देश में आर्सेनिकजनित रोगों के कारण एक लाख से अधिक लोगों की मौत तथा साढे सात लाख लोग इससे पैदा हुई बीमारियों की चपेट में होने के बावजूद छह राज्यों की करीब दो हजार बस्तियों के लोगों के पास आर्सेनिकयुक्त जल पीने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। यह जानकारी भू जल में आर्सेनिक की मात्रा संबंधित विषय पर डा. मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली प्रक्कलन समिति ने अपनी ताजा रिपोर्ट में दी है।आर्सेनिक जल के सेवन से सफेद दाग. रक्त की कमी. पैर में सूजन. यकृत. फेफडे और नस संबंधी बीमारियां. गैंगरीन तथा कैंसर जैसी घातक बीमारियां होती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की करीब साढे सात लाख आबादी आर्सेनिक जल के सेवन से होने वाली छोटी..बडी बीमारियों से पीडित हैं। इनमें करीब तीन लाख से ज्यादा लोगों के गंभीर रूप से बीमार होने की वजह आर्सेनिक जल को बताया गया है। इन रोगों के कारण एक लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। आर्सेनिक का असर फल और सबि्जयों में आ रहा है जिससे यह बीमारी ज्यादा तेजी से फैल रही है।
समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि आर्सेनिक जल पीने से मनुष्यों के साथ ही पशुों में भी इन बीमारियों के लक्षण दिखने लगे हैं। जमीन के भीतर का यह आर्सेनिकयुक्त पानी नदियों में भी पहुंच गया है और गंगा जैसी कई नदियां इसकी चपेट में आ गई हैं। आर्सेनिक की मात्रा वाला पानी मछलियों के लिए भी खतरनाक है और इसकी वजह से मछलियों की कई प्रजातियों के विलुप्त होने की आशंका जताई जा रही है। समिति ने पाया है कि देश के सात राज्यों बिहार. र्कनाटक. पंजाब. उत्तर प्रदेश. पश्चिम बंगाल. असम और मणिपुर की 199। बस्तियां पूरी तरह से आर्सेनिक की चपेट में हैं और इन बस्तियों के लोगों के पास आर्सेनिकजनित जल को पीने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। इनमें सबसे अधिक 1124 बस्तियां पश्चिम बंगाल की. 424 असम की तथा 357 बस्तियां बिहार की है। रिपोर्ट के अनुसार भू जल में आर्सेनिक तेजी से फैल रहा है। इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि 13 राज्यों के 98 जिलों के भू जल में आर्सेनिक की अत्यधिक मात्रा पाई गई है। इसी तरह से दस राज्यों के 86 जिले ऐसे हैं जहां आर्सेनिक की मात्रा निर्धारित मानक से ज्यादा पहुंच चुकी है। कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए समिति ने कहा है कि नौ राज्यों के 71 जिलों में भू जल में आर्सेनिक की मात्रा पाई गई है।
समिति ने इस बात पर चिंता जताई कि आर्सेनिक का प्रभाव लगातार बढने के बावजूद सरकारी स्तर पर इसे रोकने के पर्याप्त प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। यहां तक 2012 की जल नीति में आर्सेनिक की मौजूदगी का कोई जिक्र नहीं किया गया है। आर्सेनिक लोगों में घातक रोग पैदा कर रहा है और इसकी वजह से लोग कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी की चपेट में आ रहे हैं लेकिन इससे निबटने के लिए अलग बजट आवंटन की व्यवस्था तक नहीं की गई है। जल में आर्सेनिक की रोकथाम के उपायों में आर्सेनिक मिलावट रहित जल उपलब्ध कराने की जरूरत पर बल दिया गया है लेकिन सरकारी स्तर पर इस दिशा में कोई उपाय नहीं हुए हैं।समिति का कहना है कि देश में ग्रामीण क्षेत्र की 80 फीसदी और शहरी क्षेत्र की 50 आबादी घरेलू आवश्यकताों की पूर्ति के लिए भू जल का इस्तेमाल करती है इसलिए लोगों को आर्सेनिक से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए काम करने की जरूरत है।
समिति ने हैरानी जताई है कि देश में आर्सेनिक जल के सेवन से होने वाली बीमारी से लाखों लोग पीडित हैं और हजारों लोगों की मौत हो चुकी है फिर भी इस संबंध में कोई ठोस अथवा केंद्रीयकृत आंकडा उपलब्ध नहीं है। समिति ने इसे सरकार का लापरवाही से भरा रवैया बताया है। रिपोर्ट में इस बात पर भी चिंता व्यक्त की गई है कि मिट्टी. फसलों और सबि्जयों में आर्सेनिक की मात्रा बढ रही है और इसके कारण मनुष्य. पशु तथा अन्य जीवजंतु तेजी से इससे होने वाली बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं लेकिन आर्सेनिक की बढती मात्रा पर नजर रखने के लिए कोई तंत्र विकसित नहीं किया गया है।

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