विशेष आलेख : यहां अंधेरे में कटती है जि़न्दगी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


बुधवार, 25 मार्च 2015

विशेष आलेख : यहां अंधेरे में कटती है जि़न्दगी

kashmir power problame
वैसे तो समूचा जम्मू एवं कष्मीर ही संवेदनशील क्षेत्र है। लेकिन इसके सरहदी जि़लों की बात की जाये तो यह और भी गंभीर और चिंता का विषय बन जाता है। जहां लोगों को बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी कठिनाइयों से गुज़रना होता है। न तो नेता और न ही प्रशासन यहां सरकारी योजनाएं को क्रियान्वित करवाने के प्रति गंभीर नज़र आते हैं। जिसका नकारात्मक परिणाम इन क्षेत्रों में रहने वालों की रोज़मर्रा की जि़ंदगी पर नज़र आता है। समस्याओं से जूझ रहे ऐसे ही कुछ इलाकों में पुंछ जि़ले की मेंढर तहसील भी है। पुंछ जि़ला जोकि लाइन आफ कंट्रोल से चारों ओर से घिरा हुआ है, का मेंढर तहसील अंतराष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियों में बना रहता है। यह क्षेत्र पाकिस्तानी रेंजरों की बंदूक से निकलने वाली गोलियों का सॉफ्ट टारगेट होता है। वहीं दूसरी ओर सरकारी कागज़ों में यह क्षे.त्र काफी विकसित है। लेकिन परिस्थिति इससे प्रतिकूल है। अगर गौर से देखा जाए तो षायद यह क्षेत्र अब भी बहुत पीछे है जहां लोगों की बुनियादी चीजों के लिए भी तरसना पड़ता है। 
           
मेंढर तहसील से एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित डराना गांव है जहां आज भी लोगों को बिजली की किल्लत का सामना करना पड़ता है। यहां बिजली तो है लेकिन सिर्फ नाम की जहाँ जुगनुओं की तरह टिमटिमाते बल्ब जलते नज़र आ जाते है। स्थानीय लोगों ने इस संबंध में कई बार आवाज़े उठाई लेकिन उनकी यह आवाज कभी मीडिया की सुर्खियां नहीं बन सकी। हास्यास्पद बात यह है कि यहाँ के लोगों को बिजली भले ही नसीब न हो मगर हर माह बिजली का बिल देखने को जरूर मिलता है। इस सिलसिले में जब क्षेत्र के अभियंता मोहम्मद मकबूल से बात की तो उन्होंने बिजली की ऐसी किसी कमी से पहले तो इंकार और कहा कि हमें नहीं पता कि वहां पर लोगों को इतनी परेषनियों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन जल्द ही उन्होंने कठिनाइयों को स्वीकार करते हुए कहा कि हम जल्द ही कोषिष करेंगे कि वहां पर एक नया ट्रांसफार्मर लगाया जाए जिससे लोगों की परेषानियां दूर हो जाएं। उन्होंने आम नागरिकों का अपने अधिकारों के प्रति कम जानकारियां और इससे होने वाली परेशानी को स्वीकार करते करते हुए कहा कि लोग आवाज तो उठाते हैं लेकिन विभागीय अधिकारियों के सामने अपनी कठिनाइयों को हल करवाने से घबराते हैं। अगर हमें लोगों ने कहा होता तो अब तक उनकी मुष्किल हल हो चुकी होती। उन्होंने अपने कर्तव्यों को पूरा निभाने का वादा करते हुए कहा कि एक माह के अंदर अंदर नया ट्रांसफार्मर लगवा दूंगा और सारा का सारा सामान जैस तारें, पोल और जो भी जरूरत के सामान हैं वह मुहैया करा दिए जाएंगे। लेकिन गांव वालों की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुईं। जब यहां लाइने बिछाने के लिए कर्मचारी आए तो करीब के आर्मी कैंपस में रहने वाले वालों ने ऐतराज़ जताया और प्राथमिक रूप से इस सुविधा का उपयोग पहले उन्हें दिए जाने की बात कही। काफी अर्सा गुजर जाने के बाद इस मामले की जानकारी के लिए एक बार फिर इंजीनियर मोहम्मद मकबूल से बात की तो उन्होंने कहा कि विभाग के कर्मचारी आर्मी वालों से बात करने के लिए गए हैं और बहुत जल्द समस्या का हल निकाल लिया जायेगा। उन्होंने विभाग की ओर से विश्वास दिलाया कि गांव वालों को जल्द ही बिजली की समस्या से निजात मिल जाएगी।

ज्ञात हो कि इस समय देश में ऊर्जा बड़ी समस्या है। 2011 की जनगणना की रिपोर्ट में बिजली की पहुँच को लेकर जो आंकड़ेे दिए गए हैं वह इस बात को प्रमाणित करते हैं कि हम अब भी विधुतीकरण के मोर्चे पर बहुत पीछे खड़ेे हैं। एक ओर जहाँ कोयला आधारित ऊर्जा का विकल्प तलाशा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर अब तक देश के कई गांव में बिजली नहीं पहुँच सकी है। आंकड़ों के अनुसार देश में अब भी ऐसे हज़ारों गांव हैं, जहां विद्युतीकरण का काम आज तक पूरा नहीं हो सका है। हालांकि आंकड़े इस बात को भी दर्शाते हैं कि प्रति परिवार बिजली की उपलब्धता के मामले में जम्मू कश्मीर का रिकॉर्ड राष्ट्रीय औसत से काफी अच्छा है। प्रति परिवार बिजली उपलब्धता जहां राष्ट्रीय औसत 67.2 है वहीं जम्मू कश्मीर में यह 85.1 है। लेकिन यह आंकड़े और ज़मीनी सच्चाई कई प्रश्न खड़े़ करता है। सवाल उठता है कि क्या केवल घरों तक बिजली के तार पहुँचाना ही विधुतीकरण प्राप्त करने को लक्ष्य माना गया है अथवा उनमे करेंट का सप्लाई भी मुख्य बिंदु है? साथ ही साथ एक प्रश्न यह भी है कि क्या घरों में जुगनुओं की तरह टिमटिमाते बल्बों को शत प्रतिशत बिजली पहुँचाने के लक्ष्य के रूप में इंगित किया जाता है? इस समय देश में 2 लाख मेगावाट बिजली की आवश्यकता है जबकि हम मात्र एक लाख 76 हज़ार मेगावाट का ही उत्पादन कर पाते हैं। ऐसे में हमें ऊर्जा के दूसरे स्रोतों को भी ढूंढना होगा ताकि पुंछ जैसे दूरदराज़ और अतिसंवेदनशील क्षेत्रों को भी रौशन किया जा सके।  





आसिया आवान 
(चरखा फीचर्स)

कोई टिप्पणी नहीं: