विशेष : साध्वी पर हमले से पहले अपने गिरेबां में झाके विपक्षी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 10 दिसंबर 2014

विशेष : साध्वी पर हमले से पहले अपने गिरेबां में झाके विपक्षी

जी हां, साध्वी की जबान फिसली तो सियासी घमासान छिड़ गया पर सवाल तो यह है क्या हंगामा करने से पहले अपने गिरेबां में झाककर यह देखने की कोशिश किया कि उसके सांसद-मंत्री चाहे वह लालू प्रसाद यादव रहे हो, मुलायम सिंह यादव रहे हो, ममता बनर्जी रही हो या उनके सांसद तापस पाल रहे हो या फिर कांग्रेसी दिग्गज द्विग्विजय सिंह, सलमान खुर्शीद, बेनी प्रसाद वर्मा, मणिशंकर अरूयर, श्रीप्रकाश जायसवाल सहित न जाने कौन-कौन, जिन्होंने सारी सीमाएं लांघकर किस तरह बदजुबानी बातें या बोल बोलते आएं है। मतलब हर पार्टी में बदजुबानी बयानों की यह परंपरा रही है। कभी माफी मांगी गयी तो कभी जरुरत ही नहीं समझी गयी 

rahul gandhi protest
बात सिर्फ कैबिनेट मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति की ही नही,ं गाली-गलौज की इजाजत किसी को भी नहीं होनी चाहिए और ना ही यह किसी संविधान या संस्कार में है। लेकिन सवाल यह है कि जिस बदजुबानी बात को लेकर समूचा विपक्ष साध्वी की बदजुबानी के लिए इस्तीफे की मांग पर अड़ा रहा। देश की विकास व अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाएं रखने में रुकावट पैदा कर संसद का कामकाज ठप कर रखा। क्या वे लोग हंगामा करने से पहले अपने गिरेबां में झाककर यह देखने की कोशिश किया कि उसके सांसद-मंत्री चाहे वह लालू प्रसाद यादव रहे हो, मुलायम सिंह यादव रहे हो, ममता बनर्जी रही हो या उनके सांसद तापस पाल रहे हो या फिर कांग्रेसी दिग्गज द्विग्विजय सिंह, सलमान खुर्शीद, बेनी प्रसाद वर्मा, श्रीप्रकाश जायसवाल सहित न जाने कौन-कौन, जिन्होंने सारी सीमाएं लांघकर किस तरह बदजुबानी बातें या बोल बोलते आएं है। मतलब हर पार्टी में बदजुबानी बयानों की यह परंपरा रही है। कभी माफी मांगी गयी तो कभी जरुरत ही नहीं समझी गयी। कहा जा सकता है राजनीति में ऐसे बयान नएं नहीं है, हंगामा बढ़ा तो जिस तरह बेनी प्रसाद वर्मा द्वारा अटल बिहारी बाजपेयी के लिए ओछी शब्दों के प्रयोग पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को माफी मांगनी पड़ी और सारा कामकाज यथावत हो गया ठीक उसी तरह साध्वी के बदजुबानी के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने माफी मांगते हुए देश के विकास में कामकाज शुरु करने की दरख्वास की और उसके बाद भी अडंगा या यूं कहे गतिरोध जारी है तो सवाल खड़ा होना या उंगलियां उठना भी लाजिमी है। साध्वी के पक्ष में सड़क पर उतरे लोग अगर यह कह रहे है कि विपक्ष सिर्फ इसलिए विरोध कर रहा है कि वह दलित है, छोटी जाति निषाद समाज से है, महिला है, तो जरुर इसमें कुछ न कुछ सच्चाई झलकती दिख रही है। 

sadhvi niranjan jyoti
दरअसल दिल्ली में चुनाव की आहट आई तो बयानों की बौखलाहट साथ लाई। साध्वी राजनीति में नई नही, लेकिन दिल्ली में नयी जरुर है। मंत्री पद नया-नया मिला है, शब्दों पर पहरा किसका, वैसे भी मंत्री के जुबान  पर पहरा बैठाने की हिम्मत किसे। जो पहले बयान ने नहीं किया वह कसक उनकी माफी के बाद यह बयान जिसमें उन्होंने कहा, दिल्ली में रामजोदों की सरकार बनेगी या इस देश में चाहे ईसाई हो या मुसलमान, जो है वह राम के संतान है जो नहीं मानते वह देश को भी नहीं मानेंगे, पूरी कर दी। इस बयान में तुगबंदी का विस्तार था। राजनीति में ऐसे बयान नए नहीं है लेकिन उन्हें नहीं भूलना चाहिए कि वह मोदी सरकार में मंत्री है, सदन की गरिमा है। हंगामा बढ़ा तो पीएम से लेकर वैंकटइया नायूडा तक ने क्षमा मांग ली, फिर भी समूचा विपक्ष इस्तीफे की मांग अड़ा रहा। निर्जिव पड़ा विपक्ष में मानों जैसे जान आ गई। राहुल गांधी से लेकर हर कोई साध्वी के इस्तीफें की दुहाई देता रहा। हर बातों को ताख पर रखकर कमोवेश संसद में काम के नाम पर सन्नाटा रहा। सदन की कार्रवाई हंगामें में डूबी रही, पर ये हंगामा उतना नहीं चूभता जितना सांसद साध्वी की बदजुबानी। गतिरोध बढ़ा तो साध्वी समर्थकों ने जातिवादी कार्ड खेलते हुए दलित का रुप दे दिया। कहा गया विपक्ष अपवनी खामी-घोटालों को छिपाने के लिए यह सब कर रही है। वह नहीं चाहती की कोई दलित या फूलन देवी सरीका पिछड़ा राजनीति में आएं। मुद्दा हाथ से चला न जाएं इसलिए मायावती तक को आगे आकर कहना पड़ा साध्वी दलित नहीं पिछड़ी जाति से आती है। 

सभी पार्टिया आज साध्वी निरंजन ज्योति के इस्तीफे के लिए एकजूट है, पर अच्छा तो होता यह एकजुटता महज राजनीतिक विरोध जोड़कर शर्मिंदा करती पूर्व के दिए सभी नेताओं के बदजुबानी के लिए होती। क्योंकि अभी तक तो एक ही फलसफा नजर आता है, हम तालिब-ए-सोहरत है हमें नब्ज से क्या काम, बदनाम हुए तो क्या नाम न होगा। फिर भी सवाल मुंह बाएं जहां तहां खड़ा है आखिर साध्वी ने तो इस तरह के कई बार बदजुबानी बोली, लेकिन शायद तब वह सांसद नहीं रही इसीलिए किसी ने विरोध करने की कोशिश नहीं की। गिरीराज सिंह ने जब एक वर्ग को देश छोड़ देने की धमकी जैसे न जानें कितनी आपतित्त्जनक बयान दी। हंगामा करने से पहले राहुल गांधी भूल गए कि कबीना मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा द्वारा अटल बिहारी बाजपेयी को निम्न सहित राक्षस आदि न जाने कैसे-कैसे अपशब्द कहा, तब बीजेपी विपक्ष में थी इस्तीफा मांगा कुछ नहीं हुआ। हालांकि इसके लिए मनमोहन सिंह ने संसद से माफी जरुर मांगी। सलमान खुर्शीद ने लक्ष्मण रेखा की सारे हदें पार कर नरेन्द्र मोदी को वो शब्द कहा जो बर्दाश्त योग्य नहीं था। न नेताओं की जुबान ठहरती है न शर्मिंदगी। श्रीप्रकाश जायसवाल ने तो आधी आबादी पर बदजुबानी हमला बोल सबकों चैका दिया। 

राहुल गांधी के राजनीतिक गुरु द्विग्विजय सिंह ने तो महिला को सौं टका टंच माल कहते हुए न जाने क्या-क्या कह डाला। इस बयान भी बवाल-हंगामा मचा था पर कुछ नहीं हुआ। बात आई गयी खत्म हो गई। सारे बदजुबानी भूलभालकर सदन में अटल जी ने कहा यह हमारी परंपरा रही है यह हमारी प्रकृति रही है यह पंरपरा बनी रहे यह प्रकृति बना रहे सत्ता का खेल तो चलेगा सरकारें आयेगी जायेगी पार्टियां बनेगी बिगड़ेगी मगर ये देश रहना चाहिए इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए। नेता सायद एक हो जाता है सियासत में गड़े मुर्दे भी उखड जाते है। माना कि एक स्तीफें से संसद की कार्रवाई दुबारा चलने लगेगी। पर क्या इस स्तीफे के बाद किसी राजनेता की जबान कभी नहीं लड़खड़ायेगी। क्या तरीका है, नेता संयम का मर्म समझे, मिसाल बनें। कानूनी-कायदों के चलते लालू यादव अब सांसद नहीं बन सकते। लेकिन बयानों में साम्प्रदायिकता की जहर उगलना उनका आदत रहा। तमाम हंगामों के बाद भी किसी ने सबक नहीं लिया। भाजपा व तृण मूल कांग्रेस के बीच काफी तनातनी है। ममता बनर्जी ने जो बुदजुबानी बोली वह किसी को अच्छा नहीं लग सकता, लेकिन कुछ नहीं और उनके पार्टी के ही सांसद तापश पाल ने एक हाथ आगे बढ़कर बदजुबानी की सारी सीमाएं लांघ दी। सवाल पूछने पर ममता ने खेद जरुर जताया लेकिन कहा गलती हो गयी लेकिन क्या इसके लिए मैं उनकों मार डालू। ममता ने जब खेद जताया तो दूसरे दिन तपश ने यहां तक कह डाला कि सारे विपक्ष की हत्या कर दूं। 

ये छिंटाकसी, बड़बोलापन, ये बदजुबानी, धीेरे धीरे सियासत का चरित्र बनता जा रहा है। यहां अपनी गलती, अपनी कमीज की फिक्र किसी को नहीं यहां चिंता इस बात की है सामने वाले की कमीज हमसे कहीं ज्यादा न सफेद रह जाएं। धर्म जीने की राह दिखाता है, धर्म जीने का तरीका सिखाता है, लेकिन जब धर्म राजनीति में घुलती है तो नेताओं की बदजुबानी सिर चढ़कर बोलता, कटीली हो जाती है। संवैधानिक पदों की गरिमा तार-तार होती रही। हैदराबाद के असउद्दीन ओबेसी या उनके भाई अकबर ओबेसी ने खुलेआम कानून की धज्जियां उड़ाते नजर आया, कहा 15 मिनट में सौ करोड़ हिन्दुस्तानियों को पलभर में तबाह कर दूं। हालांकि इसके लिए उसे जेल जाना पड़ा। ये सच है कि राजनीति में दांव-पेंच, सह-मात का खेल चलता है लेकिन जब वह समाज की सोच को प्रभावित करने की तरफ बढ़ जाएं तो खतरनाक होता है। राजनीति की गंदी बात तो यह है कि इसकी कोई जाति नहीं होती, लेकिन ये अगर दिखने लग जाएं तो गलत है देश, समाज व संविधान के लिए। आज लालू, नीतिश, मुलायम, शरद अलग-अलग पार्टियों में होते हुए भी एक मंच, एक मोर्चे के निर्माण में जुटे है। गलत बयानी में भी एक मोर्चे पर एक-दुसरे से बहुत अलग थे। हां एक वक्त था जब एक दुसरे पर ही ये तीर छोड़ते थे, पर आज निशाना बदल चुका है। मुुलायम ने कहा लड़के है गलती हो जाती है। बिहार के सीएम मांझी ने कहा- 5 लाख दलित जुट जाएंगे तो विरोधि‍यों की अर्थी गंगा में बह जाएं। अनिल बसू ने ममता बनर्जी पर व्यक्तिगत ऐसी टिप्पणी की जिसे कहना मुश्किल है। देवगौड़ा के बेटे की बदजुबानी कही नहीं जा सकती। सपा में तो बदजुबानी बोलने वालों की लंबी फेहरिस्त है चाहे वह आजम खां हो या अन्य ए क्या कहते फिर रहे है उसे दुहराया नहीं जा सकता। इन्होंने कुत्ता बिल्ली नहीं बल्कि देश के सीमा पर तैनात जवानों को ही मजहबी दिवार में बांट दिया। मतलब राम के नाम पर जुबान फिसली तो संसद में हड़ताल हो गई. लेकिन क्या पहले किसी नेता ने कभी गंदी बात बोली ही नहीं? राम के नाम पर राजनीति कोई नई नहीं है। लेकिन राम के नाम पर आजकल संसद में हड़ताल है। 

मोदी सरकार में राज्यमंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने एक सभा में रामजादों से तुकबंदी कर गाली दे दी। एक तो साध्वी, वो भी सांसद और ऊपर से मंत्री। फिलहाल बात जो भी हो सियासत की बात करें तो यह बदजुबानी भी भाजपा वालों के लिए अच्छे दिन आ गए है की ओर इशारा कर रही है। कहावत हैं कि वही खूँटी हार उगलती है जिसने बुरे दिनों में हार लील लिया था। नल-दमयंती की इस कथा से प्रेरणा तो बीजेपी को मिली ही होगी। आजकल उसके तो अच्छे दिन आ ही गए हैं। कांग्रेस अपने वार से उसे घायल नहीं कर रही बल्कि उसे कम से कम दस साल तक सत्ता में बने रहने का आशिर्वाद दे रही है। कांग्रेस ने साध्वी निरंजन ज्योति के मामले में जिस तरह संसद को बाधित किया इससे यह मेसेज तो गया ही कि साध्वी दलित हैं, निषाद-मांझी अथवा मल्लाह जाति की हैं तथा गांव से आती हैं। अब इसका असर यह पड़ा कि यूपी में वही निषाद जाति जो कल तक मुलायम चच्चा की सपा के साथ थी अचानक बीजेपी की तरफ शिफ्ट होता दिखने लगी। दूसरे, साध्वी का दलित होना एक अलग दबंग दलित नेता की छवि दे रहा है जो कल तक मायावती के पास इंटैक्ट था। तीसरे, उनकी ग्रामीण पृष्ठभूमि का होना गांव के लोगों को पसंद आ रहा है। यानी नरेंद्र मोदी ने राजनीति में घृणास्पद बयान देने वाली नेत्री को हीरो बना दिया और कांग्रेस अब पूँछ पकड़ कर रो रही है। साध्वी निरंजन ज्योति निषाद की छवि फूलन देवी जैसी बनती जा रही है। बसपा के लिए भी इस दलित की बेटी का उभरना खतरनाक है। और चैधरी चरण सिंह की किसानी पृष्ठभूमि को अगर बीजेपी ले उड़ी तो बाकी की राजनीतिक पार्टियां क्या बाबा जी का ठुल्लू पकड़ कर बैठेंगी। राजनेताओं द्वारा किसी को बदजुबानी बोलना पहली बार तो हुआ नहीं है। राजनेता तो बोलते ही रहते हैं। उन्हें गंभीरता से लेता ही कौन है! उमर अब्दुल्ला जब सरे आम कहते हैं कि मोदी की सभा में जाने वाले बास्टर्ड हैं तो क्या वे कश्मीरी अवाम को हरामजादा नहीं बोल रहे थे? फिरहाल इस बदजुबानी बयानों पर तो रोक लगना ही चाहिए। 





(सुरेश गांधी )

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