काली कमाई का सफेद इंजीनियर यादव सिंह जैसे सैकड़ों-हजारों लालफीताशाही नौकरशाहों से लेकर राजनेताओं-व्यापारियों, जरायम की दुनिया से जुड़े माफियाओं व रीयलस्टेट कारोबारियों के पास हजारों-हजार करोड़ रुपये ब्लैकमनी के रुप में मौजूद है। बस उसे इंसाफ के नजरिए से देखने की जरुरत है। ताज्जुब तो इस बात का है कि यह सब काली कमाई अखिलेश सरकार के नाक के नीचे हो रहा है। अधिकारी चाहे सचिवालय में हो या फिर जिलों में या किसी विभागीय सेक्टर में अपनी रसूख के बल पर लाखों-करोड़ों का वारा-न्यारा कर रहे है। मतलब साफ है इन्हें सरकारी संरक्षण प्राप्त है तभी तो हजारों-हजार करोड़ के घोटालों के आरोप के बावजूद हजारों-हजार करोड़ का अपना साम्राज्य बनाने में सफल है और जांच में कुसूरवार पाएं जाने पर भी कार्रवाई के नाम तैयार फाइल सत्ता के दफतरों में धूंल फांक रही है। कहा जा सकता है कि अगर वाकई मोदी सवा सौ करोड़ लोगों के प्रधान सेवक है तो वह विदेशों में जमा काले धन को लाने के साथ ही सबसे पहले देश के ही नेताओं, नौकरशाहों-व्यापारियों के पास जमा खरबों-खरब कालाधन की बरामदगी कराएं
यह चैकाने वाली बात नही ंतो और क्या है। एक तरफ विदेशों में जमा लाखों-करोड़ो कालेधन को लेकर देश में जब हायतौबा मची है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भ्रष्टाचारियों पर सख्त कार्रवाई की दुहाई देते फिर रहे है तो दूसरी तरफ देश में ही काली कमाई का बड़ा खुलासा सरकार को कटघरे में ला खड़ा किया है। इस काली कमाई का सरताज और कोई नहीं बल्कि सरकार का ही अंग है। ओहदा है इंजीनियर का, तनख्वाह 70 हजार लेकिन दौलत एक हजार करोड़ की। इनकम टैक्स वालों की इस दौलत को देख आंखे खुली की खुली रह गयी। नोएडा विकास प्राधिकरण के प्रमुख यादव सिंह नामक इस इंजीनियर ने किसकी बदौलत कमाई है इतनी बेशुमार दौलत यह भी किसी से छिपा नहीं। सिर्फ यादव सिंह ही नहीं इनके जैसे एक-दो नहीं, हजारों प्रशासनिक पदों पर तैनात आफिसर जनता की गाढ़ी कमाई को लूटकर अपना अरबो-खरबों का साम्राज्य स्थापित कर कुंडली मारे बैठे है। यह सब गोरखधंधा देश के सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश में कुछ ज्यादा ही यूं कहें घूस लेना व देना रिवाज बन गई है। बड़ी बात तो यह है कि यह तगमा खुद हाईकोर्ट ने लगाई है। यहां के लालफीताशाही नौकरशाहों से लेकर राजनेताओं-व्यापारियों व जरायम की दुनिया से जुड़े माफियाओं के पास हजारों-हजार करोड़ रुपये ब्लैकमनी के रुप में मौजूद है। मतलब साफ है विदेश से ज्यादा देश में ही कालाधन मौजूद है। बस उसे इंसाफ के नजरिए से देखने की जरुरत है।
ताज्जुब तो इस बात का है कि यह सब काली कमाई अखिलेश सरकार के नाक के नीचे हो रहा है। अधिकारी चाहे सचिवालय में हो या फिर जिलों में या किसी विभागीय सेक्टर में अपनी रसूख के बल पर लाखों-करोड़ों का वारा-न्यारा कर रहे है। यादव सिंह भी इन्हीं रसूखदार अधिकारियों में से एक है जिसकी हनक से हर कोई वाकिब है। उसके हनक या रसूख का ही करिश्मा है कि जहां माया-मुलायम एक-दुसरे को फूटी आंखों देखना भी पसंद नहीं करते, इनकी सरकारों में यह हमेशा मलाईदार पदों पर ही तैनात रहा। शायद यह वजह भी रहा कि यादव सिंह के कारगुजारियों की शिकायतें व जांच कई बार हुई लेकिन हर बार वह सम्पर्को के बूते बच जाता था। और तमाम आरोपों के बाद भी यादव सिंह नोएडा, ग्रेटर नोएडा तथा यमुना एक्सप्रेस जैसे तीन-तीन प्राधिकरणों व विभागों की कमान उसके हाथों में है। नोएडा के सभी पार्को सहित पूरे नोएडा को चमकाने की जिम्मेदारी थी। नोएडा तो नहीं चमका लेकिन इसका हजारों करोड़ का साम्राज्य जरुर स्थापित हो गया। इतना ही नहीं करोड़ों के ठेके यादव सिंह ने खुद अपने मातहतो, सगे-संबंधियों को बांट रखा था। जानकारों की मानें तो संबंधित अधिकारी उसके काले कारनामों को जानने व हाथ में सबूत होने के बाद भी मुंह नहीं खोल पाते थे। उसके रसूख व दवाब के आगे जांच अधिकारियों को मानों सांप सूंघ जाता था। नोएडा अथॉरिटी में चीफ इंजीनियर यादव सिंह का सेक्टर-51 में आलीशान घर है। इंजीनियर की काली कमाई का अक्स सिर्फ सेक्टर 51 की कोठी में ही नहीं, बल्कि और भी बंगलों से झांकते हैं। यादव सिंह के ये ठिकाने सिर्फ नोएडा में भी नहीं, बल्कि ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद और दिल्ली तक है। आयकर विभाग की टीम ने यादव सिंह के ऐसे 20 ठिकानों पर छापेमारी की है। यादव सिंह ने अपनी महंगी गाडियों के काफिले के पार्क करने के लिये घर के सामने ही पूरी पार्किंग कब्जा कर रखी थी। घर के बाहर बने सरकारी पार्क को यादव सिंह ने पूरी तरह से अपने कब्जे में ले रखा था।
फिरहाल यादव सिंह के काली कमाई का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि इनकम टैक्स रेड में नोएडा सेक्टर 51 स्थित आवास सहित दर्जनों ठेकानों से से एक हजार करोड़ से भी अधिक संपत्ति हाथ लगे है। जिसमें उसके कार से 10 करोड़ रुपये कैश तो मिले ही है, 14 बैंकों में पचासों लाॅकरों की चाभियां, सौ करोड़ रुपए के आभूषण व अरबों की बेनामी संपत्तियों के दस्तावेज बरामद होने के साथ ही दो किलो सोने व हीरे के आभूषण बेडरूम से बरामद हुए है। आयकर महानिदेशक जांच कृष्णा सैनी के मुताबिक यादव सिंह की पत्नी कुसुम लता के स्वामित्व वाली कंपनी मीनू क्रिएशन प्राइवेट लिमिटेड में ओवर स्टाक, 40 बोगस शेयर वाली शेल कंपनी बनाकर प्लाट लेने के मामले में आयकर की कार्रवाई चल रही है। उनकी पत्नी की फर्म मीनू क्रिएशन के एक डायरेक्टर अनिल पेशावरी के आवास से 40 लाख रुपए की नगदी और ओवर स्टाक मिला तो दूसरी कंपनी मेकॉन इंफ्रा प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर राजेंद्र मनोचा की पार्क में लावारिस खड़ी की गई कार से 10 करोड़ रुपए की नगदी बरामद हुई है। आयकर विभाग का सर्च ऑपरेशन अभी भी जारी है। इनकम टैक्स अधिकारियों की मानें तो इस हजारी करोड़ी़ इंजिनियर के सिर्फ तीन मंजिले मकान की कीमत 50 करोड़ है। 40 से ज्यादा फर्जी कंपनियों व इस तरह के 50 से अधिक मकान होना पाया गया है।
कहा जा रहा है कि यादव सिंह के घर से मिले कंप्यूटरों की हार्डडिस्क और लेपटाॅप समेत जब्त सभी इलेक्टानिक्स उपकरणों की छानबीन की जाएं तो ढेरों भ्रष्ट अधिकारियों की पोल खोल सकती है। यूपी सरकार का ये सरकारी दामाद 90 लाख की कार में घूमता था। यादव की पत्नी कुसुमलता की कंपनी मीनू क्रिएशन में 12.5 करोड़ के कीमती गारमेंट्स का स्टाक पाया गया। कुसुमलता इसके निवेश का स्रोत नहीं बता सकीं। इसी कंपनी के दूसरे डायरेक्टर अनिल पेशावरी के नोएडा स्थित आवास की जांच में 40 लाख रुपए कैश मिले। वे भी नहीं बता पाए कि इतनी बड़ी रकम कहां से आई। यादव के नोएडा स्थित कोठी में हीरे, सोने और महंगे रत्नों वाले गहनों को शो-रूम की तरह सजाकर रखा गया था। आयकर विभाग के अफसरों ने गहनों को जब्त कर लिया है। मैकॉन के डायरेक्टर राजेंद्र मनोचा ने आयकर पूछताछ में 37.5 करोड़ रुपये की ब्लैक मनी स्वीकार की है। वहीं, मीनू क्रिएशन के दूसरे डायरेक्टर अनिल पेशावरी ने 12.5 करोड़ रुपये की ब्लैक मनी स्वीकारी है। तीन मंजिल के इस मकान में बकायदा स्वीमिंग पूल और प्राइवेट लिफ्ट भी लगी है। सूत्रों की माने तो यादव सिंह के इस मकान की साज सज्जा और रखरखाव पर जितने पैसे खर्च किए गए हैं वो किसी भी सरकारी अधिकारी के बूते के बाहर की बात है. लेकिन तीन-तीन अथॉरिटी के चीफ इंजीनियर यादव सिंह को शायद किसी की भी डर नहीं था तभी जिस नोएडा अथॉरिटी का चेयरमैन भी मामूली गाड़ी से चलता हो वहीं यादव सिंह ऑडी और बीएमडब्ल्यू जैसी गाडि़यों से चलता था।
गौरतलब है कि यादव सिंह को बसपा सरकार में प्रोन्नति देकर इंजीनियर इन चीफ बनाया गया था। वह कई दफे निलंबित किए जा चुके हैं। सपा की सरकार आने पर उन्हें फिर से बहाल कर दिया गया। भूमिगत केबल डालने के मामले में करीब 900 करोड़ रुपए आर्थिक अनियमितता का मामला सामने आया था। इस बार फिर यादव सिंह दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद में मिले दस्तावेजों के अनुसार दोषी पाए गए हैं। बसपा सरकारों में प्रोन्नति पाते-पाते अवर अभियंता यादव सिंह के लिए नए पद इंजीनियर इन चीफ का सृजत कर दिए गए थे। कई भूमि आवंटनों, कार्यो आदि की जांच में फंसे यादव सिंह के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज है। अखिलेश सरकार का यह अधिकारी तो एकबानगी है, इसके जैसे हजारों प्रशासनिक अधिकारियों की जांच कराई जाएं तो लाखों हजार करोड़ से भी अधिक काली कमाई का पर्दाफाश संभव है। इसमें अखिलेश यादव की पत्नी डिम्पल को अपनी पत्नी का सहेली बताकर लूटपाट व घूस लेने वाला आईएएस अमृत त्रिपाठी, आईपीएस अशोक शुक्ला कोतवाल संजयनाथ तिवारी जैसे भ्रष्ट अधिकारियों की जांच कराई जाएं एक हजार करोड़ से भी ज्यादा की संपत्ति इनके घर व सगे-संबंधियों के यहां बरामद हो सकती है। यादव सिंह के घर आयकर विभाग की आईटी शाखा जैसे-जैसे दस्तावेजों को खंगाल रही है। वैसे-वैसे यादव सिंह की काली कमायी उजागर होती जा रही है। अब तक करीब 400 करोड़ रुपए की रकम के निवेश और सम्पत्ति के बारे में आयकर विभाग ने जानकारी जुटा ली है।
आयकर विभाग ने नोएडा अथॉरिटी के बड़े ओहदों पर तैनात रह चुके अफसरों का विवरण जुटाना शुरू कर दिया है। इससे भूखंड आवंटन में कमीशन लेने वाले और कंपनी सहित भूखंड खरीद कर मोटी कमाई करने वाले बिल्डर्स भी फंसेंगे। भ्रष्टाचार, धांधली और आय से अधिक संपत्ति के दाग एक-दो नहीं बल्कि कई आला अफसरों पर हैं। ऐसे 60 से ज्यादा अफसरों की जांच अकेले विजिलेंस कर रही है। इनमें से 15 तो ऐसे हैं जिनके खिलाफ जांच पूरी भी हो चुकी है लेकिन उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी अटकी पड़ी है। इनमें से आईएएस तुलसी गौड़ और केके त्रिपाठी तो रिटायर भी हो गए। अफसरों के भ्रष्टाचार पर अखिलेश सरकार काबू नहीं लग पा रहा है तो इसके पीछे लेन-देन प्रमुख कारण है। भ्रष्टाचार व आय से अधिक संपत्ति के मामलों में जिन अफसरों के खिलाफ शासन में अब तक मुकदमा चलाने की मंजूरी की फाइल अटकी पड़ी है उनमें आईएएस तुलसी गौड़, केके त्रिपाठी के अलावा खीरी में डीएफओ रहे आईएफएस नीरज कुमार और अलीगढ़ में इसी पद पर तैनात रहे डीपी गुप्ता, पीपीएस श्याम लाल (सीओ बस्ती) और राहुल मिठास (सीओ मेरठ) के अलावा पीसीएस अफसरों में गोरखपुर के मुख्य नगर अधिकारी रहे शंकर लाल पांडे, एसडीएम हाथरस रहे आरएम दयाल, एसडीएम बुलंदशहर रहे लालमणि पांडे और एडीएम मुरादाबाद रहे सुरेश चंद्र गुप्त के नाम शामिल हैं। सुरेश चंद्र के खिलाफ विजिलेंस ने उनके मुरादाबाद में तैनात रहने के दौरान आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का मुकदमा दर्ज कराया था।
यूपी के सीनियर अधिकारी अरुण मिश्र अपनी कारगुजारियों को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहे। सत्ता दल के सीएम से उनकी पैठ हमेशा चर्चा में रही। 2005-06 के 600 करोड़ के टानिका सीटी घोटाले में उनका नाम आया। मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी थे। बसपा सरकार में इसकी जांच एसआईटी को सौंप दी गयी। आरोप साबित होने पर मायावती ने निलंबित तो कर दिया। लेकिन 2010 में एसआईटी की रिपोर्ट कार्रवाई के लिए प्रेषित की गयी लेकिन अब अखिलेश सरकार में फाइल को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। सीबीआई की जांच में मिश्र के पास 500 करोड़ की संपत्ति होने की बात सामने आई है। निदेशक सतर्कता भानु प्रताप सिंह ने बताया कि सतर्कता अधिष्ठान इस समय 40 से ज्यादा अफसरों के खिलाफ जांच कर रहा है। इसके अलावा तकरीबन 15 के खिलाफ अधिष्ठान ने जांच पूरी कर अभियोजन की स्वीकृति मांगी हुई है। 1980 बैच के आईएएस अफसर रहे तुलसी गौड़ के खिलाफ निर्यात निगम में तैनाती के दौरान भारी गड़बड़ी के आरोप लगे। विजिलेंस ने जांच में पाया कि गौड़ ने अपनी पत्नी के नाम से फर्म बनाकर उसे काम दिलाकर करोड़ों रुपये के वारे-न्यारे किए थे। लंबी चली जांच के बाद गौड़ के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी मांगी गई लेकिन इस दौरान वे रिटायर हो गए। स्मारक घोटाले में भी तीन आईएएस हरभजन सिंह, रवींद्र सिंह और मोहिंदर सिंह पर विजिलेंस की तलवार लटक रही है। पूर्व में भी विजिलेंस कई अफसरों के खिलाफ जांच कर सरकार को अपनी रिपोर्ट भेज चुकी है। इनमें आईएएस आरए प्रसाद, पीएन मिश्रा, सीएन दुबे, गुरुदीप सिंह, एमके गुप्ता, सत्यजीत ठाकुर, गिरिराज वर्मा, आरके सिंह, बृजेंद्र यादव, सुनंदा प्रसाद, वीके वार्ष्णेय, ललित वर्मा, डीएस यादव, एके उपाध्याय, आरके भटनागर, एके टंडन के नाम शामिल हैं। वैसे तो तत्कालीन कृषि उत्पादन आयुक्त अखंड प्रताप सिंह के खिलाफ भी विजिलेंस जांच की संस्तुति की गई पर बाद में उससे जांच वापस ले ली गई।
फिरहाल हाल ही में लखनऊ में केरोसिन ऑयल के लाइसेंस नवीनीकरण में घूसखोरी के मामले की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह व न्यायमूर्ति अरविंद कुमार त्रिपाठी द्वितीय की खंडपीठ ने इसकी जांच एसआईटी से कराने और हर माह कोर्ट को रिपोर्ट देने का निर्देश दिया। कोर्ट ने मामले में राज्य सरकार समेत अन्य पक्षकारों पर दो लाख रुपये बतौर हर्जाना ठोका है। इसमें जिला आपूर्ति अधिकारी ने 57000 रुपये घूस ली है। सीबीआई ने कथित तौर पर पांच लाख रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में रेलवे बोर्ड के रविमोहन शर्मा नामक अधिकारी को गिरफ्तार किया है। लाइसेंसिंग प्रणाली में भ्रष्टाचार पर करारा प्रहार करते हुए हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने कहा कि यूपी में घूसखोरी रिवाज बन गई। सवाल यह है कि करीब 1000 करोड़ लूटने वाले इंजीनियर के घर से मिले 2 किलोग्राम की हीरे के आभूषणो व करोड़ो की नगदी मौके से बरामद होने व जांच में मिले भ्रष्टाचार के कई पुख्ता सबूतो के बावजूद अब बर्खास्तगी तो दूर सपा सरकार एक बड़ी डील के जुगाड़ में लगी है। दिखावा के तौर पर उसे पद से हटा जरुर दिया गया है। यादव सिंह द्वारा तैनात रमारमण का नाम का इंजिनियर अभी भी मलाई काट रहा है जबकि उसके उपर भी भ्रष्टाचार के कई मामले अंकित है। वैसे भी ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी द्वारा तैयार की गयी रिपोर्ट की मानें तो भारत कालेधन के मामले आठवें स्थान पर है। इसकी बड़ी वजह टैक्स चोरी ही बताया गया है। यानी राजनेताओं से लेकर उद्योगपतियों और नौकरशाहों ने बड़े पैमाने पर टैक्स चोरी कर अपनी अवैध कमाई को देश के भीतर ही जमा कर रखा है। यह बात केन्द्र सरकार भी मानती है कि देश में संपत्तियों की खरीद-फरोख्त में जमकर काले धन का इस्तेमाल किया जा रहा है। काले धन के कारण ही जमीन-जायदाद की कीमतों में भारी उछाल बना है, जिसके चलते आम आदमी के लिए जमीन-जायदाद सपना होता चला जा रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो कालाधन भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए विस्फोटक साबित हो सकती है।
बड़ा सवाल तो यह है कि जब सरकार से लेकर हर कोई इस बीमारी से वाकिफ है तो फिर उसके ठोस उपाय क्यों नहीं किए जा रहे, क्यों इन्हें खुल्ला साड़ की तरह देश को लूटने के लिए छोड़ दिया गया है। माना कि विदेशी समझौतों के कारण देश से बाहर जमा कालाधन लाने में थोड़ी अड़चने जरुर है, लेकिन देश में ही मौजूद काले धन को इकठ्ठा करने में जुटे नेताओं से लेकर नौकरशाहों व व्यापारियों पर अंकुश लगाने में क्यो ढि़लाई बरती जा रही है। जबकि देश में ही इकठ्ठा किए गए काले धन को बरामद कर लिया जाएं तो अर्थव्यवस्था को बड़े ही आसानी से देश की मुख्यधारा में लाया जा सकता है। लेकिन सच बात तो यह है कि अगर देश में मौजूद काला धन इकठ्ठा कर रहे लोगों पर सरकार लगाम लगाई तो उसकी ही दुकान में ताले लगने की संभावना बढ़ जायेगी। क्योंकि राजनीति ही तो पैसा बटोरने का सबसे बड़ा जरिया है। चाहे वह छात्र संघ चुनाव हो या फिर लोकसभा, विधानसभा, महानगर एवं नगर पालिका हो या फिर जिला परिषद, ब्लाक प्रमुख हो या अन्य सबकी विसात पैसों पर ही अटकी है। भला क्यों नहीं इन चुनावों को लड़ने के लिए नेताओं को लाखों-करोड़ों पानी की तरह बहाना होता है तभी तो उनके सिर पर तमगे की पगड़ी बंधती है। दल हो नेता खुद को मिलने वाले चंदे की अगर काला चिठ्ठा खोल दिया जाएं तो क्या होगा आप समझ सकते है। शायद यही वजह है कि ये नेता या दल काला धन की बात तो खूब करेंगे लेकिन कार्रवाही नहीं कर सकते और इसी कमजोरी का लाभ नौकरशाह से लेकर व्यापारी-माफिया सभी टैक्स की चोरी कर लाखों-अरबों का अपना साम्राज्य बनाने में दिन-रात जुटे है। कहा जा सकता है कि अगर वाकई मोदी सवा सौ करोड़ लोगों के प्रधान सेवक है तो वह विदेशों में जमा काले धन को लाने के साथ ही सबसे पहले देश के ही नेताओं, नौकरशाहों-व्यापारियों के पास जमा खरबों-खरब कालाधन की बरामदगी कराएं।
(सुरेश गांधी)




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