विशेष आलेख : स्वराज,स्वच्छता और नशामुक्ति की ओर बढ़ते युवा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 15 दिसंबर 2014

विशेष आलेख : स्वराज,स्वच्छता और नशामुक्ति की ओर बढ़ते युवा

भारतीय राजनीति ने २०१४ में जो करवट ली वह सदियों से पीड़ित भारत की संस्कृति को नया आयाम दिया.मुग़लों की इस्लामियत और अंग्रेजों की ईसाइयत की  दासता में दुर्गति को प्राप्त करता यह देश १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी के नाम पर सत्ता हस्तानान्तरन के उपरान्त भारत की तक़दीर नेहरुवियन दासता में कैद हो गयी.भारत के मान सम्मान इसके संस्कार और संस्कृति को नेहरुवियन दासता में मार्क्स-मुल्ला और मैकाले की ज़मातों ने जो दुर्गति किया उसकी क्षति पूर्ति निकट के भविष्य में संभव नही है?

१९४७ से २०१४ के कालखंड का अधिकाँश भाग मार्क्स-मुल्ला और मैकाले की ज़मातों से भारत की बहुसंख्यक आवादी त्रस्त रही. अंग्रेजो ने फूट डालो की राजनीति चलाई तो नेहरुवियनो ने वोट की घिनौनी राजनीति से भारत के बहुसंख्यक समाज को लड़ाता और बिखराता रहा. साल २०१४ के चुनावों में जो निर्णय भारत के जनता ने दिया उसे देखकर इंग्लैंड के प्रसिद्ध अखवार “द गार्जियन” ने १८ मई २०१४ को अपने रविवासरीय सम्पादकीय India: another tryst with destiny नामक शीर्षक से लिखता है ---Today, 18 May 2014, may well go down in history as the day when Britain finally left India. पत्र १९४७ से २०१४ तक के कालखंडो को इंग्लैंड का ही सत्ता का स्वरूप माना. 

मोटे तौर पर देखें तो महात्मा गांधी के सपनो की भारत की शुरुयात २०१४ के आम चुनाव के उपरान्त केंद्र में श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बनी सरकार के बाद शुरू होती है. पूर्ण स्वराज की महात्मा गांधी की परिकल्पना को श्री नरेन्द्र मोदी ने साकार किया यह बात “द गार्जियन” के १८ मई २०१४ के अंक से स्पष्ट होता है. विश्व में सर्वाधिक युवाओं का देश अपने लोकतंत्र को इस अंजाम पर पहुचाया की आज उसे गर्व है की २०१४ में भारत माता को स्वराज दिला पाया. लोकतंत्र के प्रति देश के युवाओं के थिरकते कदम ने नेहरुवियन दासता के मार्क्स-मुल्ला और मैकाले की ज़मातों को धुल चटा महात्मा बुद्ध के अहिंसा के सिद्धांत को आत्मसात कर विश्व के युवाओं को नया सन्देश देकर पूर्ण भारतीय स्वराज्य को प्राप्त किया है.

अब तक नेहरुवियन दासता में मार्क्स-मुल्ला और मैकाले की ज़मातों ने इस देश की छवि गंदगी का देश के रूप में निर्मित कर रखा था.हमारी संस्कार में ये विसंगति भरी गयी की साफ़ सफाई करना सरकार का काम है.हम करोड़ों की लागत से अपने लिए भवन तो बना सकते किन्तु सैकड़ों रूपये खर्च कर हम जल निकासी या गंदगी विसर्जन का कोई ठोस उपाय नहीं कर सकते ये तो सरकार का काम है .अबतक नेहरुवियन विरासतों को ढ़ोने बाले सरकारों की इसी दोहन प्रक्रिया ने इस देश के पवित्र नदिओं को गंदे नाले में बदल दिया.आज भारत की सनातन संस्कार और संस्कृति से कटे होने का दुष्परिणाम है की पर्यावरण का पूर्ण दोहन किया गया और आज देश विनाश के इस मुकाम पर खड़ा है . 

भारत कृषि प्रधान देश है और हमारी आवादी का एक बड़ा भाग नेहरुवियन नीति के कारण गरीवी रेखा से निचे जीवन वसर करने को मजबूर है. ऐसे में यदि उन परिवारों को साफ़ सफाई के प्रति जागरूक नही किया गया तो उनके बीच बिमारिओ का प्रसार होना उनके जीवन को तहस-नहस कर डालेगी.एक गरीव आदमी के घर जब कोई बीमार, वह भी यदि कमाऊ व्यक्ति बीमार पड़े तो उस परिवार पर दुखो का पहाड़ टूट पड़ता है . ऐसे में देश के प्रधानसेवक का सफाई के प्रति किया गया आह्वान गरिवों के लिए जादू की छड़ी से कम नहीं है. सफाई के द्वारा हम और हमारा समाज काफी हद तक बीमारी से अपने आपको बचा सकते हैं.स्वच्छ वातावरण हमें स्वच्छ प्रवृति की ओर ले जाता है.स्वच्छता देव्त्व के निकट होते है और इसके माध्यम से हम अपने मन को भी और अपने समाज को भी एक नए मुकाम पर ले जा सकते हैं.

आज एकबार फिर भारत के प्रधान सेवक ने अपने मन की बात के माध्यम से जो सामाजिक सन्देश दिया वह १२५ करोड़ देशवासियो के हित से जुडा था.भारत के युवाओं के थिरकते कदम जो नशा की ओर अग्रसर था उसे एकबार ठिठकने को मजबूर कर देगी.जिस तरह से उन्होंने भारत के युवाओं ही नही अभिभावकों के मन को भी झंझोड़ा वह प्रशंसनीय है. मन की बात ने साबित कर दिया की वह १२५ करोड़ भारतीयों का आवाज है उनका दर्द देश का दर्द है.इस विशाल परिवार के प्रधानसेवक के नाते इस विध्वंसकारी सामाजिक दुर्गुण से अपने युवाओं को बाहर निकालने का अथक प्रयास उनका कर्तव्य है . मन की बात में प्रधानसेवक के नाते जिस आत्मीयता और अपनत्व की बात उन्होंने की वह लोगों के दिलो को छू गयी. नशा पर प्रधानमन्त्री की सवेदनशिलता आज हर उस माता-पिता को एक शुकून देती होगी जिनके लाडले इसके शिकार बन गए.

नशा से किस तरह अपना समाज पीड़ित है आप इससे अंदाजा लगा सकते है की भारत के राज्यों में आधुन्किता और विकास का नया आयाम गढ़ने बाले राज्य पंजाब जहाँ के हर ४ युवा में १ नशे के गिरफ्फ्त है.वहां की लगभग ६५ फीसदी परिवार नशे के कारण पीड़ित है. पंजाब के एक शहर के एक युवा का कहना है.-- “There were 40 of us in the same class in school. Only 10 of us, including me, are alive today. All the others died doing smack and prescription drugs,”किस तरह आज पंजाब नशे के दलदल में डूबा है .अगर पंजाब के जेलों पर ध्यान दे तो स्पष्ट है की अधिकाँश कैदी नशे के व्यापार में पकडे गये है. This is a state where 30 percent of all jail inmates have been arrested under the Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act and the DGP has kicked up a political storm by saying it is impossible for him to control the flow of drugs into his prisons.आज विकास की नयी इमारत बनाने बाला राज्य पंजाब किस तरह नशे के कारण विनास का श्मशान बनता जा रहा है.

उन्होंने अपने मन की बात में देश के युवाओं से आह्वान किया आप जिस नशे के लत में अपने जीवन को ले जाते है उसे खरीदने में जो आप पैसा खर्च करते है उसी पैसे से अपने देश के सीमा पर तैनात ज़वान दुश्मनों की गोली का शिकार होतें है.देश के युवा यदि अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर ले तो इसमें संदेह नही की वो इस दलदल में कभी फंसे? उन्होंने माता-पिता से भी आह्वान किया की वे अपने बच्चो के प्रति संवेदनशील बने उन्हें अकेला छोड़ने के बजाय उनकी समस्याओं पर गंभीरता से प्रेम से आत्मीय भाव से सोचे.नशा आज एक सायको-सोशियो समस्या है.समाज को इसके प्रति जागरूक होना होगा.देश की सरकारे भी इस अति संवेदनशील मुद्दे पर गंभीर है. आज मिडिया और चलचित्रों ने भी नशे के इस व्यापार को बढ़ावा दिया. हुक्का बार से लेकर रेव पार्टियो की चकाचौंध में मिडिया और सिनेमा इस देश के युवाओं को मौत के गर्त में धकेला है.

आज देश के प्रधानसेवक ने जब इस अति गंभीर सामाजिक कोढ़ पर प्रहार किया तो इस देश के नेहरुवियन संस्कृति के दलालों की चीखे सुनाई पड़ने लगी. मीडिया में नेहरुवियन संस्कृति के दलालों ने चीखना शुरू किया कि आधा घंटा का बक्त सिर्फ नशा पर जाया करना कहाँ तक बुद्धिमानी है और नशे से ज्यादा महत्वपूर्ण मुद्दा महगाई और वेरोजगारी है जिस पर प्रधान मंत्री को बोलना चाहिए? नेहरुवियन संस्कृति के दलालों की बुधि पर तरस आती है जब हमारे युवा नशे की गिरफ्त में होंगे तो रोजगार किनके लिए और विकास किसके लिए . कभी उस माता-पिता से मिलो जिनकी संताने नशा की भेंट चढ़ गयी उनके लिए रोजगार क्या मायने रखता है.अपनी संस्कृति में ये विश्वास है की – पूत कपूत तो का धन संचय पूत सपूत तो का धन संचय.ऐसे में नशा के प्रति देश के प्रधानसेवक का यह सोच जो उन्होंने ३ डी यानी डार्कनेस, डिस्ट्रक्शन, डिवस्टेशन की बात की.आज के परिस्थिति के लिए समीचीन है और आज तक जो मुद्दा देश के एनजीओ के हाथो बंधी रही उसे खुले माहौल में लाने का एक अत्यंत सार्थक प्रयास श्री मोदी जी ने किया है.उनके आह्वान पर आज भारत के पुरुषार्थी युवा स्वराज्य, स्वच्छता और नशामुक्ति के प्रति नयी सोच निर्मित कर सशक्त भारत का निर्माण करने की कदम बढ़ा चुकी है.




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संजय कुमार आज़ाद
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