गुटबाजी के कारण कई बार अकादमी पुरस्कार से महरूम रहे थे शाह - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 21 दिसंबर 2014

गुटबाजी के कारण कई बार अकादमी पुरस्कार से महरूम रहे थे शाह

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इस वर्षा साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाले हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक रमेश चन्द्र शाह  को साहित्य में गुटबाजी और विचारधारा के कारण अब तक  कुल छह बार इस पुरस्कार के लिए नहीं चुना गया था। अल्मोडा में 1937 में जन्मे श्री शाह ने भोपाल से टेलीफोन पर यूनीवार्ता को बताया मैं छह बार इस पुरस्कार की देहरी से लौट चूका हूं।चार बार मेरे उपन्यास तथा एक बार मेरी आलोचना की पुस्तक बोलने के विरूद्ध और एक बार मेरी डायरी भी इस पुरस्कार के लिए नामित हुई थी लेकिन अब जाकर सातवीं बार में मुझे यह पुरस्कार मिला. उन्होंने यह भी बताया कि उनके पिता उन्हें संगीतज्ञ बनाना चाहते थे पर प्रेमचंद और टालस्टाय को पढकर वह लेखक बन गए 1साहित्य में गुटबाजी और विचारधारा के कारण उन्हें पुरस्कार मिलने में हुई देरी से संबंधित प्रश्न के जवाब में श्री शाह ने कहा सभी जगह गुटबाजियां हैं .सभी भाषाों में होंगी पर हिन्दी में कुछ अधिक है ।हिन्दी में विचारधारा का भी प्रभाव है।मेरे मामले में गुटबाजियों ने भी काम किया होगा .नहीं तो छहश बार मेरी किताबें पुरस्कार की दौड में थीं. मेरा पहला उपन्यास गोबर गणेश भी अंतिम सूची में था।हर बार निर्णायक मुझको खुद बताते थे कि उन्होंने मेरी किताब को पुरस्कार के लिए प्रस्तावित किया है 

 यह पूछे जाने पर कि क्या आपको नहीं लगता कि गोबर गणेश या फिर छायावाद कि प्रासंगिकता पर आपको अकादमी पुरस्कार मिलना चाहिए था श्री शाह ने कहा ..गोबर गणेश उनका सबसे अधिक पढा गया उपन्यास है और सबसे अधिक प्रशंसा भी उसे मिली लेकिन मेरा हर उपन्यास पिछले से अलग और िभन्न तथा आगे भी है। उन्होंने कहा विनायक उपन्यास पर  पुरस्कार मिलने से मैं संतुष्ट हं क्योंकि यह गोबर गणेश का ही विस्तार है ,उस उपन्यास का नायक भी विनायक ही था।यह विनायक आज बदली हुई परिस्थितियों का ही नायक है और उस विनायक का विस्तार भी. लिखने की प्रेरणा किस तरह मिलने संबंधी प्रश्न के जवाब में श्री शाह ने बताया कि मेरे पिता गेट बजाते थे और मुझे भी संगीत सिखाना चाहते थे .वह तीसरी या चौथी जमात पढते थ्ो 1 मेरे घर में कोई साहित्यिक परिवेश नहीं था पर वह रद्दी में से दो किताबें मेरे लिए लाए थे जिसमे से एक प्रेमचंद की रंगभूमि और दूसरी टालस्टाय की पुस्तक रिसरेक्सन थी.शायद इसने मेरे जीवन पर प्रभाव डाला.

श्री शाह ने बताया जैनेन्द्र अज्ञेय और मुक्बिोध से भी उन्हें बहुत प्रेरणा मिली .एक बार मुक्तिबोध ने मेरी एक कविता खुद सुनायी जो किसी पत्रिका में उन्होंने पढी थी और उन्हें याद थी।उनके मुह से अपनी कविता सुनना मुझे बहुत अच्छा लगा ,लेकिन मैं अज्ञेय जी के बहुत निकट  रहा. वह मुझे बहुत मानते थे और उन्होंने मुझसे कहा था  कि तुम क्रिसमस की छुट्टियां मेरे साथ बिताओ तो मैं हर साल उनके साथ क्रिसमस में दिल्ली में रहता था। भूमंडलीकारण और मीडिया तथा बाजार के कारण लेखकों की चुनौती अधिक बढने के सवाल पर श्री शाह ने कहा कि लेखकों के लिए हर दौर में चुनौती अधिक रही पर समाज में उनकी भूमिका शून्य नहीं हो जाती .उनकी भूमिका बनी रहेगी. एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि बहुत दिनों के बाद देश में बदलाव आया है और यह बदलाव आना ही चाहिए था अन्यथा एक ही परिवार और एक ही राजनीति से कुछ ठहराव सा लोग महसूस करने लगे थे. अब लोगों को उम्मीद है देखिये कितना अच्छा क्या होता है इंतजार करना चाहिए. श्री शाह भोपाल के हमीदिया कालेज में अंग्रेजी के विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत होकर भोपाल में ही बस गए हैं .उन्हें पदमश्री .व्यास सम्मान और कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं 1उनकी कुल 50 से अधिक किताबें हैं।

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