कश्मीरी पंडितों की घर-वापसी का मुद्दा एक बार फिर गरमा रहा है.एक बार तो तय हो गया था कि विस्थापित कश्मीरी पंडितों को अलग से एक आवासीय कॉलोनी में बसाया जायगा और इसके लिए भूमि,राजस्व आदि मुहैया करने की भी बात चली थी.अभी बात चली ही थी कि वादी के अलगाववादियों के कान खड़े हो गये और उन्होंने राज्य-केंद्र सरकार के इस बहुप्रतीक्षित प्रस्ताव का विरोध करना शुरू किया और गत शनिवार को घाटी में बंद का आवाहन भी किया.अलगाववादियों के रुख को देखकर या फिर उनके दबाव में आकर राज्य के मुख्यमंत्रीजी ने भी उनके सुर में सुर मिलकर घोषणा की कि पंडितों को किसी अलग ‘टाउनशिप’ में बसाने का सरकार का कोई इरादा नहीं है.पंडित चाहें तो वे अपने पुराने घरों में वापस आकर रह सकते हैं. मुख्यमंत्री द्वारा विधानसभा में इस मुद्दे पर ‘यू टर्न’ लेने पर कई सवाल खड़े हुए हैं.कश्मीरी-पंडित समर्थक एक विधायक ने कहा है कि क्या अब आतंकी/अलगाववादी कश्मीरी पंडितों का भविष्य तय करेंगे? विधायक ने स्पष्ट किया कि हुर्रियत नेता और अलगाववादी पाकिस्तानी एजेंडे पर वादी में काम कर रहे हैं.पंडितों को कश्मीर वापस लुटने-पीटने या गोली खाने के लिए नहीं भेजा जा सकता.यह उनके साथ अन्याय होगा.
इधर, एक बात और सामने आई है.सुना है जम्मू कश्मीर राज्य के स्वतंत्र विधायक इंजीनियर रशीद ने एक बयान जारी कर कहा है कि कश्मीर से पंडित अपनी मर्जी से चले गये हैं और उसके लिए उन्हें माफ़ी मांगनी चाहिए.हालांकि उनके इस बेहूदा बयान को राज्य सरकार ने अस्वीकार करते हुए माना है कि विषम और भयावह परिस्थितियों के कारण ही पंडितों को वादी से पलायन करना पड़ा मगर रशीद का यह बयान पंडितों के जख्मों पर नमक छिडकने से कम नहीं माना जा सकता.कश्मीरी पंडितों के कई संगठनों ने रशीद के इस अजीबोगरीब बयान पर अपनी कड़ी आपत्ति व्यक्त की है.
यहाँ पर केंद्र और राज्य सरकार के अलगाववादियों के प्रति नर्म रुख की चर्चा करना अनुचित नहीं होगा.जो लोग आये दिन कश्मीर के लिए आज़ादी की गुहार लगा रहे हों,जिनका भारत के संविधान में विश्वास नहीं हो ,जो कश्मीर में पाकिस्तानी झंडा लहराते हों आदि,क्या ऐसे देश-विरोधी इस लायक हैं कि उन्हें जनता के टैक्स के पैसे से सुरक्षा मुहैया की जाय?एक खबर के मुताबिक जिन अलगाववादियों/आतंककारियों ने बन्दूक की नोक पर कश्मीर से पंडितों को मार भगाया,पिछले अनेक वर्षों से उन्हीं की सुरक्षा के लिए सरकारें(केंद्र/राज्य)करोड़ों रूपये उनकी सिक्यूरिटी पर खर्च कर रही है.यह कैसी कूटनीति है?एक सवाल यह भी उठता है कि जिन अलगाववादियों/आतंककारियों ने अनेक मासूम और बेगुनाह पंडितों को मौत के घाट उतारा,उनके घर जलाये,लूटपाट की आदि उनपर मुकद्दमे क्यों नहीं चलते या फिर वे जेल के अंदर क्यों ठूसें नहीं जाते?उल्टा,ऐसे अपराधी निःशंक घूम-फिर रहे हैं और धौंस दिखाकर सरकार से हर तरह की सुविधा भी ले रहे हैं. कहना न होगा कि कश्मीरी अलगाववादियों को भारत-देश की कोई भी चीज़ स्वीकार्य नहीं है:भारतीय संविधान,भारतीय कानून,भारतीय झंडा,भारतीय राष्ट्रगान आदि-आदि।अगर कोई चीज़ स्वीकार्य है तो वह है देश की करेंसी/मुद्रा जिससे उनको परहेज़ नहीं है.
सरकारें आयीं और चली गयी मगर कश्मीरी पंडितों के कष्ट अभी तक दूर हुए नहीं हैं.सचाई यह है कि चूंकि इस अमन-पसन्द कौम का अपना कोई वोट बैंक नहीं है, इसी लिए शायद इनकी कोई सुनता भी नहीं है और अपने ही देश में शरणार्थी बने हुए हैं.आशा की जानी चाहिए कि नई सरकार इनके दुःख-दर्द जल्दी ही दूर करेगी और इनके लिए एक अलग और सुरक्षित आवासीय कॉलोनी या होमलैंड बनाने के इनके 25 वर्ष पुराने सपने को साकार कराने की पहल करेगी।वोट मांगने के लिए वायदे करना एक बात है और उन्हें निभाना दूसरी बात।
शिबन कृष्ण रैणा
अलवर

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