विशेष आलेख : मध्यप्रदेश के सतना जिले में मातृत्व और बाल स्वास्थ की स्थिति - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

विशेष आलेख : मध्यप्रदेश के सतना जिले में मातृत्व और बाल स्वास्थ की स्थिति

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मध्यप्रदेश के सतना जिले का मझगवां ब्लाक उ.प्र. की सीमा से सटा हुआ है। भौगोलिक रुप से यहां की स्थिति पहाड़ांे और जंगलो वाली है, अधिकतर खेती सिर्फ प्रकृति पर आधारित है, जिसमें यदि मौसम अनुकूल रहा तो वर्ष मे गेहू, चना, बाजरा, धान, अरहर आदि की फसलंे एक बार होती है। जनसंख्या की दृष्टि से ब्लाक में दलित और आदिवासी समुदाय की जनसंख्या सर्वाधिक है। आदिवासी समुदाय में यहां कोल, मवासी, गोंड, खैरवार है, जिसमें कोल, मवासी तथा खैरवार आदिवासी समुदाय की परिस्थितियां यहां बेहद चिन्ताजनक हैं। इस समुदाय के सामने वर्तमान में अपना जीवन यापन और भरण-पौषण का विकट संकट विद्यमान है।
           
96 ग्राम पंचायतों वाले इस ब्लाक में लगभग 1000 छोटे-बड़े राजस्व व गैर राजस्व गांव है। इस ब्लाक में आदिवासी बाहुल्य अधिकांश गांव पहाड़ों के किनारे, जंगलों के बीच बसे हैं। इन गावों में पहंुच मार्ग, पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ की मूलभूत सेवाओं का व्यापक अभाव है। वर्षांे से सरकार द्वारा विकास व सामाजिक सुरक्षा की तमाम योजनाएं यहां कोल, मवासी, खैरवार के नाम पर बनती व चलती आईं हैं। किंतु अभी तक यथोचित लाभ उन तक नहीं पहुंचा हैं। कारण कि शासन-प्रषासन के साथ स्थानीय दबंगों की मिली भगत का जाल बेहद मजबूत और घना है, सामंतषाही का रौब यहां आज भी आसानी से दिखाई देता है। शोषण, बेगारी और दासता के जिंदा उदाहरण लगभग हर गांव में हैं। 
        
जंगलों का कम होना,लघु वनोपज का निरंतर घटना इसके साथ ही जंगलों पर सख्त होता सरकारी नियंत्रण भी यहां की आदिवासी समुदाय की दुर्दषा का बड़ा कारण है। आज भी इस क्षेत्र के हजारों आदिवासी परिवार जंगल से जलाऊ के गट्ठे रोजाना सर पर ले जाकर नजदीकी कस्बों में बेंचकर अपने घर का चूल्हा जलाते हैं। ऐसी विकट परिस्थितियों में इनके नौनिहालों का जीवन हर पल कुपोषण और भुखमरी की दोधारी तलवार पर रहता है। 

बच्चों में कुपोषण की स्थिति 
मवासी, खैरवार, कोल आदिवासी समुदय के 6 वर्ष तक के बच्चों में कुपोषण की स्थिति खतरनाक है। कोल समुदाय के बच्चों में कुपोषण 40 से 50 प्रतिषत और मवासी व खैरवार समुदाय के बच्चों में 50 से 70 प्रतिषत तक है। विगत वर्षों में क्षेत्र के 30 गांवों में हमारे संगठन के साथियों ने लगभग 300 कुपोषित बच्चों की मृत्यु की घटनाओं से जुड़े तथ्यों को संकलित किया था। यदि व्यापकता से ब्लाॅक के अन्य गांवों की जानकारी एकत्र की जाए तो शायद यह संख्या प्रतिवर्ष हजारों बच्चों में जाएगी। 

चित्रकूट (मझगवां) परियोजना के अनुसार कुपोषण की स्थिति
चित्रकूट (मझगवां) परियोजना कार्यालय के अनुसार 153 कुल आंगनवाड़ी केन्द्र और 33 मिनी केन्द्रों में माह जुलाई 2013 में कुपोषण की स्थिति निम्नवत रही। 0 से 5 आयु वर्ग के कुल 16218 बच्चों में से 4186 बच्चे कम वजन के तथा 615 बच्चे अति कम वजन के हैं। उपरोक्त आंकड़ों से ऐसा लग रहा है कि क्षेत्र में अति कम वजन (गंभीर कुपोषित) बच्चों की संख्या कम है। अर्थात कुपोषण का ग्राफ घटा है। जबकि, यह स्थिति सही नहीं है।

एक वर्ष से लगातार ट्रेकिंग किए गए बच्चों की स्थिति
हमारे द्वारा क्षेत्र के 09 गांवों बरहा भवान, गहिरा गढ़ी घाट, पिण्डरा कोलान, रामनगर खोखला, कानपुर, पड़ो, पुतरिहा, झरी काॅलोनी, किरहाई पोखरी, आदि के 358 बच्चों की माह जनवरी से अगस्त 2013 तक प्रतिमाह ट्रेकिंग की गई जिसमें 42 गंभीर कुपोषित बच्चों की स्थिति में कोई सुधार नजर नहीं आया। 

कुपोषण के मुद्दे पर स्थानीय सामाजिक नजरिया 
स्थानीय भाषा में लोग अति कुपोषित बच्चों को सूखा रोग ग्रसित बच्चा कहते हैं। परिजन कई मौकों पर ऐसे बच्चों का इलाज दवाओं या झाड़ फूंक से करते हैं। कई बार दोनों तरीके अपनाते हैं।  प्रभावित परिवार के लोग ऐसे बच्चों की स्थिति या मृत्यु के बारे में भाग्य और विधाता की नियति मानते हैं। स्वास्थ्य विभाग और एकीकृत बाल विकास परियोजना के लोग कहते हैं कि ‘‘माता पिता की लापरवाही और अधिक संतानें पैदा करना इसका मुख्य कारण है।’’ उच्च वर्ग के स्थानीय लोग इसे कर्मोे का फल व भगवान के लेखा-जोखा से जोड़ते हैं। 

कोल, मवासी समुदाय की स्थितिः 
मझगवां ब्लाक के 20 आदिवासी गांवों के एक गैर सरकारी अध्ययन के मुताबिक यहां 70 प्रतिषत परिवार भूमिहीन हैं। शेष 30 प्रतिषत परिवार भी अधिकतम 5 एकड़ तक भूमि के स्वामी हैं। आदिवासियों की कुछ जमीनों पर यहां के भूमि माफिया या दबंग वर्ग के लोगों का अवैध कब्जा है। कुछ धोखाधड़ी व कर्ज आदि के कारण भी यह स्थिति बनी है। अधिया, बटाई की खेती, रोजनदारी की मजदूरी, फसल कटाई के समय की मजदूरी, महुआ, जड़ी-बूटी, तेंदू पत्ता आदि लघु वन उपजों का संकलन और पूरे साल जलाऊ लकड़ी के गटठों को बेचकर आने वाली रोजमर्रा की आय ही इस समुदाय के पालन पोषण का मुख्य जरिया है। शादी ब्याह और बीमारी आदि पारिवारिक वजहों से लिया गया स्थानीय साहूकारों व दबंगों के कर्ज में भी ब्याज के रूप में इनकी कमाई का बड़ा हिस्सा जाता है। कई नौजवान महिला-पुरूष विगत 5-6 वर्ष से पलायन पर जाने को भी मजबूर हुए हैं। 
            
शिक्षा का प्रतिषत 30 वर्ष से ऊपर के लोगों के कोल समुदाय में लगभग 45 व मवासी में लगभग 30 है। हाई स्कूल से ऊपर तो यह अनुपात मात्र 10 प्रतिषत ही है। अभी भी लड़कियों की शादी आम तौर पर 15-16 वर्ष की उम्र में कर दी जाती है। शादी के बाद ज्यादातर नव विवहित दम्पत्ति अपना अलग परिवार बसाकर अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाते हैं। ज्यादातर लड़कियां 10 वर्ष की उम्र होते तक माता पिता के साथ घर, खेत और जंगल के कामों में बराबर सहयोग करने लगती हैं। घर का पानी भरना, खाना पकाना, साफ-सफाई व छोटे बहन भाइयों की देखभाल का जिम्मा भी इन पर आने लगता है। प्राथमिक स्वास्थ्य और टीकाकरण की सेवाएं गर्भकाल से एक वर्ष तक बच्चों को मिलने का प्रतिषत यहां पर 27 है। यहां लगभग हर आदिवासी गांव में पेयजल की समस्या है। 
         
96 ग्राम पंचायतों के बीच ब्लाक मुख्यालय पर स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र ही कुछ हद तक लोगों की स्वास्थ्य सुविधा का विकल्प है। शेष अन्य स्वास्थ्य केन्द्र सरकारी अनदेखी व विभागीय लापरवाही का षिकार हैं। ऐसे में दर्जनों झोलाछाप डाक्टर, अवैध क्लीनिक एवं गांव-गांव में घूमने वाले अनपढ़ डाक्टरों से अनजाने में स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त कर लोग अपनी जान जोखिम में डालने को मजबूर हैं। गरीबी के कारण भी लोग जिला मुख्यालय या अच्छे डाक्टरों तक नहीं पहुंच पाते हैं। 





आनंद
(चरखा फीचर्स)

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