एक आईटीआई कार्यकर्ता ने राज्यपाल को भेजा सूचना आयुक्त के कारनामों का पुलंदा, अनिल को बर्खास्त करने की मांग
- पद के दुरुपयोग करने के कई मामले किए उजागर, दो लोगों के साथ गठजोड़ का भी किया खुलासा
- अफसरों को धमकाने का भी लगाया गया आरोप, आयुक्त की चल-अचल संपत्ति जांच की मांग भी
देहरादून,4 अप्रैल । एक ही आरटीआई कार्यकर्ता की शिकायत पर दो मामलों में सीबीआई जांच की सिफारिश करने वाले सूचना आयुक्त अनिल शर्मा खुद ही आरोपों के घेरे में आ गए हैं। एक आरटीआई कार्यकर्ता ने सूचना आयुक्त के कई कारनामों का खुलासा करते हुए मामलों की जांच और पद से बर्खास्त करने की मांग की है। नैनीताल के रामनगर निवासी आरटीआई कार्यकर्ता और वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार ने राज्यपाल सचिवालय में सूचना आयुक्त के खिलाफ एक शिकायती पत्र रिसीव कराया है। इसमें खुलासा किया गया है कि सूचना आयुक्त अनिल शर्मा किस तरह से पद का दुरुपयोग करके मनमाने आदेश जारी कर रहे हैं। इससे एक तरफ सूचना मांगने वालों के अधिकारों का हनन हो रहा है तो दूसरी और सरकारी अफसरों की चरित्र पंजिका में प्रतिकूल प्रविष्टयां दर्ज हो रही है। इसमें यह भी कहा गया है कि सूचना आयुक्त किस तरह से महज दो आरटीआई कार्यकर्ताओं की अपीलों पर मनमाने आदेश कर रहे हैं। शिकायत में नियमों का हवाला देते हुए कहा गया है कि द्वितीय अपील में सूचना आयुक्त को केवल यह देखना होता है कि निर्धारित समय में सूचना उपबल्ध कराई गई है या फिर नहीं। इस दूसरी अपील में न तो किसी तरह की जांच का आदेश दिया जा सकता और न ही सीबीआई जांच समेत कोई अन्य सिफारिश की जा सकती है। सूचना आयुक्त ने हरिद्वार में एक ट्रस्ट के ट्रस्टी रमेश चंद्र शर्मा की दूसरी अपील की सुनवाई करते हुए दवा घोटाला कांड की सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी। (यहां बता दें कि कुंभ घोटाले में सीबीआई जांच की सिफारिश भी इसी रमेश चंद्र शर्मा की दूसरी अपील की सुनवाई के दौरान इन्हीं अनिल शर्मा ने की है) शिकायत में कहा गया है कि आरटीआई एक्ट की धारा 19 (8) (बी) और धारा 20 में सूचना आयुक्त के पास क्षतिपूर्ति दिलाने और जुर्माना लगाने का अधिकार है। सूचना आयुक्त ने अरविंद कुमार की अपील संख्या 14692/14, रमेश शर्मा की अपील संख्या 3640/10, किरन शर्मा की अपील संख्या 10561/13 और प्रेम सिंह की अपील संख्या 10588/13 में मनमाने तरीके से कारण बताओ नोटिस जारी किए और खुद ही बगैर कोई कारण बताए निरस्त भी कर दिए। इसी तरह से विनोद प्रकाश की अपील संख्या 15117/2014 के टाइम वार्ड मामले को दबा दिया गया। अरविंद कुमार की अपील संख्या 14629/2014 खुद ही तय कर दिया गया कि वाछिंत सूचना उपलब्ध करा दी गई है। महेंद्र सिंह की अपील संख्या 15152/2014 में आयुक्त ने खुद ही हो परस्पर विरोधी बयान दिए हैं। जय प्रकाश के मामले में सूचना आयुक्त ने अधिकारी पर जुर्माना लगाने की वजाय एक निष्प्रभावी आदेश जारी कर दिया। इस शिकायती पत्र में राज्यपाल से आग्रह किया गया है कि सूचना आयुक्त के कारनामों की जांच सर्वोच्च न्यायालय से कराकर इन्हें बर्खास्त कर दिया जाए। इस पत्र में सूचना आयुक्त के अब तक के आदेशों की फिर से सुनवाई कराने और इनके आदेश पर अफसरों के खिलाफ दर्ज प्रतिकूल प्रविष्टियों को खत्म किया जाए। शिकायत में कहा गया है कि अनिल शर्मा की चल और अचल संपत्तियों की जांच कराया जाना भी जरूरी है।
निर्णय देने का तरीका भी गलत
शिकायत में कहा गया है कि सूचना आयुक्त निर्णय देने में भी गड़बड़ी कर रहे हैं। किसी भी अपील का निर्णय खुले में न तो सुनाया जाता है और न ही हस्तारित किया जाता है। अपील करने वालों को यह निर्णय डाक से कई रोज बाद मिलते हैं। लेकिन उस पर लिखा होता है कि आज इस निर्णय को खुले में घोषित और हस्ताक्षरित किया गया है।
कहीं साठगांठ तो नहीं
शिकायत में कहा गया है कि सूचना आयुक्त की रमेश चंद्र शर्मा और जयपाल सिंह से साठगांठ हैं। इन दोनों से एक हजार सूचनाएं मांगी है। इनमें जयपाल की 148 अपीलों और रमेश चंद्र शर्मा की 132 अपीलों की सुनवाई सूचना आयुक्त अनिल शर्मा खुद ही कर रहे हैं।
शासन स्तर पर हो रही जांच
राजभवन में यह शिकायती पत्र तमाम दस्तावेजी सबूतों के साथ पांच दिसंबर-214 को दिया गया था। सूत्रों ने बताया कि राजभवन से यह शिकायत सरकार के पास भेजी गई है। इसमें उठाए गए बिंदुओं की जांच की जा रही है। इस बार का खुलासा शिकायतकर्ता को आईटीआई के तहत दी गई एक सूचना में किया गया है।
जांच प्रक्रिया पर उठ रहे सवाल, आखिर रूबी की तहरीर क्यों नहीं ले रही पुलिस
- महिला के वरिष्ठ आईएएस पर गंभीर आरोप, एसआईटी के साथ पुलिस भी कर रही पूछताछ
- देेर रात किया था रूबी को गिरफ्तार
देहरादून,4 अप्रैल। देश के आईएएस, आईपीएस अफसरों को टेªनिंग देने वाली सबसे बड़ी संस्था लालबहादुर शास्त्री एकेडमी में एक महिला छः माह से फर्जीवाड़ा करके रहती रही लेकिन एकेडमी के पूरे अमले को इसकी भनक तक नहीं लग पाई और अब एकेडमी के अफसरों ने इस मामले में अपने को पाक साफ साबित करने के लिए महिला के खिलाफ मुकदमा कायम कराकर भले ही उसे जेल की सलाखों के पीछे पहुंचवा दिया हो लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि लालबहादुर शास्त्री एकेडमी क्या एक धर्मशाला है जहां कोई भी किसी को ठहरा दे? एसआईटी टीम ने जिस तरह से इस जांच को अति गोपनीय बना दिया है उससे उसकी मंशा पर भी सवालिया निशान लगने शुरू हो गए हैं। लाख टके का एक ही सवाल अब भी है कि आखिरकार रूबी को किसने लालबहादुर शास्त्री एकेडमी तक पहुंचाया? एसआईटी टीम ने रूबी को अपने यहां ठहराने वाले गार्ड को भी हिरासत में लेकर उससे अभी तक पूछताछ नहीं की है। खुफिया एजेंसियों में इस बात को लेकर भी बहस चल रही है कि इतने बड़े हाईप्रोफाइल मामले की जांच आखिरकार सीबीआई को क्यों नहीं दी जा रही है। इस मामले में अगर सीबीआई जांच करने के लिए आगे आई तो यह तय है कि लालबहादुर शास्त्री एकेडमी में तैनात कई बड़े अफसर भी बेनकाब हो सकते हैं जिन्होंने संभवतः रूबी को एकेडमी में बड़ी खामोशी से ठहराने का पूरा चक्रव्यूह रचा हुआ था? उल्लेखनीय है कि लंबे समय से लालबहादुर शास्त्री एकेडमी संवेदनशील इलाका माना जाता है और वहां की सुरक्षा भी अभूतपूर्व है। ऐसे में एक महिला कैसे सारी सुरक्षा व्यवस्था को भेदकर लालबहादुर शास्त्री एकेडमी में प्रवेश कर गई। यह एक बड़ा सवाल खुफिया एजेंसियों के मन को भी झकझोरने में लगा हुआ है। रूबी के छः माह तक लाल बहादुर शास्त्री एकेडमी में गुमनाम तरीके से रहने पर लालबहादुर शास्त्री एकेडमी के तमाम अफसरों पर भी सवालिया निशान लग रहे हैं कि आखिरकार क्या यह एकेडमी कोई धर्मशाला है जहां कोई भी किसी भी गेट से प्रवेश कर किसी के यहां ठहर सकता है। रूबी का फर्जीवाड़ा सामने आने पर एकेडमी के बड़े अफसरों ने अपने को बचाने के लिए रूबी के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज करा दिया और एसआईटी टीम को जब इस मामले की जांच मिली तो उसका नेतृत्व सीबीसीआईडी की प्रभारी शाहजहां अंसारी को सौंपा गया। एसआईटी की अब तक की जांच में सिर्फ रूबी को ही टारगेट कर उसका इतिहास खंगाला गया और उस पर एसआईटी ने अपना शिकंजा कस देर रात उसे गिरफ्तार कर लिया और षनिवार को उसे न्यायालय में भी पेश कर दिया गया। एसआईटी टीम इस मामले में अब पूरी तरह से गोपनीयता बरतते हुए अपनी जांच को आगे बढ़ाने में लगी हुई है। सवाल यह उठता है कि इस मामले में अगर रूबी दोषी है तो एकेडमी में चंद बड़े अफसर भी तो दोषी हैं जिन्होंने एकेडमी की सुरक्षा को ताक पर रखते हुए छः माह तक यह पता लगाने की कोशिश नहीं की कि आखिर उनकी एकेडमी में कोई अंजान चेहरा गुमनाम तरीके से रह रहा है। एसआईटी अभी तक यह भी नहीं खंगाल पाई है कि आखिरकार रूबी लालबहादुर शास्त्री एकेडमी में प्रवेश करने से पहले आखिर किसके सम्पर्क में थी जिसने उसे एकेडमी के अंदर दाखिल कराने के लिए किसने सारा ताना-बाना बुना था। एकेडमी के अफसरों ने इस मामले में अपना पिंड छुड़ाने के लिए वहां के गार्ड देव सिंह को निलंबित कर दिया लेकिन आज तक एसआईटी टीम ने रूबी को छः माह तक अपने कमरे में ठहराने वाले गार्ड देव सिंह को हिरासत में लेकर उससे पूछताछ करने का दम क्यों नहीं दिखाया जिसको लेकर यह सवाल खड़े हो रहे हैं कि कहीं देव सिंह के सीने में रूबी को ठहराने का जो राज दफन है कहीं उसका खुलासा हो गया तो कई बड़े अफसरों के गिरेबान तक जांच की आंच आ सकती है। एसआईटी टीम रूबी को लेकर ऐसे गोपनीयता बरत रही है मानो उसके हाथों में देश का कितना बड़ा दुश्मन आ रखा हो और अगर उसने उसके राज को उगला तो कोई बड़ा बवाल हो सकता है। कुल मिलाकर कहा जाए तो एसआईटी ने अपना मोहरा सिर्फ रूबी को बनाया है और उसे गलत साबित करने के लिए उससे घंटों पूछताछ और उसके आवास पर भी जाकर जानकारियां जुटायी हैं लेकिन अहम सवाल यह है कि आखिरकार पूरी एकेडमी में रूबी ने वहां के डिप्टी डायरेक्टर पर ही क्यों आरोप लगाए। क्या रूबी के लगाए गए आरोपों को मापने के लिए एसआईटी के पास ऐसा कोई पैमाना है जिससे कि वह महिला को झूठी साबित कर डिप्टी डायरेक्टर को क्लीन चिट दे रहे हों। हैरानी वाली बात यह है कि आखिरकार इतने हाईप्रोफाइल मामले की जांच एसआईटी के हाथों में क्यों? क्योंकि रणवीर मुठभेड़ कांड में सीबीसीआईडी ने जांच शुरू की थी तो उसने पुलिस को बचाने का प्रयास किया था लेकिन जब मामला सीबीआई के हाथों में आया तो उसमें पुलिसकर्मी ही हत्यारे निकल आए। चूंकि सीबीसीआईडी की प्रभारी को ही एसआईटी का प्रभारी बनाया हुआ है। ऐसे में उनके द्वारा इस हाईप्रोफाइल मामले की जांच करने पर भी सवालिया निशान लगने शुरू हो गए हैं क्योंकि इस पूरे प्रकरण में रूबी ही विलेन बनी हुई है और एकेडमी के अफसर अपने आपको पाक साफ साबित करने में लग चुके हैं। ऐसे में एकेडमी में हुए हाईप्रोफाइल प्रकरण की जांच अगर सीबीआई के हाथों में आ गई तो यह तय है कि एकेडमी के कई बड़े अफसर भी बेनकाब हो जाएगा।
रूबी को देर रात पुलिस ने किया गिरफ्तार
मीडिया के सामने चिल्ला-चिल्लाकर लालबहादुर शास्त्राी एकेडमी के डिप्टी डायरेक्टर पर नौकरी दिलाने के नाम पर लाखों रूपया लेने का दाग लगाने वाली रूबी को देर रात पुलिस ने गिरफ्तार कर आज उसे महिला अस्पताल में मेडिकल के लिए लाया गया तो उसने मीडिया के सामने कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया और यहां तक अपना दर्द बयां किया कि वह पिछले तीन दिन से सारी मीडिया के सामने अपनी कहानी बयां कर चुकी हों लेकिन उसे हासिल क्या हुआ। अचानक रूबी के इन तेवरों से यह सवाल खड़ा हो रहा है कि आखिरकार क्या एसआईटी ने रूबी को कोई ऐसा ज्ञान दे दिया जिससे वह षनिवार को मीडिया के सामने खामोशी साध गयी।
हालांकि चर्चाओं का बाजार गर्म है कि एकेडमी के अपफसरों को बचाने के लिए कहीं न कहीं कोई बड़ा खेल खेल दिया गया है। लालबहादुर शास्त्री एकेडमी में छः माह तक फर्जी तरीके से रहने वाली रूबी ने दो दिन पूर्व तमाम मीडिया के सामने हुंकार भरी थी कि एकेडमी के डिप्टी डायरेक्टर सौरभ जैन ने एकेडमी में नौकरी दिलाने के नाम पर उससे बीस लाख रूपए मांगे थे और उसने पांच लाख रूपए दे दिए थे। महिला के इस बयान से एकेडमी प्रशासन में भी बवाल मच गया था। इस मामले के लिए आनन-फानन में एसआईटी का गठन कर शाहजहां अंसारी को जांच दी गई। जिन्होंने अपना सारा फोकस रूबी पर ही लगाया और देर रात उसे गिरफ्तार कर लिया। अपनी गिरफ्तारी के दौरान रूबी ने एसआईटी के सामने काफी बवाल भी किया था। अब इस हाईप्रोफाइल मामले में सारा दाग रूबी पर लगाकर उसे न्यायालय पेश किया गया। इससे पूर्व जब उसे पुलिस अभिरक्षा में महिला अस्पताल में मेडिकल के लिए लाया गया तो उसने मीडिया के किसी भी सवाल का जवाब देने से इंकार कर दिया और इतना जरूर कहा कि वह तीन दिन से अपने दिल की पीड़ा बयां करती आ रही है लेकिन उसे हासिल क्या हुआ। अचानक रूबी के इस बदले रूप से यह सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या रूबी को इस मामले में मीडिया के सामने कुछ भी न बोलने के लिए एसआईटी ने कोई पाठ तो नहीं पढ़ाया? जिसका असर देखने को मिला है।
गुप्त डील के बाद पलटी रूबी, रूबी का दावाः मैंने बनाया था फर्जी कार्ड
षनिवार दोपहर कड़ी सुरक्षा के बीच हाईप्रोफाइल मामले में गिरफ्तार की गई रूबी को न्यायालय में पेश किया गया। वहां भी उसने मीडिया के सामने अपनी जुबान पूरी तरह से सील रखी थी लेकिन बाद में उसने मीडिया के सामने यह दावा कर दिया कि आईकार्ड उसने खुद फर्जी तरीके से बनाया था। उसके अचानक बयान पलटने से यह शंकाएं उठ रही है कि इस मामले को दफन करने के लिए शायद एसआईटी के इशारे पर रूबी ने अपने बयान आज आखिरकार जेल जाने से पहले पलट दिए। आज सुबह से लालबहादुर शास्त्री एकेडमी में फर्जी तरीके से रहने वाली रूबी को राजपुर थाने में रखा गया था। जहां से उसे कड़ी सुरक्षा के बीच दोपहर सवा तीन बजे के लगभग न्यायालय में जेएम प्रथम के यहां पेश किया गया। पेशी के दौरान जब मीडिया ने रूबी से बात करने की कोशिश की तो उसने खामोशी साध ली जिसको देखकर यह आभास हो रहा था कि कहीं न कहीं पुलिस और रूबी के बीच ऐसी कोई गुप्त डील हो गई जिससे कि रूबी ने अपनी जुबान बंद कर ली।
- आखिर एकेडमी में किस मिशन पर थी रूबी?
- भारतीय सैन्य एकेडमी में भी पकड़ा जा चुका फर्जी कैडेट
लालबहादुर शास्त्राी एकेडमी में मुजपफरनगर की एक महिला अगर छः माह से वहां गुमनाम तरीके से रह रही थी तो सवाल उठता है कि वह एकेडमी में किस मिशन को लेकर अपनी जान जोखिम में डालकर प्रवेश किए हुए थी क्योंकि सिर्फ अपने परिजनों व गांव वालों को अपने आईएएस होने का सपना दिखाकर वह इतना बड़ा खतरा तो मोल नहीं ले सकती थी। ऐसे में अब इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि कहीं रूबी किसी खतरनाक एजेंडे का हिस्सा तो नहीं थी? क्योंकि मुजपफरनगर में कई बार देश के दुश्मन पकड़े जा चुके हैं और अगर रूबी को सिर्फ जालसाज बताकर उसे एसआईटी ने जेल की सलाखों के पीछे डालने में ही अपनी बहादुरी समझी तो रूबी के दिल में छुपे मिशन को वह कभी बाहर नहीं निकाल पाएगी। ऐसा ही एक मामला कुछ वर्षों पूर्व भारतीय सेना एकेडमी में भी पकड़ा गया था जब पता चला कि पश्चिमी उत्तरप्रदेश का एक युवक फर्जी दस्तावेज के सहारे एकेडमी में फर्जी तरीके से कैडेट बनने के मिशन में लगा हुआ पाया गया था। इसलिए यह कहना जल्दबाजी होगा कि रूबी किसी खतरनाक मिशन के तहत एकेडमी में नहीं आयी थी। मसूरी के लालबहादुर शास्त्री एकेडमी में फर्जी आईकार्ड के सहारे रहने वाली रूबी को एसआईटी टीम ने भले ही धोखाधड़ी के मामलेे में गिरफ्तार भले ही कर लिया है लेकिन सबसे अहम सवाल यह है कि जब रूबी परिवार की नजर में एकेडमी के अंदर आईएएस की टेªनिंग करने के लिए आई थी तो उसकी कोई समय सीमा तो होती क्योंकि रूबी का दावा है कि वह एकेडमी में नौकरी लगने के लिए ठहरी हुई थी और उसने डिप्टी डायरेक्टर को 5 लाख रूपए दिए थे लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि आखिरकार वह अपने इस झूठ को कब तक परिवार व पति से छुपाती रहती। सवाल उठता है कि अगर रूबी सनक के कारण एकेडमी में रह रही थी तो वह कब तक इस सनक को कब तक बरकरार रखती। रूबी का लालबहादुर शास्त्री एकेडमी में एक रणनीति के तरह महीनों ठहरना कहीं न कहीं इस ओर भी इशारा कर रहा है कि क्या वह किसी बड़े मिशन को लेकर एकेडमी में अपना रैन बसेरा बनाए हुई थी। सवाल यह भी खड़े हो रहे हैं कि क्या रूबी को एकेडमी के अंदर प्रवेश करवाने के लिए कुछ कई बड़े अफसर तो शामिल नहीं हैं जिन्हें अब एसआईटी टीम अपनी जांच को गोपनीय बताकर उन्हें बचाने का खेल खेल रही है? रूबी व एकेडमी के चंद अफसरों के बीच भी एक बड़ा गठजोड़ हो सकता है लेकिन उसे तोड़ने के लिए क्या एसआईटी टीम अपने कदम आगे बढ़ाने का दम भर पाएगी यह भी लाख टके का सवाल है। बता दें कि कुछ वर्ष पूर्व भी भारतीय सैन्य एकेडमी में उत्तरप्रदेश का एक युवक फर्जीदस्तावेजों के सहारे सेना में कैडेट बनने के लिए आगे आया था और वह एकेडमी में रहकर लंबे समय तक टेªनिंग तक करने में भी सफल हो गया था। ऐेसे में सवाल उठता है कि क्या रूबी सिर्फ अपने रूतबे के लिए लालबहादुर शास्त्री एकेडमी में गुमनाम तरीके से अपने मिशन को अंजाम दे रही थी या वह किसी बड़े मिशन के तहत खामोशी से एकेडमी के अंदर गार्ड रूम में रहकर अपनी चालें चलने में लगी हुई थी। फिलहाल पुलिस व खुफिया एजेंसियों को रूबी का खतरनाक मिशन नजर नहीं आ रहा है लेकिन खुफिया के कुछ लोगांे का यह भी मानना है कि इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि रूबी किसी मिशन के तहत एकेडमी में दाखिल हुई थी।
आपने फरमाया था जल्द ही भूरा नहीं पकड़ा तो या तो मैं नहीं या फिर वो नहीं, हुजूर ! भूरा तो अभी नहीं आया गिरफ्त में
- आप भी वहीं हैं और वो भी कुर्सी पर ही आसीन, साढ़े तीन माह बाद भी पुलिस के हाथ है खाली
देहरादून,4 अप्रैल। पुलिस की हिरासत से शातिर अपराधी भूरा की फरारी से सरकार की पूरे देश में किरकिरी हुई। इससे पुलिस महकमे को भले ही कोई शर्म नहीं आई हो। लेकिन हुजूर बेहद आहत दिखे। पुलिस की इस नाकामी से क्षुब्ध हुजूर ने साफ ऐलान कर दिया था कि अगर जल्द ही भूरा की गिरफ्तारी नहीं की गई तो इसका नतीजा बेहद घातक होगा। हुजूर ने दो टूक कहा कि अगर गिरफ्तारी नहीं हुई तो या तो मैं नहीं या फिर वो नहीं। भूरा अब तक गिरफ्तार नहीं हुआ और...। रूड़की जेल के बाहर तीन हत्याओं को अंजाम देने के आरोप में दबोचा गया कुख्यात बदमाश अमित भूरा दून पुलिस की अभिरक्षा में बागपत कोर्ट में पेशी के लिए ले जाते फरार हो गया था। भूरा के साथियों ने पुलिस दल पर हमला बोला और अपने साथी को छुड़ाने के साथ ही पुलिस कर्मियों के अत्याधुनिक हथियार लेकर फरार हो गए। इस घटना से उत्तराखंड सरकार और पुलिस की खासी फजीहत हुई। मामला कई रोज तक मीडिया की सुर्खियां बना रहा। पुलिस के आला अफसर तमाम दावे करते रहे। लेकिन भूरा पुलिस के हाथ नहीं आ सका। मामले में सरकार की भी खासी किरकिरी हुई। मीडिया ने सरकार से भी इस मामले में तमाम सवालात पूछे। आखिरकार हुजूर को गुस्सा आ ही गया। मीडिया के सामने अपने कड़े तेवरों का इजहार करते हुए हुजूर ने ऐलान किया कि अगर जल्द ही भूरा पुलिस की गिरफ्त में नहीं आया तो या तो वो नहीं या फिर मैं नहीं। वो लफ्ज से हुजूर का इशारा पुलिस महानिदेशक की और था और मैं का मतलब तो वो खुद थे। माना जा रहा है कि यह बात करके हुजूर ने पुलिस महानिदेशक को सीधा इशारा किया था कि वे इस घटना से बेहद आहत हैं और जल्द ही सख्त कदम उठाकर भूरा को गिरफ्तर किया जाए, वरना...। लेकिन हुजूर के इस इशारे का भी कोई असर नहीं हुआ। नतीजा यह है कि भूरा की गिरफ्तारी की बात तो छोडि़ए पुलिस को उसकी लोकेशन तक नहीं मिल पा रही है। अब ऐसे में हुजूर से यह सवाल तो बनता ही है कि आपके उस ऐलान का क्या हुआ। एक तरफ भूरा अब भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है तो दूसरी तरफ वो साहब अभी भी अपनी कुर्सी पर विराजमान हैं। अब हुजूर खुद तो इस्तीफा दे नहीं सकते। ऐसे में उनसे से सख्ती से पूछना ही चाहिए कि आखिर कहां है भूरा। इस मामले में एक अहम पहलू यह भी है कि क्या उन्होंने हुजूर की बात को हल्के में ही ले लिया या फिर उन्हें पता है कि हुजूर कह भले ही लें। लेकिन उनके खिलाफ कुछ करेंगे नहीं। बहरहाल, सूबे के अवाम को अब इंतजार है कि हुजूर का रुख अब क्या रहता है। क्योंकि भूरा पुलिस की गिरफ्त में आया नहीं हैं और वो भी कुर्सी पर बैठे हैं।
जिला क्रियान्वयन इकाईयों को पूर्व की भांति यथावत संचालित किया जाय
देहरादून,4 अप्रैल (निस)। मुख्यमंत्री हरीश रावत ने केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री श्रीमती स्मृति जुबीन ईरानी को भेजे पत्र में कहा है कि प्रदेश में महिला समाख्या के तहत संचालित होने वाले जिला क्रियान्वयन इकाईयों को पूर्व की भांति यथावत संचालित किया जाय, ताकि राज्य के विकासखण्डों में कार्यक्रमों की मांग को पूरा किया जा सके। मुख्यमंत्री के मीडिया प्रभारी सुरेन्द्र कुमार ने बताया कि मुख्यमंत्री श्री रावत द्वारा केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री को प्रेषित पत्र में अपेक्षा की है कि महिला समाख्या भारत सरकार द्वारा संचालित योजना है, जिसको जनपद टिहरी, पौड़ी, उत्तरकाशी एवं नैनीताल की इकाईयों को माह मार्च 2015 से बन्द करने के निर्देश दिये गये है। मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा है कि महिला समाख्या भारत सरकार का एक जेण्डर आधारित कार्यक्रम है, जो कि पौड़ी जनपद में वर्ष 1995 से लगातार 19 वर्षों से संचालित किया जा रहा है। वर्तमान में यह कार्यक्रम राज्य के पौड़ी, नैनीताल, चम्पावत, ऊधमसिंहनगर, उत्तरकाशी, हरिद्वार एवं देहरादून जनपदों में संचालित हैं। यह कार्यक्रम भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित एवं राज्य सरकार के प्रशासनिक संचालन के अधीन है और हाल ही में इस कार्यक्रम का सर्व शिक्षा अभियान में विलय कर दिया गया है। विगत 26 अप्रैल, 2014 को राष्ट्रीय स्तर पर अतिरिक्त सचिव, प्राथमिक शिक्षा भारत सरकार के स्तर पर हुई कार्यक्रम संबंधी बैठक में उन जिला क्रियान्वयन इकाईयों को बन्द करने के निर्देश दिये गये है, जहां पर कार्यक्रम को 10 वर्ष हो चुके है, इससे टिहरी, पौड़ी, उत्तरकाशी व नैनीताल जनपदों की इकाईयां माह मार्च 2015 में बन्द हो जायेगी। वर्तमान में इस कार्यक्रम से राज्य के 27 विकासखण्डों में 2875 ग्रामों की लगभग 60 हजार महिलाएं सक्रिय रूप से जुड़ी हुई है। मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि इन जिला क्रियान्वयन इकाईयों के बन्द होने से टिहरी, पौड़ी, उत्तरकाशी एवं नैनीताल जनपदों में लगभग 300 कार्यकर्ता बेरोजगार हो जायेंगे, जो कि विगत वर्षों से एक अल्प नियत वेतन पर कार्य करते आ रहे है। उन्होंने यह भी अवगत कराया है कि इन इकाइयों के बन्द होने से इनके जीवन यापन के रास्ते बंद हो जायेंगे, क्योंकि इन कार्यकर्ताओं में अधिकांश राज्य में सरकारी अथवा अर्धसरकारी सेवाओं के लिये आयु सीमा भी पार कर चुके है। मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि वर्तमान में पौड़ी जनपद के 15 ब्लाॅक में से सिर्फ 5 ब्लाॅक में, टिहरी जनपद के 9 ब्लाॅक में से सिर्फ 3 ब्लाॅक में व नैनीताल जनपद में 8 ब्लाॅक में से 5 ब्लाॅक में कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है, लेकिन महिलाओं की स्थिति को देखते हुए इन जनपदों के अन्य ब्लाॅकों में भी कार्यक्रम की आवश्यकता महसूस की जा रही है तथा साथ ही इन विकासखण्डों से कार्यक्रम की लगातार मांग की जा रही है। मुख्यमंत्री ने केन्द्रीय मंत्री से अनुरोध किया है कि राज्यहित में इन जिला क्रियान्वयन इकाईयों को पूर्व की भांति यथावत संचालित किया जाय। ताकि राज्य के जनपदों के विकासखण्डों में कार्यक्रमों की मांग को पूरा किया जा सके।
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