशि स्वीकृत की है। इस राशि से 2021 तक कोसी का पुनर्वास करना है। परियोजना तीन चरणों में पूरी होनी है। काम मुख्यतः सहरसा के 05, सुपौल के 05 और मधेपुरा जिला के 11 प्रखंडों में होना है।
- पहले चरण में एक लाख मकान बनने हैं
- क्षतिग्रस्त सड़कों और पुल पुलियों का निर्माण किया जाना है
- बाढ़ प्रबंधन का काम किया जाना है
- आजीविका के साधनों का विकास किया जाना है।
पहले चरण के तहत 259 मिलियन डाॅलर खर्च किये जाने हैं। पहले इसकी समय सीमा सितंबर 2014 रखी गयी थी, काम के मौजूदा रफ्तार को देखते हुए समय सीमा बढ़ाकर 2016 कर दी गयी है। दूसरे चरण में 2019 तक 375 मिलियन डाॅलर और तीसरे चरण में 2021 तक 375 मिलियन डाॅलर खर्च किये जाने हैं।
कोसी आपदा, पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण नीति: 22 दिसंबर 2008 को राज्य सरकार ने कोसी आपदा पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण नीति घोषित की थी। इसके तहत घरों का निर्माण, सामुदायिक सुविधाओं की उपलब्धता, इंफ्रास्ट्रक्चर की संपूर्ण स्थापना और आजीविका में मदद की बात की गयी थी। सरकार द्वारा कहा गया था कि इस आपदा को हम एक मजबूत सामाजिक और आर्थिक वातावरण तैयार करने के मौके के तौर पर देख रहे हैं। प्रभावित क्षेत्रों में निजी/सार्वजनिक संसाधनों का पुनर्वास और पुनर्निर्माण किया जायेगा। क्षतिग्रस्त निजी/सार्वजनिक भवनों का समुचित तरीके से मरम्मत और पुनर्निर्माण किया जायेगा। खेती, मत्स्य उद्योग, डेयरी उद्योग, लघु व्यवसाय और हस्तशिल्प के रूप में स्थानीय समुदाय को आजीविका उपलब्ध करायेंगे। शिक्षा और स्वास्थ्य के तंत्रों का विकास और महिलाओं व कमजोर वर्गों के सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान दिया जायेगा। पंचायतों को क्रियान्वयन में भागीदारी दी जायेगी।
कुमार गौरव,
सहरसा

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