लोकसभाध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने व्यवस्था दी है कि ‘नाथुराम गोडसे’ के बारे में उल्लेख को छोड़कर ‘गोडसे’ अब कोई असंसदीय शब्द नहीं है. संसद ने 1956 में इस शब्द के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया था. 1948 में नयी दिल्ली में नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या कर दी थी. प्रतिबंध हटाने का आदेश कल पारित हुआ. इससे नासिक से शिवसेना सांसद हेमंत तुकाराम गोडसे को काफी राहत मिली है जिन्होंने ‘‘असंसदीय शब्दों’’ की सूची से ‘‘गोडसे’’ शब्द को हटाने की मांग की थी.
हेमंत तुकाराम गोडसे ने दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों को लिखे पत्रों में इस बात पर आश्चर्य जताया था कि किसी सांसद के उपनाम को ‘‘असंसदीय’’ कैसे माना जा सकता है. उन्होंने शब्द को असंसदीय शब्दों की सूची से हटाने पर जोर देते हुए कहा था, ‘‘यह निश्चित तौर पर मेरी गलती नहीं कि मेरा उपनाम गोडसे है और इसके अलावा मैं इसे बदल नहीं सकता एवं बदलूंगा भी नहीं क्योंकि यह मेरा पैतृक उपनाम है.’’ उन्होंने दलील दी थी कि प्रतिबंध ‘‘मेरे उपनाम और मेरे पूर्वजों पर अनुचित कलंक लगाता है.’’
उन्होंने कहा कि गोडसे समुदाय के बड़ी संख्या में लोग हैं जो महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में रहते हैं और वह भी इसी समुदाय के हैं. शिवसेना सांसद ने स्वयं को तब अजीब स्थिति में पाया जब राज्यसभा के उप सभापति ने शीतकालीन सत्र के दौरान एक सदस्य को ‘‘गोडसे’’ शब्द इस्तेमाल करने से रोक दिया था क्योंकि वह असंसदीय था. सदस्य को पता चला कि संसद ने 1956 में शब्द ‘गोडसे’ पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय किया था इसके बाद लोकसभाध्यक्ष ने यह आदेश पारित किया है, ‘‘अब नाम ‘‘गोडसे’’ को उपनाम के रूप में असंसदीय नहीं कहा जाएगा. केवल ‘‘नाथूराम गोडसे’’ का उल्लेख असंसदीय होगा. इसके अनुरूप ही सूची में परिवर्तन किया जाएगा.’’

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