26/11 का मुंबई हमला खुफिया नाकामी की वजह से संभव हुआ - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 23 दिसंबर 2014

26/11 का मुंबई हमला खुफिया नाकामी की वजह से संभव हुआ

मुंबई को 2008 में दहलाने वाला हमला भारत, अमेरिका और ब्रिटिश खुफिया एजेंसियों के बीच तालमेल की नाकामी का नतीजा थी। एडवर्ड स्नोडेन की ओर से लीक अमेरिकी खुफिया दस्तावेजों से पता चला है कि अगर तीनों खुफिया एजेंसियों ने साजिश के तारों को मिल बैठकर जोड़ने की कोशिश की होती तो शायद मुंबई उस बड़ी तबाही से बच सकती थी।

खोजी पत्रकारिता के लिए मशहूर अमेरिकी पत्रिका प्रोपब्लिका, न्यूयॉर्क टाइम्स और पीबीएस सीरिज फ्रंटलाइन ने अपनी रिपोर्ट ‘इन 2008 मुंबई किलिंग्स, पाइल्स ऑफ स्पाई डाटा, बट एन अनकंप्लीटेड पजल’ में खुफिया एजेंसियों के बीच संपर्क और समन्वय की इसी कमी को उजागर किया है। भारत और अमेरिका के पूर्व खुफिया अफसरों के हवाले से तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्रिटिश खुफिया एजेंसी जीसीएचक्यू भी लश्कर ए तैयबा की तकनीकी शाखा के मुखिया जरार शाह की इंटरनेट गतिविधियों की निगरानी कर रही थी। लेकिन अमेरिका को भारत और ब्रिटेन की इस खुफिया कवायद की भनक तक नहीं थी। अमेरिका ने भी इंटरनेट और खुफिया एजेंटों की मदद से बाद में ऐसी साजिश के तार खोजे थे। लेकिन 2001 में अमेरिका पर हमले के बावजूद अत्याधुनिक खुफिया उपकरणों से लैस ये एजेंसियां साझा प्रयास से आगे बढ़ने में विफल रहीं। इसका नतीजा था कि समय रहते असली खतरे को नहीं भांपा जा सका। हालांकि अमेरिका ने हमले के ठीक पहले कई बार भारतीय खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों को ताज होटल और मुंबई के कई अन्य पर्यटक स्थलों पर हमले की साजिश के बारे में अलर्ट भेजा था। लेकिन भारतीय खुफिया एजेंसियां भी साजिश का पर्दाफाश नहीं कर सकीं।

सितंबर और अक्तूबर में समुद्र के रास्ते हमलावरों को मुंबई भेजने की लश्कर की कोशिश नाकाम रही। इस दौरान अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने भारत को ताज होटल और अन्य ठिकानों पर हमले के अलर्ट भी भेजे। फिर ताज होटल समेत कई जगहों की अस्थायी तौर पर सुरक्षा बढ़ा भी दी गई। 18 नवंबर को संदिग्ध आतंकियों से लैस एक नौका के मुंबई की ओर बढ़ने का अलर्ट भी भेजा गया। लेकिन फिर इसमें ढिलाई बरती गई। चौबीस नवंबर तक शाह कराची पहुंच चुका था जहां उसने अबु जुंदाल नाम के एक भारतीय आतंकवादी की मदद से इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल रूम स्थापित किया। यह जानकारी जुंदाल ने भारतीय अधिकारियों को पूछताछ में दी थी।

लश्कर कमांडर जरार शाह की इंटरनेट पर गतिविधियों की भारतीय और ब्रिटिश खुफिया एजेंसियों की पैनी नजर थी। रिपोर्ट में यहां तक कहा गया है कि भारतीय एजेंसियों ने शाह के लैपटॉप तक पहुंच बना ली थी लेकिन फिर भी हमला रोका नहीं जा सका। शाह ने ही कसाब समेत लश्कर हमलावरों को गूगल अर्थ और जीपीएस का इस्तेमाल करना सिखाया जिसकी मदद से वे हमला करने के लिए चुनी गई सही जगहों पर पहुंच सके। ब्रिटेन के पास शाह की इंटरनेट गतिविधियों का भारी डाटा था लेकिन उसे बड़े खतरे का आभास नहीं हुआ। जबकि अमेरिकी अलर्ट के बाद भी भारतीय एजेंसियों ने पर्याप्त मुस्तैदी नहीं दिखाई। अमेरिकी एजेंसियों ने भी पसीना नहीं बहाया और पाकिस्तानी अमेरिकी डेविड हेडली और साजिशकर्ताओं के बीच ईमेल संवादों की अनदेखी की। अमेरिकी आतंकवाद रोधी एजेंसियों ने हेडली की पूर्व पत्नी की बातों को भी अनसुना कर दिया जिसने कहा था कि उसका पति पाकिस्तानी आतंकी है और मुंबई में संदिग्ध मिशन में जुटा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, अगर आतंकी सरगनाओं या संदिग्धों की इंटरनेट निगरानी से मिले डाटा को बारीकी से खंगाले जाने के साथ इन प्रारंभिक सूत्रों को दूसरे माध्यमों से पुष्ट करने की कोशिश जरूरत थी। 

शाह ने वॉयस ओवर इंटरनेट फोन (वीओआईपी) खरीदने के लिए एक अमेरिकी कंपनी से बातचीत के दौरान खुद को भारतीय कारोबारी खड़क सिंह बताया था। वीओआईपी का इस्तेमाल मुंबई हमले के वक्त लश्कर कमांडरों ने हमलावरों से बातचीत करने के लिए किया था। शाह सोच रहा था कि इससे हमले के समय वह अपनी लोकेशन के साथ फोन कॉल को ऑस्ट्रिया और न्यूजर्सी से होते हुए दिखा सकेगा। शाह ने इंटरनेट पर वीओआईपी सिस्टम, ऑनलाइन सिक्योरिटी, इंटरनेट पर देखी गईं वेबसाइटों की जानकारी छिपाने की तरकीबें भी खंगालीं। उसने यूरोप में कमजोर सिक्योरिटी सिस्टम वाली एजेंसी का भी पता लगाया।

शाह ने इंटरनेट पर मुंबई पर हमले वाली जगहों ताज होटल, यहूदियों के ठिकाने चबाड हाउस और विदेशियों की मौजूदगी वाली अन्य जगहों को इंटरनेट पर खंगाला था। कश्मीर से लगी सीमा पर बने कैंप में शाह ने कसाब और अन्य हमलावरों को गूगल अर्थ, जीपीएस का इस्तेमाल करना भी सिखाया। उसने भारत में दिल्ली, मुंबई के चार सितारा होटलों, सैन्य ठिकानों, पर्यटन स्थलों, हथियारों में दिलचस्पी थी। यहां तक कि मैप्स ऑफ इंडिया की साइट भी सर्च की थी।

रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने माना है कि भारत, अमेरिका हो या ब्रिटेन, कोई भी साजिश की सही तस्वीर को अकेले सामने नहीं ला सका। ताज होटल में गोलियां चलने के बाद एक-दूसरे से जानकारियां साझा होना शुरू हुईं और साजिश से पर्दा उठता चला गया। हमले के दौरान आतंकियों की उनके आकाओं से बातचीत के टेप तो सामने आए हैं लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देने वाली खुफिया एजेंसियों के अनुरोध पर हमले के पहले जुटाई गई आतंकियों की गतिविधियों को गोपनीय रखा गया है। अमेरिका के एक पूर्व खुफिया अफसर ने कहा कि हमारा ध्यान उस वक्त अलकायदा, तालिबान, पाकिस्तान के परमाणु हथियारों और ईरान पर था। हमने कोई खुफिया जानकारी छोड़ी नहीं बल्कि उसके तारों को एक साथ जोड़ने में नाकाम रहे।

एनएसए के दस्तावेजों के मुताबिक, हमला शुरू होने के बाद तीनों एजेंसियों ने खुफिया जानकारियों को तेजी से साझा किया। इससे कई माह पहले से रची जा रही साजिश की परतें उधड़ती चली गईं। पाकिस्तान में इस ऑपरेशन के लिए बने लश्कर के कंट्रोल रूम का पता चला, जहां से आतंकियों के आका हमलावरों को निर्देश दे रहे थे।  

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