क्या माओवादियों की गंदी सोंच से महफूज रह पाऐगा झारखण्ड - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 13 दिसंबर 2014

क्या माओवादियों की गंदी सोंच से महफूज रह पाऐगा झारखण्ड

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झारखण्ड विधानसभा चुनाव-2014 अंतिम पायदान की ओर अग्रसर है। पाँचवें व अंतिम चरण का मतदान 20 दिसम्बर को होना तय है। 23 दिसम्बर को प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला भी हो जाऐगा। किसी एक पार्टी की बहुमत वाली सरकार बनती है या फिर पिछली दफा की तरह ही इस बार भी गठबंधन की सरकार का ही समीकरण पैदा होगा, कहा नहीं जा सकता। चैथे चरण के चुनाव के बाद तमाम राष्ट्रीय व क्षेत्रीय दलों की निगाहें पाँचवें व अंतिम चरण के मतदान पर आकर टिक गई है। संताल परगना नक्सल प्रभावित क्षेत्र रहा है। इस क्षेत्र में चुनावी पर्व पर माओवादियों ने खून की होली खेली है। लोकसभा चुनाव-2014 में दुमका के शिकारीपाड़ा प्रखण्ड के पलासी-सरसाजोल में हार्डकोर माओवादियों ने एक साथ 5 पुलिसकर्मियों सहित कुल 8 (3 मतदान कर्मी थे) व्यक्तियों की हत्या गोलियों से छलनी कर कर दी थी। उपरोक्त विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के बड़े चुनावी महापर्व को जिम्मेवारीपूर्ण तरीके से संपन्न कराने अपने हिस्से में प्राप्त बूथों पर तैनात थे। 

मतदान समाप्त कर वापस लौटने की प्रक्रिया में अचानक चारों ओर से उन्हें घेरकर अंधाधूँध फायरिंग शुरु कर दी गई। जबतक लोग संभल पाते तबतक उनकी इहलीला समाप्त हो चुकी थी। चुनाव खत्म करवाने का उत्साह, खामोशी व भयानक उदासी में तब्दील हो गई। आँसुओं का सैलाव उमड़ पड़ा। पुलिस लाईन मैदान में लाखों का हुजूम एक वैचारिक जंग के लिये खड़ा था। लाशों को देखने के बाद सबके रोंगटे खड़े हो गए। हैवानियत का नंगा नाच खेला गया था। देश के विभिन्न राज्यों सहित विश्व के कई अलग-अलग देशों से तीखी प्रतिक्रिया तक प्राप्त हुई। जिला प्रशासन से लेकर राज्य सरकार तक पर उंगलियाँ उठ खड़ी हुई। पुलिस के आला अधिकारियों तक के मुँह पत्रकारों को जबाव देते-देते थक गए। चुनाव में हुई इस गलती के बाद शिकारीपाड़ा क्षेत्र सहित संताल परगना प्रमण्डल के वैसे अन्य क्षेत्र जो माओवादियों से प्रभावित रहे है, एलआरपी प्रारम्भ कर दी गई। कई एक कोशिशों के बाद दुमका पुलिस को एक बड़ी सफलता हाथ लगी।  हार्डकोर माओवादी नेता प्रवीन दा पुलिस के हत्थे चढ़ा। एक हार्डकोर नक्सली नेता को गिरफतार कर दुमका पुलिस ने अपने घाव पर मरहम लगाया। झारखण्ड विधानसभा चुनाव-2014 के अंतिम चरण में फिर से एकबार शिकारीपाड़ा में चुनाव होने हैं। 

माओवादियों की भूमिका इस चुनाव में क्या होगी यह तो एक यक्षप्रश्न ही बना हुआ है, इधर पिछली घटना से आज तक लोग सहज नहीं हो पाए हैं। सुदूरवर्ती गाँव-कस्बों व जंगल-पहाड़ी इलाकों में लोग दहशत के वातावरण में अपने जीवन की बैलगाड़ी ढोने पर मजबूर दिखलाई पड़ रहे। संताल परगना प्रमण्डल के छः जिलों यथा-दुमका, देवघर, गोड्डा, पाकुड़, साहेबगंज व जामताड़ा जिले के 16 विधानसभाई क्षेत्रों के लिये अंतिम चरण में मतदान की कवायद को लेकर जहाँ एक ओर तमाम जिलों के प्रशासनिक व पुलिस पदाधिकारियों सहित चुनाव आयोग के प्रेक्षकों के बीच शांतिपूर्ण तरीके से इसे सम्पन्न कराने की होड़ लगी हुई है वहीं दूसरी ओर केन्द्र से लेकर राज्य तक के कद्दावर नेताओं से लेकर एक-एक सक्रिय कार्यकर्ताओं तक को गाँव-देहात मतदाताओं के घरों पर दस्तक देते हुए संपर्क अभियान में देखा जा रहा। लोकतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है चुनाव। चुनाव में आम मतदाताओं की सहभागिता न हो तो फिर इसका कोई अर्थ नहीं। 

90 के दशक के पूर्व चुनाव से संबंधित कोई विशेष ज्ञान आम नागरिकों के पास मौजूद नहीं थी। देश की यह एक संवैधानिक प्रक्रिया मात्र है सोंचकर लोग मताधिकार का प्रयोग किया करते थे। भारत के चुनाव आयुक्त के रुप में केरल कैडर के आईएएस टी0एन0शेषण ने देश की अवाम को समझाने का काम किया कि चुनाव क्या चीज है और इसका संपादन कितनी स्वच्छता से किया जाना चाहिए। टी0एन0शेषण वर्ष 1990 से 1996 तक भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे। इन्हीं के समय में मतदाता पहचान पत्र प्रारम्भ हुई। चुनाव के अन्य तंत्रों का जन्म और उसका उत्तरोत्तर विकास प्रांरभ हुआ।






अमरेन्द्र सुमन (दुमका) 
झारखण्ड

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