बनारस : हिन्दुस्तान-पाकिस्तान की दूरियां सिमटती नजर आई - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

बनारस : हिन्दुस्तान-पाकिस्तान की दूरियां सिमटती नजर आई

  • गुलाम अली के गजलों से मानों हिन्दुस्तान-पाकिस्तान की दूरियां सिमटती नजर आई तो सरहद की दीवारें टूटती दिखी 

जी हां, इसकी गवाह बना तीनों लोकों में न्यारी धर्म एवं आस्था की नगरी काशी का वही संकटमोचन मंदिर जहां, संत सिरोमणि महान कवि गोस्वामी तुलसीदास को बजरंगबली ने दी थी साक्षात दर्शन। सीमा पार सहित दूरदराज से आएं संगीत सितारों के सुरों के खजाने से निकले तराने व राग के ताब कुछ इस तरह माहौल में धुले मानों धर्म और मजहब की बंटवारे और सरहदों की दीवारें पिघल गईं। यहां मस्तिष्क से गढ़ी नीति नहीं, हृदय से उपजी प्रीति थी जो लोगों के दिलों को छू गयी। लोगों ने महसूस किया, दूरियां नफरत की आग फैलाने से नहीं, बल्कि सुर और संगीत से मिटाई जा सकती हैं। मतलब साफ है सुर और ताल मिले तो भारत-पाकिस्तान में मेल खुद-ब-खुद हो जाएगा   

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बेशक, बुधवार की रात हनुमत लला के दरबार में सुर व संगीत का ऐसा महफिल सजा घंटो कुछ लोगों के पांव थिरकते रहे, तो कुछ ठहाकों में इस कदर लीन रहे मानों साक्षात बजरंगीबली से मुलाकत हो गयी हो। पाकिस्तान से आएं प्रसिद्ध गायक गुलाम अली के गजलों की ऐसी प्रस्तुति रही मानों हिन्दुस्तान-पाकिस्तान की दूरियां सिमटती नजर आई तो सरहद की दीवारें टूटती दिखी और धर्म-मजहब-जाति का भेद मिटता नजर आया। तो पं. हरिप्रसाद की वंशी की तान वृंदावन की छटा बिखरी। मौका था संकटमोचन मंदिर में आयोजित 92वां संगीत समारोह का। उस्ताद गुलाम अली खां के आजाद सुरों में ठुमरी फिजा में कुछ इस तरह बिखरी कि काशीवासियों के दिलों की धड़कनों से जुगलबंदी कर उठी। पं. विश्वनाथ की गायकी का जादू कुछ इस तरह चला कि देर रात तक संगत सुर गंगा में गोते लगाती रही। उस्ताद गुलाम अली ने अपने फलसफों के जरिए एहसास कराया संगीत का न कोई मजहब है और न ही सरहद। वह तो ऊपरवाले की इबादत का माध्यम है। फिर अपने पसंदीदा गीतों-धुनों की मोतियां पिरोते हुए आगे बढ़े, तो फिर पलट कर पीछे नहीं देखा, जवाब में काशीवासियों ने भी तहेदिल से उनका खैरमकदम करने में कसर बाकी नहीं रखा। गंगा-यमुनी संस्कृति का पैरोकार बनारस की मोहब्बत उस्ताद के दिल को छू गई। उनके बोल फूटे तो उसमें से भी निकला मोहब्बत का पैगाम, जिसे दो मुल्कों की अवाम हकीकत में बदलने का अरसे से इंतजार कर रही है। 

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एक नाम लेकर आया हूं, एक पयाम लेकर आया हूं, कबूल कर लीजिएगा प्यार का पैगाम लेकर आया हूं। पर लोगों की खूब तालियां बटोरी तो ‘चुपके-चुपके’ याद दिलाया आशिकी का वो जमाना, गजल से लोगों के ‘दिल में प्यार कर लहर’ पैदा कर दी। ‘फासले इतने बढ़ जाएंगे सोचा न था, मैं उसे महसूस कर सकता था, छू सकता न था..’। ‘रोज कहता हूं भूल जाऊं उसे, रोज ये बात भूल जाता हूं..’ पर लोगों ने खूब ठहाके लगाएं। दिल में एक लहर सी उठी है कोई, एक ताजा हवा चली है कोई, पर लोगों को बताने की कोशिश किया कि मैं पाकिस्तान से इस पवित्र नगरी में प्रेम का पैगाम देने आया हूं। भारत और पाकिस्तान दोनों मिलकर प्रेम बढ़ाए। ऐसा करने से दोनों मुल्क दुनिया के दूसरे देशों की तुलना में ज्यादा शक्तिशाली और समृद्ध हो जाएंगे। हालांकि वह मोदी का भी तारीफ करना नहीं भूले, कहा जब से वह पीएम बने हैं, भारत में बदलाव दिख रहा है। काशी में पहले की अपेक्षा काफी विकास हुआ है। मोदी प्रेम का पैगाम लेकर आगे बढ़ रहे हैं। काशी नाजुक चीज है। यहां के लोग रेशम की तरह नर्म और मुलायम हैं। इस शहर से कलाकारों या यूं कहें कि सभी को ढेरों प्यार मिलता है। काशी कलाकारों की अद्भुत नगरी है। ऊपर वाले के करम से रामभक्त हनुमान के दरबार संकटमोचन मंदिर में गाने का सौभाग्य मिला है। कहा, मंदिर में गाने से मजहब थोड़े ही बदल जाएगा। मैं फनकार हूं। गाना मेरा काम है। मस्जिद में गाऊं या मंदिर में, क्या फर्क पड़ता है। हनुमानजी का मन हुआ है कि वो मेरे मुंह से ठुमरी या चैती सुनें तो भला मैं क्या कर सकता हूं। और वैसे भी, हमारी इबादत तो संगीत है। संगीत की ही जुबां के जरिए हम लोगों के दिलों में जगह बनाते हैं। इसी के मार्फत लोग हमसे जुड़ते हैं। सुर और साज की जादूगरी ही ऐसी है जिससे पूरी दुनिया में यह एक जैसे ही सुने-समझे जाते हैं। सरहदें इनके सामने बेमानी हो जाती हैं। 

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मैं सरहद के उस पार से आया हूं। काशी के मंदिर से मोहब्बत का पैगाम देने को। यह बताने के लिए सुर और संगीत से दिलों की दूरियां मिटाई जा सकती हैं। इस मुल्क के लोगों की मोहब्बत मुझे बार-बार यहां खींच लाती है। बीते 35 साल से यहां आ रहा हूं। कभी नहीं लगा कि मैं सरहद पार का बाशिंदा हूं। यकीन जानिए, यहां से जो लोग उस तरफ जाते हैं, वे भी यही अहसास लेकर लौटते हैं। कहा, बच्चों को क्लासिकल संगीत सीखना चाहिए और इसके लिए एक अच्छे गुरु से ही तालीम ली जानी चाहिए। उर्दू से तहजीब आती है और इंसान का व्यक्तित्व और निखर आ जाता है। भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में मिठास लाने के लिए दोनों मुल्कों के फनकारों का समूह बनाने की जरूरत है। दिल को जितना नाजुक करेंगे, संबंधों में उतना बदलाव आएगा। मैं तो चाहता हूं कि दोनों देशों की अवाम और सियासतदां के सुर मिलें। सुर और ताल मिल गए तो मेल खुद-ब-खुद हो जाएगा। भारत-पाकिस्तान के सियासतदानों से इल्तिजा है कि दोनों देश जितनी मोहब्बत बढ़ाएंगे, दुनिया में हमारी ताकत उतनी बढ़ेगी। संगीत मतभेदों को कम करता है। यह प्यार फैलाता है और वातावरण को शांत बनाता है।  

संगीत किसी धर्म या देश की सीमा से नहीं बंधा होता है। अलग-अलग देश के रूप में जमीनों का बंटवारा भले हुआ है लेकिन संगीत का बंटवारा कभी नहीं हो सकता। संगीत सिर्फ स्वर जानता है। सरहद की दीवारें संगीत की धुन को नहीं रोक सकती हैं। उनके मुताबिक, कत्थक में घुंघरू नायिका और तबला नायक होता है। दोनों में प्यार जितना गहरा होगा, संगीत के साथ जुगलबंदी उतनी ही बेहतरीन होगी। तबले की थाप के साथ घुंघरू की झंकार ही कत्थक का असली आनंद है। इन दोनों के प्यार की कड़ी वक्त के साथ जितनी मजबूत होती जाएगी, आनंद की गहराई उतनी ही बढ़ती जाएगी। कहा कि इसमें एक तरफ मंदिर में पूजा होती है और दूसरी तरफ कलाकार अपनी श्रद्धा, सुरों के जरिए प्रस्तुत करते हैं। भक्ति का ऐसा संगम दुनिया में कहीं नहीं है। यह संगीत नहीं एक आराधना है, जहां हर कलाकार एक भक्त है। संगीत कहीं भी बांटता नहीं है। यह लोगों को आपस में जोड़ता है। नई पीढ़ी जितनी मेहनत करेगा, सीख समझ कर खुद में भाव भरेगा, बेशक वह उतना ही आगे बढ़ेगा। दूसरों से अलहदा भी दिखेगा। बोले, ये मत सोचो बात कौन करता है, यह सोचो बात क्या करता है। दोनों देशों में जो भी मतभेद हैं, भर जाएंगे। दूरियां नफरत की आग फैलाने से नहीं, सुर और संगीत से मिटाई जा सकती हैं। फिल्मों में गड़बड़ गानों का प्रचलन बढ़ गया है इसलिए उससे बचने की ही कोशिश रहती है। 

इससे पहले पं. बिरजू महाराज के युवा पुत्र पं. दीपक महाराज ने मंच संभाला। कथक में उपज, थाट, उठान, रेला, गत, फर्द, बंदिश समेत पारंपरिक प्रस्तुतियां दीं। तीन ताल में धुन मंगल मूरत मारुति नंदन.. पर भाव सजाए। घुंघरू को नायिका व तबला को नायक बनाया और दोनों के बीच सधी जुगलबंदी कराया। परंपरागत तिहाई, परन, मेघ का चलना, गत में शेर हाथी की चाल तो रामकृष्ण के रुप सजाए। मयूर की चाल पर गत निकासी और सूर के पद उधौ मोही बृज बिसरत नाहीं.. के साथ परिसर हर हर महादेव उद्घोष से गूंज उठा। पं. हरिप्रसाद चैरसिया ने राग दुर्गा में बांसुरी की तान छेड़ी और हनुमत दरबार में वृंदावन उतार दिया। उन्होंने तीन ताल द्रुत गत में बंदिश पर तालियां बटोरीं। पायो जी मैंने राम रतन धन पायो.. भजन से दिलों में उतरते चले गए। बेगम अख्तर की मशहूर गजल हमरी अटरिया पर.. से समापन किया। नई दिल्ली के पं. विश्वनाथ ने राग मधुकौंस में गायन का श्रीगणोश किया और सुर राग के समन्वय से मदहोश कर दिया। बिरजू महराज ने कहा, संगीत को खुद में जैसा महसूस करोगे, वो वैसा ही अहसास देगा। यदि कोई खाने में संगीत ढूंढता है तो वहां भी यह दिल की गहराइयों को छू लेगा। स्वागत महंत प्रो. विश्वंभरनाथ मिश्र और संचालन पं. हरिराम द्विवेदी व प्रतिमा सिन्हा ने किया।

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