विशेष आलेख : जलवायु परिवर्तन खाद्य सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


रविवार, 12 अप्रैल 2015

विशेष आलेख : जलवायु परिवर्तन खाद्य सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा

जलवायु परिवर्तन की समस्या एक विष्वव्यापी समस्या बनती जा रही है। इस समस्या ने देष के किसानों का जीना मुहाल कर दिया है। असमय बारिष से किसानों की फसलें बर्बाद हो गयीं और देष के कोने कोने से किसान आत्महत्या की खबरें सुनने को मिल रही हैं। अगर असमय बारिष का यह सिलसिला आगे भी इसी तरह जारी रहा तो यह समस्या और ज़्यादा विकराल रूप ले सकती है। यूपी में जो अन्नदाता दूसरों के लिए साल भर के अनाज का बंदोबस्त करते थे उनके लिए फसल के बर्बाद होने के बाद जीयो या मरो की स्थिति पैदा हो गई है। उत्तर प्रदेष में लगभग एक महीने में 135 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। बेमौसम बारिष की वजह से किसानों की तकरीबन 70 प्रतिषत फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गयी है। सरकारेें राहत पहुंचाने के बजाय अभी भी नुकसान के आंकड़े जुटाने में लगी हुई हैं। यूपी में बेमौसम बारिष एवं ओलावृश्टि से अब तक 40 जि़लों में फसलों को 1100 करोड़ से ज़्यादा का नुकसान हो चुका है। जबकि राज्य में 175 करोड़ रूपये की सहायता राषि का वितरण हो सका है। इसके अलावा राज्य सरकार ने 300 करोड़ रूपये और जारी करने के निर्देष दिए हैं। वहीं जम्मू एवं कष्मीर में सितंबर, 2014 में आई बाढ़ और अब फिर मार्च, 2015 में बाढ़ जैसे हालात का पैदा होना एक गंभीर मौसमी घटना कहा जा सकता है। मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण धरती की आबोहवा में गंभीर उतार-चढ़ाव आ रहे हैं। मौसमी तेवर में इस तरह के बदलाव के कारण ही पिछले एक दषक में भारी बर्फबारी, सूखा, बाढ़, गर्मी के मौसम में ठंड जैसी घटनाएं देखने को मिल रही हैं। पूना स्थित मौसम विज्ञान संस्था ‘‘इंस्टीट्यूट फॉर ट्रॉपिकल मटीरियलॉजी’’ के अनुसार दुनिया भर में हिमालय की पूरी शृंखला और तिब्बत में सबसे ज्यादा तापमान बढ़ा है। संस्था के मुताबिक वैसे तो जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान बढ़ रहे हैं लेकिन पिछले 150 सालों में दुनियाभर में जीतना तापमान बढ़ा है उससे दो गुना या उससे ज़्यादा तापमान तिब्बत और हिमालय में बढ़ा है। कष्मीर में जो आपदा आई है, हिमाचल और उत्तराखंड में जो बारिष और हिमस्खलन और भूस्खलन हो रहे हैं उन सब में जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा हाथ है।
             
एक दैनिक अखबार में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक 2015 जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के लिहाज़ से 100 साल के रिकाॅर्ड तोड़ रहा है। पिछले 100 साल में भूमध्य सागर से उठे पष्चिमी विक्षोभ हर दूसरे या तीसरे साल मार्च-अप्रैल में राजस्थान पहुंचते रहे हैं। पहले पष्चिमी विक्षोभ से 7 से 10 साल में एक बार हल्की बारिष या आंधी जैसी घटनाएं होती थी। लेकिन 2015 के मार्च-अप्रैल में जितने भी विक्षोभ पाक से राजस्थान आए, हर बार आंधी, ओले-बारिष का कहर बरपा। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार 100 साल में पहली बार विक्षोभ के बारिष-हिमपात में बदलने का प्रतिषत 100 फीसदी देखा गया। सर्दी, गर्मी, बारिष सब अपने समय से षिफ्ट हो रहे हैं। आगे ऐसा ही रहा तो जून-जुलाई की खरीफ की बुवाई भी षिफ्ट हो सकती है। मौसम विज्ञान केंद्र जयपुर के मुताबिक अप्रैल में लू चलनी चाहिए जबकि ओले पड़ रहे हैं। दिसंबर की जगह सर्दी जनवरी-फरवरी में पड़ी। बारिष भी एक-दो माह आगे षिफ्ट हो सकती है। जलवायु परिवर्तन कई देषों की खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। 
              
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य व कृषि संगठन (एफएओ) ने चेतावनी दी है कि उच्च तापमान, सूखा, बाढ़ और मिट्टी की उर्वरता में कमी के कारण मध्यपूर्व के कई देशों में कृषि को बड़े पैमाने पर नुकसान हो सकता है। एफएओ की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न भूख और कुपोषण जैसी समस्याओं का सबसे अधिक प्रभाव गरीबों, कुपोषितों और वैसे लोगों पर पड़ेगा, जो स्थानीय खाद्यान उत्पादन पर निर्भर हैं। देष के अलग-अलग हिस्सों में हुई असमय बारिष इसका जीता जागता उदाहरण है। जलवायु परिवर्तन हमारे जीवन पर कई ढ़ंगों से असर डालता है। ‘‘क्लाइमेट एषिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में 44 प्रतिषत लोगों ने पिछले दस सालों में यह महसूस किया है कि खेती की पैदावार घट रही है। किसानों ने महसूस किया है कि पैदावार खासतौर से अनियमित बारिष के कारण कम हुई है। जलवायु परिवर्तन पर अंतर्सरकार पेनल की रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एषिया में जलवायु परिवर्तन का गंभीर असर होगा और भारत जैसे देषों में बाढ़ और सूखे के कारण भोजन की कमी होगी। खेती पर आधारित अर्थव्यवस्था वाले देषों को इससे भारी नुकसान होने की संभावना है। यह रिपोर्ट आगे बताती कि जलवायु परिवर्तन का बुरा असर गेहंू की पैदावार पर पड़ेगा। उत्तर प्रदेष में मार्च माह से लगातार हो रही असमय बारिष से गेहंू की फसल को बड़ा नुकसान है। आमतौर से अप्रैल महीने से गेहंू की फसल की कटाई षुरू हो जाती है। लेकिन अभी भी फसल खेतों में खड़ी हुई है। जलवायु परिवर्तन की तुलना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आतंकवाद से कर चुके हैं। मोदी ने जलवायु परिवर्तन को उसी तरह चिंता का कारण बताया था जिस तरह आतंकवाद आज वैष्विक चिंता का कारण बन चुका है। जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए वैष्विक स्तर पर जागरूक अभियान चलाने की ज़रूरत है। अगर सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए आवष्यक कदम नहीं उठाए तो हमारी आने वाली पीढ़ी को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। 






liveaaryaavart dot com

गौहर आसिफ
(चरखा फीचर्स)

कोई टिप्पणी नहीं: