राजेश खन्ना जिनके लिए ‘सुपरस्टार’ शब्द गढ़ा गया। वो पहले सुपरस्टार थे, जो उस दौर में फिल्म इंडस्ट्री के भगवान थे। खून से लिखे ख़त, चुंबनों से ढंकी गाड़ी और उस गाड़ी की धूल से मांग भरती देश भर की लड़कियां। ये सब अफ़साने हैं लेकिन हर अफ़साना एक-दूसरे से ज़्यादा सच्चा। राजेश खन्ना की जब भी चर्चा होती है तो कहा जाता है कि उनका स्टारडम सिर्फ तीन साल (1969-1972) तक रहा। लेकिन ये बात पूरी तरह ग़लत है। साथ ही, यह कहना भी पूरी तरह सही नहीं होगा कि उनके पतन की वजह उनकी करिश्माई कामयाबी ही थी।
राजेश खन्ना के बारे में ऐसे सभी पूर्वाग्रहों से अलग, इस किताब ‘राजेश खन्ना- कुछ तो लोग कहेंगे’ में लेखक यासिर उस्मान गहन रिसर्च और राजेश खन्ना के क़रीबी लोगों के इंटरव्यूज़ के ज़रिए एक नई कहानी सामने लाते हैं। कहानी, जो जुड़ी है राजेश खन्ना की निजी ज़िंदगी के कुछ अनसुने अध्यायों से। ये किताब कहने को तो एक बायोग्राफ़ी है जो पूरी तरह तथ्यात्मक है, लेकिन कहानी कहने का अंदाज नया है।
इस किताब में किसी दिलचस्प नॉवेल की तरह एक-एक करके कहानी की पर्तें खुलती हैं और राजेश खन्ना का सारा व्यक्तित्व और उनकी सायकोलॉजी एक नई रोशनी में सामने आती है। मशहूर स्क्रिप्टराइटर और राजेश खन्ना के दोस्त रहे सलीम ख़ान कहते हैं, “मैंने भी ये सोचा नहीं था कि अगर एक इंसान की ज़िंदगी खोली जाए तो उसमें कितनी पर्तें हो सकती हैं और ये पर्तें उसकी शख्सियत को कितने आयाम देती हैं। फिल्म की स्क्रिप्ट लिखते समय, नए-नए किरदार गढ़ते वक़्त मैं इन बातों पर बेहद ध्यान देता था, लेकिन ये किताब पढ़कर मुझे यही लगा कि वाक़ई truth is stranger than fiction। एक ऐसा शख्स जिसे मैं एक जीते जागते इंसान के तौर पर जानता था, उस शख्स को देखने समझने का एक नया नज़रिया और उसकी ज़िंदगी एक नया पहलू मुझे इस किताब में नज़र आया।”
ये बात काफ़ी लोग जानते हैं कि राजेश खन्ना एक गोद लिए हुए बेटे थे। लेकिन आख़िर क्या वजह थी कि राजेश खन्ना ने अपने किसी भी इंटरव्यू में अपने सगे माता-पिता का ज़िक्र तक नहीं किया, मानो उनके अस्तित्व को ही नकार रहे हों? क्यों वो अपने सगे बड़े भाई को दुनिया के सामने अपना कज़िन कहकर बुलाते थे? उनका जो व्यक्तित्व दुनिया के सामने आया क्या वो वाक़ई अतीत की कुछ घटनाओं से प्रभावित था?
असुरक्षा की वो कौन सी भावना थी जो इतने ऊंचे मक़ाम पर पहुंचने के बाद भी उन्हें डराती रही और उनके सारे क़रीबी रिश्तों को दीमक की तरह खाती रही। चाहे वो उनकी प्रेमिका अंजू महेन्द्रू हों, पत्नी डिंपल कपाडि़या या फिर आखिरी सालों में उनके साथ रहने का दावा करने वाली अनीता आडवाणी। आख़िर क्या थी राजेश खन्ना के इन सब रिश्तों की हक़ीक़त?
राजेश खन्ना को क्यों लगता था कि अमिताभ बच्चन ने उनके साथ धोखा किया है। ये ख़याल उनके ज़ेहन में किस घटना के बाद आया और ये प्रतिद्वंद्विता कहां तक गई? क्या-क्या हुआ था सिनेमा के उस दौर में? 70 के दशक के उस ख़ास वक़्फ़े को इस किताब ‘राजेश खन्ना- कुछ तो लोग कहेंगे’ में जिंदा करने की कोशिश की गई है।
कुछ साल पहले राजेश खन्ना आख़िरी बार एक पंखे के विज्ञापन में नज़र आए थे। इसमें वो बेहद कमज़ोर और बीमार दिखे थे। सच ये था कि वो तब कैंसर की आख़िरी स्टेज में थे। इस विज्ञापन की बहुत आलोचना हुई। राजेश खन्ना का जमकर मज़ाक उड़ाया गया। सबको लगा कि ये उनके कैमरे पर दिखने के शौक़ का नतीजा है। सवाल खड़े किए गए कि राजेश खन्ना ने ऐसी हालत में आख़िर क्यों उस विज्ञापन फिल्म में काम करने के लिए हामी भरी। लेकिन इस सवाल का जवाब सिर्फ राजेश खन्ना के दिल में छुपा था। वो दिल को छूने वाली कहानी इस किताब ‘राजेश खन्ना- कुछ तो लोग कहेंगे’ में सामने आती है। इस किताब की भूमिका लिखने वाले लेखक सलीम ख़ान कहते हैं, “मुझे यक़ीन है कि इस किताब को पढ़ते वक़्त आप मुस्कुराएंगे, कुछ हिस्से आपकी आंखें नम भी करेंगे। अपने हीरो राजेश खन्ना के लिए हमदर्दी भी होगी और फिर क्लाईमैक्स तक आते आते एक जीत का अहसास भी होगा। यानी ये अनुभव तक़रीबन वैसा ही है जैसे राजेश खन्ना की कोई बेहद कामयाब फिल्म देखने के बाद हुआ करता था।”
इस किताब की रिसर्च और लेखन में लेखक यासिर उस्मान को एक साल से ज़्यादा का समय लगा। राजेश खन्ना के कई निर्माता-निर्देशकों, को-स्टार्स और क़रीबी लोगों से बात करके वो राजेश खन्ना की ज़िंदगी के कई पहलुओं को सामने लाए हैं। यासिर कहते हैं, “हमने राजेश खन्ना के कामयाबी के बारे में बहुत कुछ सुना है, पढ़ा है। लेकिन ये कामयाबी हासिल करने से पहले वो क्या थे? फिर जब कामयाबी के दिन लद गए तब क्या-क्या घटा उनकी ज़िंदगी में? फिल्म इंडसट्री में लोग उनके ख़राब बर्ताव को उनके करियर की ढलान की वजह बताते हैं, लेकिन क्या वाक़ई ये सच्चाई थी या उनके बर्ताव के पीछे कोई ख़ास घटना थी? अपने जीवन के अंत तक राजेश खन्ना एक बार फिर पर्दा उठने की आस संजोए रहे। ये वो कहानी है जिसमें पाठकों को राजेश खन्ना आख़िरी बार हीरो के रूप में नज़र आएंगे। शायद अपने ख़ास अंदाज़ में पलके झपकाते हुए, मुस्कुराते हुए वो पाठकों के ज़ेहन में उभर आएंगे और कहेंगे ‘राजेश खन्ना मरा नहीं...राजेश खन्ना मरते नहीं’”
टेलीविज़न पत्रकार और लेखक यासिर उस्मान ने ये किताब हिंदी और अंग्रेज़ी भाषाओं में लिखी है और इसे पेंगुइन बुक्स इंडिया ने प्रकाशित किया है। 296 पन्नों की इस किताब का मूल्य 250.00 रुपए है और इसमें राजेश खन्ना के जीवन से जुड़े कई रोचक चित्र प्रकाशित किए गए हैं। किताब का ई-बुक वर्जन भी जल्दी ही उपलब्ध होगा।

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