उत्तराखंड की विस्तृत खबर (05 अप्रैल) - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 5 अप्रैल 2015

उत्तराखंड की विस्तृत खबर (05 अप्रैल)

क्या देवी सिंह खोलेगा असली राज

देहरादून, 5 अप्रैैल ( निस) । एल बी एस अकादमी स्कैंडल की नायिका को तो दून पुलिस की एस आई टी ने तमाम जदोजहद के बाद जैसे तैसे गिरफ्तार कर ही लिया है लेकिन इस पूरे कांड के नायक का चेहरा सामनें आना अभी बाकि है । वह कौन है अभी कोई भी आला और अदना अफसर बोलने को कतई तैयार नहीं है। ऐसे में अब निगाहें गार्ड देवी सिंह पर टिकी हुई हैं और सूत्र बताते हैं कि असली राज वही खोलेगा और ऐसे में तब इस कांड के नायक के चेहरे पर पडा नकाब भी उतरना लाजमी है। यहां सबसे हैरानी वाली बात यह है कि पूरे कांड की नायिका रूबी चैधरी को तो गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया लेकिन उसने चिल्ला चिल्ला कर जो प्रश्न खडे़ किये और आरोप लगाये उनकी किसी ने जाँच करना जरुरी नहीं समझा। अगर यह हाल देश के इस प्रतिष्टित संस्थान के अंदर हुये स्कैंडल की जाँच का है तो इससे बडा मजाक कोई नहीं हो सकता। वहीँ दूसरी तरफ बताया जा रहा है कि पिछले तीन चार दिनों में जिस एक तरफा तरीके से अकादमी के अंदर पुलिस और एस आई टी ने जाँच की है और गार्ड देवी सिंह को हिरासत में लिया गया है उसकी वजह से अकादमी के कर्मचारियों में काफी नाराजगी है और आने वाले दिनों में यह न सिर्फ सामने आ सकती है बल्कि अकादमी प्रशासन को विरोध का सामना भी करना पड सकता है। बहरहाल इतना तय है कि गार्ड देवी सिंह इस पूरे कांड का अहम राजदार है और शायद पूरी असलियत से भी वाकिफ है इसलिये वही अहम कडी साबित हो सकता है और कौन है इस पुरे गंदे खेल का नायक वह भी उसके जरिये सामने आ सकता है लेकिन यह तभी संभव है जबकि जाँच दबाव में न होकर प्रोफेशनल तरीके से हो।

उक्रांद महानगर के महाधिवेशन में कई प्रस्ताव पारित 

देहरादून, 5 अप्रैैल ( निस) । उत्तराखंड क्रांति दल महानगर इकाई का द्धिवार्षिक महाधिवेशन देहरादून में आयोजित किया गया। महाधिवेशन में एक दर्जन से अधिक प्रस्ताव पारित किए गए। महाधिवेशन में सरकार द्वारा बिजली-पानी की दरों में की गई वृद्धि को वापस लिए जाने, पब्लिक स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाए जाने की मांग की गई।  कचहरी रोड स्थित इंद्रमणि बडोनी सभागार में आयोजित इस द्धिवार्षिक महाधिवेशन में महानगर अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह बिष्ट द्वारा वार्षिक रिपोर्ट पेश की गई। वार्षिक रिपोर्ट में दल द्वारा जनसमस्याओं के निराकरण के लिए किए गए आंदोलनों के बारे में बताया गया। महाधिवेशन में 13 प्रस्ताव पारित किए गए। इनमें देहरादून नगरीय क्षेत्र के अंतर्गत वार्डों में बिजली-पानी की व्यवस्था को सुचारु बनाए जाने और बिजली पानी की दरों में की गई वृद्धि वापस लिए जाने, निजी स्कूलों में शिक्षा के बाजारीकरण पर रोक लगाए जाने, कानून-व्यवस्था की स्थिति को सुधारे जाने और बाहरी लोगों का सत्यापन किए जाने, रमसा कर्मियों को बहाल किए जाने, सफाई और सीवरेज व्यवस्था को सुदृढ़ किए जाने, भूमाफियाओं खनन माफियाओं पर अंकुश लगाए जाने की मांग की गई है। दल का कहना है कि नगर निगम में वर्षों से कार्यरत सफाई कर्मचारियों को नियमित किया जाए और सफाई कर्मचारियों की नई भर्ती की जाए। सिड़कुल के अंतर्गत औद्योगिक इकाइयों में स्थानीय युवाओं को 70 प्रतिशत रोजगार दिए जाने, फर्जी राशन कार्डों, पहचान पत्रों की जांच कराए जाने की मांग की गई है। असहाय, विधवा, विकलांग पेंशन राशि में वृद्धि किए जाने और शहरी क्षेत्र की बढ़ती आबादी के मद्देनजर स्वास्थ्य सेवाओं में वृद्धि किए जाने की मांग यूकेडी के प्रस्तावों में की गई है। महाधिवेशन में अतुल राणा, अनिल डोभाल, उत्तम सिंह रावत, योगंबर सिंह राणा, राजेंद्र प्रधान, कैलाश भट्ट, जरनैल सिंह, फरीद अहमद, कैलाश जोशी आदि मौजूद रहे।        

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल से मुलाकात करते हुए सीएम हरीश रावत 
  • केंद्र पोषित योजनाओं में सहायता 90ः10 के अनुपात में दी जाएः रावत

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देहरादून, 5 अप्रैैल ( निस) । उŸाराखण्ड में लोअर ज्यूडिश्यरी के अवस्थापना से सम्बंधित । नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन सभागार में राज्यों के मुख्यमंत्री एवं न्यायधीक्षों के संयुक्त सम्मेलन में प्रतिभाग करते हुए उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने लोअर ज्यूडिश्यरी की अवस्थापना हेतु 550 करोड़ रूपये दिए जाने का अनुरोध किया। प्रधानमंत्री को राज्य में न्यायपालिका की बेहतर स्थिति से अवगत कराते हुए मुख्यमंत्री श्री रावत ने बताया कि लैंगिक अपराधों से पीडि़तों को न्याय दिलाने के लिए उत्तराखण्ड सरकार बेहद संवेदनशील है, जिसके लिए राज्य के चार प्रमुख बड़े जिलों में फास्ट ट्रैक न्यायालयों का गठन किया गया है। मुख्यमंत्री श्री रावत ने न्यायिक सेवा में अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों को हिन्दी एवं स्थानीय भाषाओं का प्रशिक्षण अनिवार्य रूप से दिये जाने पर जोर देते हुए कहा कि उत्तराखण्ड एक हिन्दी भाषी राज्य है, एवं  राज्य की अधिकतम आबादी हिन्दी व स्थानीय भाषायें जानती है, अतः राज्य न्यायपालिका के आधिकारिक कामकाज हिन्दी में होने से स्थानीय जनता के लिए न्यायिक प्रक्रिया सरल होगी । उन्होंने बैठक में कहा कि लोअर ज्यूडिश्यरी के अवस्थापना से सम्बंधित केंद्र पोषित योजनाओं के लिए केंद्रांश घटाया जाना विशेष दर्जा प्राप्त उत्तराखण्ड राज्य के हित में नहीं है। केंद्र पोषित योजनाओं के लिए 90ः10 का जो अनुपात उत्तर-पूर्व राज्यों के लिए हैं, उसी प्रकार उत्तराखण्ड को भी 75ः25 के बजाय 90ः10 ही दिये जाने का अनुरोध किया। उन्होंने राज्य में लोअर ज्यूडिश्यरी की अवस्थापना हेतु 550 करोड़ रूपये की मांग की।  मुख्यमंत्री श्री रावत ने माननीय उच्च न्यायालय द्वारा राज्य सरकार को केंद्र पोषित योजना से आवासीय सुविधाओं के संदर्भ में प्रेषित प्रस्ताव पर सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि न्यायालयों तथा न्यायिक अधिकारियों के आवासों के निमार्ण हेतु पर्याप्त धनराशि उपलब्ध करायी जा रही हैै। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में पूर्ण कालिक सचिवों की तैनाती हेतु राज्य के 13 जनपदों मंेे पूर्णकालिक सचिव तथा स्टाफ के पद सृजित कर दिये गये हैं, जिनकी नियुक्ति माननीय उच्च न्यायालय द्वारा की जानी है। इसके अलावा उत्तराखण्ड में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के अनुसार वैकल्पिक विवाद समाधान(एडीआर सेंटर) एवं मध्यस्थता केंद्रों (मीडियिएशन सेंटर) का निर्माण भी पहले ही किया जा चुका है। स्थायी लोक अदालतों का गठन भी किया गया है, जिनमें नियुक्ति माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा की जानी है। प्रत्येक जिले में किशोर न्याय अदालतें हैं, बडे़ जिलों में विशेष रूप से इन अदालतों में प्रधान मजिस्ट्रेट के पदों का सृजन कर दिया गया है। जनपदों में न्यायलय भवनों का निर्माण उच्च न्यायलय की अपेक्षा अनुसार व केंद्र सरकार के बजट से राज्य सरकार द्वारा कराया जा रहा है। मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि जनपद न्यायधीशों की नियुक्ति माननीय उच्च न्यायालय द्वारा की जाती है। वर्ष 2008 से ही राज्य में वादकारिता नीति जारी कर दी गयी है, जिसका पूरे राज्य में प्रभावी रूप से पालन किया जा रहा है। परिवार न्यायालयों के गठन के विषय में उन्होंने कहा कि दूरस्थ पहाड़ी जिलों में पारिवारिक वादों की संख्या अत्यंत कम होने के कारण माननीय जनपद न्यायधीक्ष एवं सिविल जजों के पास भी काम अत्यंत कम है। ऐसे में राज्य के पहाड़ी जिलों में अतिरिक्त परिवार न्यायालयों के गठन की आवश्यकता नहीं महसूस की जा रही। केंद्र से मिलने वाली धनराशि का प्रयोग राज्य सरकार माननीय उच्च न्यायालय के प्रस्ताव अनुसार किया जायेगा। इसके अतिरिक्त राज्य सरकार उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीक्षों एवं न्यायमूर्तियों के वेतमान वृद्वि को वित्तीय उपलब्धता के आधार पर किया जायेगा। उक्त सम्मेलन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया, जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीक्ष एचएल दत्तू ने की। सम्मेलन में विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालय के न्यायधीक्ष और मुख्यमंत्री भी सम्मिलित थे।

14 साल में घटा 64 लाख हेक्टर कृषि क्षेत्र कंकरीट के जंगल ने निगली कृषि भूमि 

देहरादून, 5 अप्रैैल ( निस) । प्रदेश में कृषि क्षेत्र लगातार सिमटा जा रहा है। उत्तराखण्ड राज्य बनने के समय 2001 में प्रदेश में 7 लाख 70 हजार हैक्टेयर कृषि क्षेत्र था। जो सिमट कर 2014 में 7 लाख 06 हजार हैक्टेयर रह गया है। पर्वतीय क्षेत्रों में प्लायन के कारण कृषि क्षेत्र में जहां लगातार कमीं आ रही है तो वहीं मैदानी क्षेत्रों में कंकरीट के जंगल खड़े हो रही हैं। विकास की आंधी के कारण प्रदेश में लगातार कृषि क्षेत्र सिमटा जा रहा है। वर्ष 2001 में जहां प्रदेश में कृषि क्षेत्र 7 लाख 70 हजार हेक्टेयर था। जो 2007-08 में 7 लाख 55 हजार हेक्टेयर रह गया। 2008-09 में 7 लाख 53 हजार, 2009-10 में 7 लाख 41 हजार, 2010-11 में 7 लाख 23 हजार और 2011-12 में यह 7 लाख 14 हेक्टेयर तथा 2013-14 में यह 7 लाख 06 हेक्टेयर ही रह गया। प्रदेश में हर वर्ष कृषि भूमि में कमी आ रही है। कृषि क्षेत्र सिमटने के साथ ही फसलों का बुवाई क्षेत्र में सिमट रहा है। वर्ष 2011-12 में 6 लाख 61 हजार हेक्टेयर में खरीफ की फसल की बुवाई की गयी थी। जोकि 2012-13 में 5 लाख 30 हजार हेक्टेयर रह गयी। जबकि 2013-14 में यह 4लाख 97 हजार हेक्टेयर ही रह गयी है। घटे कृषि क्षेत्र का मुख्य कारण पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन को माना गया है। प्रदेश में 2010-11 के आंकड़ो के अनुसार 912650 जोतों के खेती हो रही थी। जिनमें से 829468 जोतें लुघ एवं सीमान्त कृषकों की हैं जो कुल जोतों का 91 प्रतिशत होता है। लेकिन पर्वतीय क्षेत्रांे में पलायन के कारण हजारों की संख्या में जोतों की किसान गायब हो चुके हैं। प्रदेश में कुल कृषि क्षेत्र का लगभग 56 प्रतिशत भाग पर्वतीय क्षेत्र मे अंतगर्त आता है। पर्वतीय क्षेत्रों में भोगौलिक कारणों से भी कृषि भूमि में कमी आ रही है। बादल फटने, अतिवृष्टि और भू-स्खलन से भी कृषि क्षेत्र प्रभावित हो रहा है। बादल फटने से किसानों की पूरी की पूरी जोत ही खत्म हो जाती है। बादल फटने के कारण जोत की मिट्टी बह जाती है और यह भूमि दोबारा कृषि करने लायक ही नहीं रहती है। जिसके कारण भी पर्वतीय किसान कृषि से मुंह मोड़ रहे हैं। भौगोलिक कारणों से एक बार फसल चैपट हो जाने के कारण किसान की कमर टूट जाती है फिर वह दोबारा खेती करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है और पलायन कर जाता है। वहीं मैदानी क्षेत्रों में औद्योगिकरण और लगातार आसमान छूते ज़मीन के भाव के कारण किसानों को कृषि से मोह भंग हो रहा है।

रमसा कर्मियों ने कहा शीघ्र बहाल करें सरकार 

देहरादून, 5 अप्रैैल ( निस) । रसमा कर्मियों में सेवा समाप्त किए जाने से खासा रोष व्याप्त है। सरकार द्वारा सेवा समाप्त किए जाने के विरोध में रमसा कर्मियों का आमरण अनशन जारी है। अनशन स्थल पर रमसा कर्मियों ने सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर प्रदर्शन किया। केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (रमसा) के बजट में कटौती करने के बाद प्रदेश सरकार द्वारा गत 31 मार्च को विभिन्न विद्यालयों में कार्यरत 1256 रमसा कर्मियों की सेवा समाप्त कर दी गई थी। सेवा समाप्त किए जाने के विरोध में रमसा कर्मियों द्वारा हिंदी भवन के समक्ष आमरण अनशन और अनिश्चितकालीन धरना दिया जा रहा है। आंदोलनरत रमसा कर्मियों का कहना है कि सेवा समाप्ति के आदेश को निरस्त कर उन्हें बहाल किया जाए। रमसा कार्मिकों का कहना है कि सेवा समाप्त किए जाने के कारण उनके सामने परिवार के भरण-पोषण का संकट पैदा हो गया है। कर्मियों का कहना था कि उन्हें शीघ्र बहाल किया जाए।  रमसा कर्मियों का कहना था कि केन्द्र सरकार द्वारा बजट में कटौती करने से उत्तराखंड सरकार द्वारा राज्य के 1256 कर्मियों को बाहर का रास्ता दिखाकर जो दुस्साहस किया गया है उसकी जितनी निंदा की जाये वह कम है। सरकार के इस निर्णय के चलते उन सभी कर्मचारियों जो कि पिछले तीन वर्षों से राज्य के सुदूरवर्ती क्षेत्रों के विद्यालयों में अपनी सेवायें दे रहे थे, उन्हें आज सड़कों पर उतरकर आंदोलन करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। संगठन का कहना है कि अब आर-पार की लडाई लड़ी जायेगी। रमसा कर्मियों का कहना है कि जब तक सेवा समाप्ति का आदेश वापस नहीं लिया जाता है उनका आंदोलन जारी रहेगा।

पंचेष्वर बांध परियोजनाः हिमालय में नये खतरे की शुरुआत

देहरादून, 5 अप्रैैल ( निस) । नेपाल ने 15.95 करोड़ रुपये पंचेश्वर बांध परियोजना की शुरुआत व्यवस्था के लिये दिये है। अगले एक साल में इस बांध की सारी बाधायें दूर करके शुरुआत कर दी जायेगी ऐसा नेपाल सरकार का कहना है। नेपाल स्थित कंचनपुर के पहले कार्यालय में 6 भारतीय व 6 नेपाली अधिकारी होंगे। क्षतिग्रस्त और नाजुक परिस्थिति वाले हिमालय में यह एक नये खतरे की शुरुआत है। नेपाल ने यह हिम्मत जुटाई है हमारे प्रधानमंत्री कि पहली नेपाल यात्रा के बाद। अपनी पहली नेपाल यात्रा में प्रधानमंत्री ने पंचेश्वर बांध परियोजना की शुरुआत का तोहफा नेपाल को दिया। याद रखना चाहिये की माओंवादी सरकार बनने के बाद जब नेपाल के तात्कालिक प्रधानमंत्री प्रचण्ड दहल भारत आये थे तो टिहरी बाँध देखकर बहुत खुश हुए थे और नेपाल में बड़ें बांधों की हिमायत कर बैठे थे। उन्होनंे सिर्फ टिहरी बांध देखा था वे उसमें डूबे शहर और गांवों के लोगों से ना तो मिले, ना ही उनकी समस्याओं से परिचित हुये थेे। इस बार हिमालय के सुंदर देश नेपाल में जब हमारे नये चुने गये प्रधानमंत्री गए तो उन्हंे बड़े बांध बना कर बिजली बेचने की सलाह के साथ, पंचेश्वर बांध परियोजना की शुरुआत की घोषणा भी कर आये है। किसी छोटे देश में बड़े देश के राष्ट्राध्यक्ष का जाना कोई बड़ी परियोजना की सौगात देना जरुरी जैसा माना जाता है। 1986 में जब रूस के राष्ट्राध्यक्ष र्गाेबाचोव जब भारत आये थे तो टिहरी बाँध में उनके देश द्वारा तकनीकी और आर्थिकीय दोनो सहयोग की बात की गई। उत्तराखंड के निवासी, विस्थापितों का पुनर्वास सभंव नही हो पाया है। पर्यावरण की तो अपूर्णीय क्षति हाल में 2013 की आपदा में हम देख ही चुके है। टिहरी बांध परियोजना के सन्दर्भों में ही इस परियोजना को अगर समझें तो 280 मीटर ऊँची यह बाँध परियोजना मध्य हिमालय का बड़ा हिस्सा डुबाएगी। यहाँ कुछ प्रश्न विचारणीय हैं। टिहरी बाँध जैसी विस्थापन की अनुत्तरित समस्याएं और पर्यावरण का कभी सही नहीं होने वाला विनाश जिसमें हजारों, लाखों पेड़ काटेंगे और डूबेंगे यहंा भी होगा। इसके बारे में प्रकृति को समझने वाले वैज्ञानिक और पर्यावरणविदें सहित लोग आंदोंलनकारी करते भी रहे है। यहाँ विस्थापन और पर्यावरण की उपजने वाली समस्याओं की लम्बी सूची दोहराने की कोई जरुरत नहीं लगती है न जाने कितने टन विस्फोटकों का उपयोग होगा जिससे हिमालय का यह हिस्सा और कमजोर होने वाला है। हमारी समझ यह क्यों नहीं समेट पाती कि एक वर्ष पहले उत्तराखंड में जो त्रासदी हुई उसमे बांधों का बड़ा योगदान रहा है। जहाँ आज भी अलकनंदा पर बने विष्णुप्रयाग बाँध की सुरक्षा दीवारें बहती जा रहीं हैं। जिसमे गुणवत्ता का प्रश्न तो है ही किन्तु किसी न किसी तरह बाँध को पूरा करना और उससे बिजली उत्पादन की जिद्द भी है। हम सब जानते है कि हिमालय नया पर्वत है इसके पहाड़-पहाडि़यां कच्चें हैं। पंचेश्वर बांध परियोजना भी भूकम्पीय क्षेत्र के अंतर्गत है जो कि खतरे से भरपूर है। बड़े बांधो की पर्यावरण प्रभाव आंकलन रिपोर्ट बहुत कमजोर बनाई जाती है। नियमों कानूनों की अवहेलना कर मात्र किसी तरह बांध को आगे बढाना की उनका प्रमुख सोच हैं। परियोजना वाले चाहे कोई भी कम्पनी एवं निगम हो वो जानकारी छुपाते है और परियोजनाओं को विकास के लिये, नये शहरों की बिजली की जरुरतों जबरन लादा जा रहा हेै। पंचेश्वर बांध परियोजना जिसमें 280 मीटर ऊँचा बाँध प्रस्तावित है क्या-क्या समस्याएं पैदा होंगी उनकी गिनती टिहरी बाँध की समस्याओं का उदाहरण देखकर की जा सकती है। जुलाई 2006 में टिहरी बाँध का उद्घाटन हुआ किन्तु सर्वाेच्च न्यायालय के आदेश के कारण आज भी टिहरी बाँध पूरी तरह नहीं भरा सका है। टिहरी बाँध के जलाशय के सब ओर के गांव धसक रहे हैं। जिनका भू-गर्भीय परीक्षण कभी ईमानदारी से पूरा नहीं किया गया था। यदि पंचेश्वर बाँध में ऐसा सबकुछ ईमानदारी से किया भी जाने वाला है तो यह बाँध अपने में एक बहुत बड़ा अकल्पनीय समस्याआंे का जनक रहेगा। क्यों इस तथ्य को भूला दिया जा रहा है कि पंचेश्वर बाँध जिस महाकाली नदी पर प्रस्तावित है उसकी प्रमुख सहायक धौली गंगा पर पिछले वर्ष जून 2013 में एनएचपीसी का बाँध बनने के बाद भी आज बर्बाद पड़ा है। साथ ही ऐला तोक जैसे ना जाने कितने रिहायशी इलाकों को भी बर्बाद कर चुका है। सरकारें या नेता बदलने के बाद बातें भी बदल जाती है। टिहरी बांध की समस्याओं को देखते हुये ये त्तकालीन सरकार ने ये कहा की अब हम टिहरी जैसा बांध और नही बनायेंगे। माटू जनसंगठन ने तब भी यह बात उठाई थी की क्या वे पंचेश्वर बांध परियोजना, यमुना पर किसाउ आदि परियोजना को हमेशा के लिये छोड़ देने की बात कर रहे है? पर इन शब्दों की गारंटी क्या होती है मालूम पड़ गई। हम क्यों भूल जाते हैं कि प्रकृति सन्देश बार बार देती है और फिर उसके बाद भीषण तबाही लाती है। हमारे देश का जल संसाधन मंत्रालय बखूबी जानता है कि आजतक किसी भी बाँध में जब प्राकृर्तिक और ंमनुष्य जनित समस्याआंे का समाधान नहीं हुआ तो फिर नए बाँध में कैसे संभव होगा? फिर चूंकि पंचेश्वर बाँध इसी मध्य हिमालय में स्थापित है। इसलिये टिहरी और धौलीगंगा जलविद्युत परियोजनाओं के उदाहरणों को सामने रखना होगा। हमें नही भूलना चाहियें कि हिमालय में विस्थापनहीन-पर्यावरण संरक्षण वाला विकास सही व स्थायी विकास मंत्र सिद्ध होगा।

पैरेंट्स एसोसिएशन ने कहा पब्लिक स्कूलों की मनमानी पर लगे रोक 

देहरादून, 5 अप्रैैल ( निस) । उत्तराखंड पैरेंट्स एसोसिएशन ने पब्लिक स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाए जाने की मांग की है। एसोसिएशन ने इस संबंध में राज्यपाल से हस्तक्षेप करने की मांग की है। एसोसिएशन का कहना है कि शिक्षा विभाग की अकर्मण्यता के कारण ही पब्लिक स्कूल लगातर मनमानी कर रहे हैं। राज्यपाल को सौंपे गए ज्ञापन में एसोसिएशन के अध्यक्ष नीरज सिंघल का कहना है कि पब्लिक स्कूल मनमानी पर उतारू हैं। एसोसिएशन ने पूर्व में ही शिक्षा विभाग व जिला प्रशासन को इसे लेकर आगाह कर दिया था लेकिन, अधिकारी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। स्थिति यह हो गई कि निजी स्कूलों को लेकर उन्होंने आंखें मूंद ली हैं। कार्रवाई करने की उनमें न इच्छाशक्ति दिखाई देती है, न मंशा ही। शिक्षा विभाग और प्रशासन की अकर्मण्यता के चलते पब्लिक स्कूलों के हौसले बढ़ते जा रहे हैं। एसोसिएशन का कहना है कि हर वर्ष मनमानी ढंग से फीस वृद्धि न की जाए। शासनादेश का उल्लंघन करने वाले स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। तय दुकानों से कॉपी-किताब खरीदने को बाध्य न किया जाए। प्रत्येक वर्ष प्रकाशक व किताब बदलना भी उचित नहीं है। एसोएिशन का कहना है कि अधिकांश पब्लिक स्कूलों में पीटीए का गठन नहीं है, वहां पीटीए का गठन किया जाए। बिल्डिंग फंड के नाम पर उगाही बंद की जाए। एसोसिएशन का कहना है कि पब्लिक स्कूलों द्वारा नियम विरुद्ध हर साल प्रवेश शुल्क लिया जा रहा है। शिक्षा का अधिकार का भी लगातार उल्लंघन किया जा रहा है।

विदेशी छात्रों ने किया धार्मिक स्थलों का भ्रमण

देहरादून, 5 अप्रैैल ( निस) । उत्तराखंड में महिला व बाल अधिकारों के अलावा स्वास्थ्य, रोजगार आदि मुद्दों पर हो रहे कार्याे को देखने के लिए स्वीडन के अल्विंस फोल्का स्कूल के छात्र-छात्राओं का नौ सदस्यीय दल चमोली गया है। दल ने गोपेश्वर के धार्मिक स्थलों का भ्रमण कर यहां की संस्कृति को विश्व को सीख देने वाली बताया।
 स्वीडन के छात्र-छात्राओं के इस दल ने प्रसिद्ध गोपीनाथ मंदिर व गणेश मंदिर में जाकर भगवान की स्तुति भी की। इस दौरान मंदिर के कपाट बंद थे। ऐसे में दल के सदस्यों ने बाहर से ही पूजा अर्चना की। दल के सदस्य आंद्रस ओहल्सन का कहना है कि भारतवर्ष के उत्तराखंड में प्राकृतिक सुंदरता कण-कण में भरी हुई है। बावजूद इसके यहां के लोगों का जीवन काफी कठिन है। उनका कहना है कि भारत में स्वैच्छिक संस्थाएं व अघ्र्द्धसरकारी संगठन शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता के साथ-साथ जल, जंगल, जमीन के मुद्दों पर पश्चिमी देशों के मुकाबले बेहतर कार्य कर रहे हैं। बताया कि उनकी ओर से किया जा रहा शोध भारत व स्वीडन के बीच सामाजिक संबंधों को नई दिशा देगा। हिमाद समिति के कार्यालय में शोध से संबंधित मुद्दों पर भी विदेशी छात्रों व हिमाद के कार्यकर्ताओं के बीच परिचर्चा हुई। शोध छात्रा फिलिप्स ने कहा कि वह पहली बार भारत आई हैं और चमोली जिले के ग्रामीण क्षेत्रों की सामाजिक, आर्थिक स्थिति का अध्ययन करने के साथ उनकी कठिन दिनचर्या को नजदीक से देखने का मौका उन्हें मिला है। शोध छात्रा मार्टिन ने कहा कि यहां के निवासियों का गीत संगीत उल्लास से भरा है। यहां के धार्मिक रीति रिवाज सबसे जुदा हैं। क्रिस्टिना ने कहा कि उत्तराखंड में सामाजिक कार्याे को तेजी से संचालित करने की जरूरत है। हिमाद के सचिव उमाशंकर बिष्ट ने विदेशी शोध छात्र-छात्राओं के दल का स्वागत करते हुए कहा कि इन छात्रों ने चमोली जिले को लघु शोध का विषय बनाया है। उन्होंने विदेशी छात्रों को भारतीय रीति रिवाजों के बारे में जानकारी दी। 

केदारनाथ सेटलमेंट कमिश्नर कार्यालय में स्टाफ की तैनाती

देहरादून, 5 अप्रैैल ( निस) । केदारपुरी को नए सिरे से बसाने को लेकर केदारनाथ सेटलमेंट कमिश्नर कार्यालय में स्टाफ की तैनाती होने से अब केदारनाथ मास्टर प्लान कार्याे में तेजी आएगी। इसमें विस्थापन, पुनर्वास व बंदोबस्त समेत कई कार्याे को शामिल किया गया है। गत दिसंबर माह में शासनादेश जारी होने के बाद लोनिवि के निरीक्षण भवन गुप्तकाशी में केदारनाथ सेटलमेंट कमिश्नर (विस्थापन, पुनर्वास व बंदोबस्त आयुक्त)का अस्थाई कार्यालय खोला गया था। उक्त कार्यालय के माध्यम से केदारनाथ में भूमि की उपलब्धता, भवनों के आवंटन और आपदा प्रभावितों के संपत्तिधारकों के पुनर्वास संबंधी कार्य होने हैं। आपदा प्रभावित हक हकूकधारी व केदारनाथ में यात्रा सीजन के दौरान अपना रोजगार करने वाले लोगों के पुनर्वास संबंधित कार्याे को भी इसमें शामिल किया जाएगा। इसके अलावा सोनप्रयाग से लेकर केदारनाथ धाम तक के बीच जितने भी आपदा प्रभावित हैं, उनकी पृथक-पृथक पत्रावलियां व सभी भू अभिलेख विस्थापन आयुक्त कार्यालय में संरक्षित करने की कार्रवाई चल रही है। कार्यालय खुलने के दौरान ही डीएम ने एसडीएम ऊखीमठ को क्षेत्र के आपदा प्रभावितों से संबंधित तहसील कार्यालय में उपलब्ध सभी अभिलेखों, पत्रावलियां आयुक्त कार्यालय में उपलब्ध कराने के निर्देश दे दिए थे। कार्यालय में डीएम डॉ. राघव लंगर को पदेन बंदोबस्त आयुक्त नियुक्त किया गया था। इसके अलावा एसडीएम जखोली एलआर चैहान को सहायक कमिश्नर, कार्याधिकारी विश्राम सिंह नेगी के साथ ही दो लिपिक वर्ग के कर्मचारियों की तैनाती की गई है। केदारनाथ में भूमि की नपत के बाद भवन स्वामियों को पुनर्वासित व विस्थापन करने की कार्रवाई भी गतिमान है। आयुक्त कार्यालय के कार्याधिकारी विश्राम सिंह नेगी ने बताया कि केदारनाथ मास्टर प्लान के तहत होने वाले कार्य शुरू हो गए हैं।

ई-डिस्ट्रिक्ट योजना का शुभारंभ

देहरादून, 5 अप्रैैल ( निस) । रुद्रप्रयाग जिले में ई-डिस्ट्रिक्ट योजना का शुभारंभ हो गया। अब युवाओं को प्रमाण पत्रों के लिए तहसीलों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। अब अपने घरों से ही संबंधित प्रमाण पत्र के लिए ऑनलाइन आवेदन किया जा सकता है। इसके बाद संबंधित व्यक्ति को अब ऑनलाइन प्रमाण भी मिलेंगे। इसके लिए पूर्व में राजस्व विभाग के कर्मचारियों को प्रशिक्षण भी दिया गया था। ई-गवर्नेस योजना (इंटरनेट के माध्यम से राजकाज) के तहत आम लोगों की समस्याओं को देखते हुए केंद्र सरकार ने ई-डिस्ट्रिक्ट योजना शुरू की। इसमें चरित्र, आय, स्थाई, जाति, जन्म, मृत्यु व परिवार रजिस्ट्रर की नकल समेत कई प्रमाण पत्रों को शामिल किया गया है। इन सभी प्रमाण पत्रों के लिए घर बैठे ऑनलाइन आवेदन किया जा सकता है। ये सभी प्रमाण पत्र अब ऑनलाइन ही मिलेंगे। इसके लिए जिले के लोगों को जागरूक होने की आवश्यकता है, तभी योजना को जिले में गति मिल सकेगी। सीधे तौर पर आ रहे आवेदनों को तहसील प्रशासन पहले ऑनलाइन कर रहा है, उसके बाद ही प्रमाण पत्रों को बना रहा है। इससे जहां भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा, वहीं समय व आर्थिकी का नुकसान भी नहीं झेलना पडे़गा। साथ ही लोगों को समय से प्रमाण पत्र भी मुहैया हो सकेंगे। ऑनलाइन सॉफ्टवेयर को चलाने के लिए राजस्व कर्मचारियों को पूर्व में प्रशिक्षण भी दिया गया है। 

लावारिस पड़ा गौरीकुंड कस्बा होगा आबाद

देहरादून, 5 अप्रैैल ( निस) । आपदा के बाद से लावारिस पड़ा गौरीकुंड कस्बा इस बार यात्रा सीजन में फिर से आबाद होगा। यात्रा पूर्व गौरीकुंड के लिए सड़क पूरी तरह बन जाएगी। इससे केदारनाथ की पैदल यात्रा पांच किलोमीटर कम हो जाएगी। साथ ही यात्री एक ही दिन में केदार बाबा के दर्शन कर वापस गौरीकुंड लौट सकेंगे।
वर्ष 2013 की केदारनाथ त्रासदी में सोनप्रयाग से गौरीकुंड तक छह किमी मोटर मार्ग पूरी तरह बह गया था। इससे यात्रा सोनप्रयाग से पैदल ही संचालित की गई। ऐसे में यात्रियों को सोनप्रयाग से केदारनाथ तक कुल सात किमी अतिरिक्त दूरी चलनी पड़ी। पूर्व में गौरीकुंड से केदारनाथ तक की दूरी 14 किमी थी। आपदा के बाद गौरीकुड से केदारनाथ के बीच पैदल मार्ग कई स्थानों पर क्षतिग्रस्त हो गया था। इससे यह दूरी भी 14 से बढ़कर 16 किमी हो गई थी। बाद में दोबारा पैदल रास्ता ठीक होने पर गौरीकुंड से केदारनाथ की दूरी 14 किमी हो गई थी। वर्तमान में छोटे वाहन गौरीकुंड तक जा सकते हैं, लेकिन अस्थाई रूप से बनाया गया यह मार्ग बारिश से कभी भी क्षतिग्रस्त हो सकता है। इसको देखते हुए इन दिनों केदारनाथ प्राधिकरण गुप्तकाशी लोनिवि शाखा गौरीकुंड मार्ग को पुराने एलाइमेंट पर निर्माण कर रहा है। वहीं सोनप्रयाग से आगे सोम नदी पर विदेशी तकनीकी का फोल्डिंग मोटर पुल लगाने की योजना है। वर्तमान में यहां पर बीआरओ ने अस्थाई पुल का निर्माण किया है। इससे वाहनों की आवाजाही हो रही है। व्यापार संघ गौरीकुंड पूर्व अध्यक्ष महेश बगवाड़ी का कहना है कि गौरीकुंड केदारनाथ यात्रा का मुख्य पड़ा रहा है। आपदा के बाद फिर से इस कसबे के मोटर मार्ग से जुड़ जाने से केदारनाथ यात्रा काफी आसान हो जाएगी। गौरीकुंड के पूर्व प्रधान मायाराम गोश्वामी का कहना है कि पूर्व में ही सरकार को गौरीकुंड से ही यात्रा संचालित करनी चाहिए थी। यहां से भोले बाबा की यात्रा काफी आसान है। यात्रा आसानी से एक ही दिन में बाबा के दर्शन कर लौट सकता है। 

यात्रियों को नही मिलेगी इस वर्ष भी जाम से निजात

देहरादून, 5 अप्रैैल ( निस) । इस साल 21 अप्रैल से शुरू होने वाली यात्रा के दौरान प्रशासन की लचर व्यवस्था से यात्रियों को दोनों धाम जाने से पहले जाम से दो चार होना पड़ेगा। कारण यह है कि गंगोत्री-यमुनोत्री के मुख्य यात्रा पड़ाव पर कहीं भी पार्किंग नही है। पिछले तीन साल के अंतराल में आपदा की डर से दोनो धाम में अपेक्षा से कम ही यात्री यहां आए हैं, लेकिन इस साल उम्मीद जताई जा रही है कि अधिक यात्री आ सकते हैं। गंगोत्री धाम के बेहद प्रमुख पड़ाव उत्तरकाशी जिला मुख्यालय में ही बस अड्डे और स्थाई वाहन पार्किंग की व्यवस्था नहीं है। गंगोत्री जाने वाले यात्रियों के लिए ठहरने और घूमने के उत्तरकाशी महत्वपूर्ण जगह है,लेकिन वाहन पार्किंग की स्थाई व्यवस्था ना होने से बीते सालों में अस्थाई व्यवस्थाओं के भरोसे ही वाहनों को व्यवस्थित करने की कोशिश रहती है। इससे यात्रियों को झेलनी पड़ती है। इसके साथ ही यमुनोत्री धाम के प्रमुख पड़ाव बड़कोट के भी यही हाल है। हालांकि बड़कोट में नगर क्षेत्र से दूर वाहन पार्किंग के लिए छोटा सा स्थान चयनित किया गया है। मुख्य बाजार के बीचों बीचों निकलकर गली के रूप में तब्दील हो चुके यमुनोत्री हाईवे पर लगने वाले लंबे जाम से निपटने के बाद ही इस जगह तक पहुंचा जा सकता है। इसके साथ ही गंगोत्री यमुनोत्री के सभी यात्रा पड़ावों पर दस वाहनों के खड़े होने की तक व्यवस्था नहीं है।

पांच किलोमीटर का मार्ग लेगा कठिन परीक्षा

देहरादून, 5 अप्रैैल ( निस) । जानकीचट्टी से यमुनोत्री तक पांच किलोमीटर लंबा पैदल मार्ग यात्रियों की कठिन परीक्षा लेगा। इस साल बर्फबारी से जगह-जगह पर ध्वस्त हो चुके इस पैदल मार्ग से आवाजाही सुरक्षित नहीं रह गई है। वहीं लोनिवि ने अब तक मार्ग की मरम्मत की भी जहमत नहीं उठाई है। यमुनोत्री धाम की यात्रा शुरू होने को केवल 19 दिन का समय बचा है। लेकिन जानकीचट्टी से यमुनोत्री तक पहुंचाने वाले पैदल मार्ग की हालत अभी भी नहीं सुधारी जा सकी है। पांच किलोमीटर लंबे इस पैदल मार्ग में बाहर से भी ज्यादा जगहों पर धंसाव जारी है। तो कई जगहों पर पहाड़ी से हुए भूस्खलन से राह खतरनाक हो चुकी है। तो रास्तों के निचले हिस्सों में हुए भूस्खलन से भी रास्ते कई जगहों पर आवाजाही लायक नहीं रह गए हैं। सर्दियों में भारी बर्फबारी से रास्तों को भारी नुकसान पहुंचा है। जगह-जगह पर दरक रहे यमुनोत्री पैदल मार्ग में यात्रियों के लिए यमुनोत्री तक पहुंच और भी मुश्किल पैदा कर देगी। गहरी खाई में बह रही यमुना और ऊपर से ऊंची चोटी के बीच ध्वस्त रास्तों से सफर करना वाकई यात्रियों की यमुना के दर्शन के लिए कड़ी परीक्षा लेगी। वहीं लोनिवि के अधिकारी मरम्मत कार्य तो दूर अब तक रास्तों का जायजा लेने तक नहीं पहुंचे हैं। ऐसे में 21 से शुरू होने वाली यात्रा में यात्रियों को खतरनाक राह पार कर ही यमुनोत्री धाम पहुंचना पड़ेगा।

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