विशेष आलेख : भारतवर्ष पर इस्लाम का प्रथम आक्रमण - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 18 मई 2015

विशेष आलेख : भारतवर्ष पर इस्लाम का प्रथम आक्रमण

विक्रमी संवत् 769 (ईसवी सन 712) में भारतवर्ष (हिन्दुस्थान) पर इस्लाम का प्रथम आक्रमण हुआ था, जिसे कुछ अंशों में ही सफल आक्रमण कहा जा सकता है। यह आक्रमण समुद्र मार्ग से किया गया था और भारत के पश्चिमी भाग सिन्ध देश पर हुआ था। भारतवर्ष में मुहम्मद बिन कासिम का नाम प्रथम मुस्लिम आक्रमणकारी के रूप में इतिहास में अंकित मिलता है। मुहम्मद बिन कासिम द्वारा भारतवर्ष के पश्चिमी भागों में चलाये गये जिहाद का विवरण, एक मुस्लिम इतिहासज्ञ अल क्रूफी द्वारा अरबी के ‘चच नामा’ इतिहास प्रलेख में लिखा गया है। इस प्रलेख का अंग्रेजी में अनुवाद एलियट और डाउसन ने किया था। इससे पूर्व भी इस देश पर विदेशी आक्रमण होते रहे थे, किन्तु इस्लाम का यह आक्रमण उन सबसे भिन्न था। इस आक्रमण का उद्देश्य केवल भारत देश की धन सम्पत्ति पर अधिकार करना, मात्र नहीं अपितु इससे कहीं अधिक था। देश पर अधिकार करना, उस आक्रमण का एक उद्देश्य होने पर भी उसका कारण कुछ और ही था। वह कारण था, इस देश में ‘इस्लाम’ का प्रचार करना। यही कारण है कि यह आक्रमण बगदाद स्थित इस्लाम के खलीफा की ओर से किया गया था।

खलीफा न केवल बगदाद का शासक ही था अपितु वह इसके अतिरिक्त इस्लाम, जो महजब के रूप में विद्यमान है, का कर्णधार भी था। वास्तव में बगदाद में उसकी नियुक्ति भी इसी प्रकार द्विविध उद्देश्य के लिए की गई थी। एक तो उस प्रदेश पर शासन करना और दूसरे उस प्रदेश में इस्लाम का प्रचार-प्रसार करना।

इस्लाम एक मजहब है इस महजब का प्रचलन मक्का निवासी मोहम्मद ने किया था, जो स्वयं को परमात्मा का पैगाम लानेवाला-सन्देशवाहक कहता था। इसी कारण वह कालान्तर में पैगम्बर कहलाने लगा और आज वह इसी नाम से जाना जाता है।

मोहम्मद साहब का यह सौभाग्य था कि उनका विवाह एक धनी महिला से हुआ था। इस कारण उनको आजीविका की किसी प्रकार की कोई चिन्ता नहीं रही। परिणामस्वरूप उनके मस्तिष्क में भाँति भाँति की कल्पनाएँ उड़ान भरने लगीं। इस प्रकार कई वर्ष तक चिन्तन करने के उपरान्त उन्होंने स्वयं को परमात्मा का सन्देश वाहक अर्थात् पैगम्बर घोषित कर दिया। इस घोषणा के साथ ही उन्होंने अपने कल्पित परमात्मा और उसके सन्देश को सुनाना आरम्भ किया। इस पर वह पैगम्बर के रूप में विख्यात हो गया।

अपने विचारों के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ उसने अपनी एक निजी सेना भी गठित करनी आरम्भ कर दी और समय पाकर वह इसके लिए युद्ध भी करने लगा। इस प्रकार मोहम्मद साहब ने परमात्मा और मनुष्य के रहन-सहन आदि-आदि के विषय में अपनी एक धारणा बनाई और अपने विचारों को अपनी उस निजी सेना के बल पर जन-साधारण पर थोपना आरम्भ कर दिया।

आरम्भ में जैसा कि स्वाभाविक है, मोहम्मद साहब को अपने इस कार्य में अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं हुई। इसके विपरीत उनको अपने पैतृक स्थान मक्का से भागकर मदीना जाना पड़ा था। वहाँ जाकर उन्होंने अपनी स्थिति पर विचार किया और फिर अपने सैनिकों को अधिक प्रोत्साहन देने के लिए उनको अपने प्रकार की सुविधाएँ देने का आश्वासन दिया। उसका पारिणाम यह हुआ कि उनके सैनिक अधिक उत्साह से जन साधारण पर बल प्रयोग करने लगे।

मोहम्हद ने, जो अब हजरत मोहम्मद कहे जाने लगे थे, अपनेसैनिकों को आदेश दिया कि जिस किसी नगर, कबीला आदि के लोग उसको पैगम्बर रूप में स्वीकार नहीं करते; वे उन पर आक्रमण कर दें। उनको यह अधिकार दिया गया कि वे उस स्थान से धन सम्पत्ति, मकान खेमे, आभूषण अथवा औरतें, जो कुछ भी देखें अपने अधिकार में कर लें, उन्हें लूट लें, जिस प्रकार चाहें और जो चाहें वे सब अपने अधिकार में कर लें। उस लूट और अधिकार का पाँचवाँ भाग वे हजरत मोहम्मद को नजर कर शेष सब कुछ को परमात्मा की ओर से दिया गया समझकर उस पर अपना पूर्ण अधिकार समझें।

इस घोषणा से मोहम्मद साहब के सैनिकों के मन उछल पड़े। उनके लिए यह बहुत बड़ा आकर्षण था और मोहम्मद साहब के लिए यह बहुत बड़ी सफलता का कारण सिद्ध हुआ। मोहम्मद साहब की ओर से उनको किसी प्रकार का वेतन नहीं मिलता था। जो भी मोहम्मद को परमात्मा का पैगम्बर स्वीकार कर लेता उसको ही सेना में भरती होने का अवसर प्राप्त हो जाता था। अतः मदीना में बेकार घूमनेवाले सभी मोहम्मद के सेवक बन गए और फिर झुण्ड-के-झुण्ड बनाकर आसपास के नगरों, कबीलों, गाँवों और घरों पर आक्रमण करने लगे। धन सम्पत्ति और महिलाओं को लूटने का ऐसा आकर्षण था कि वे बेकार लोग प्राण प्रण से आक्रमण करते और जितना अधिक से-अधिक लूट मचा सकते थे, अत्याचार कर सकते थे, वह सब करते। इस आक्रमण और लूट में उनको जो कुछ भी प्राप्त होता था उसका पाँचवाँ भाग वे मोहम्मद को नजर कर देते और शेष भाग के स्वयं स्वामी बनकर उसका उपभोग करते।

इस प्रकार मोहम्मद साहब का राज्य-वृद्धि करने लगा। जो भी क्षेत्र मोहम्मद के अधीन हो जाता उसके निवासियों को न केवल मोहम्मद को अपना शासक स्वीकार करना पड़ता था, अपितु उनको मोहम्मद के मजहबी विचारों को भी मानना पड़ता था। उन विचारों में जो मुख्य बात थी वह यह कि ‘मोहम्मद रसूले इलाही है’ अर्थात् मोहम्मद इस संसार में परमात्मा के पैगम्बर के रूप में प्रकट हुआ है। मोहम्मद के ऐसे कृत्यों के आधार पर ही प्रसिद्ध अंग्रेज लेखक ‘गिब्बन’ ने लिखा है-इस्लाम एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कुरान लेकर विस्तार पा रहा है।’

इस आक्रमण और विचार-प्रसार का यह परिणाम हुआ कि मोहम्मद साहब का राज्य ही स्थापित हो गया था। मोहम्मद की दृष्टि में अपना राज्य और अपना दीन मजहब दोनों एक ही बात थे। मिस्र देश में एक लेखक हुए हैं-प्रो. इनान। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘दि डिसाइसिव मोमेंट्स इन दि हिस्ट्री ऑफ इस्लाम’1 में लिखा है कि जब मोहम्मद साहब का राज्य स्थापित हो गया तो उन्होंने अपने आसपास के राज्यों को लिखा कि वे उसके राज्य से सम्बन्ध स्थापित कर लें। किन्तु उसमें उन्होंने यह शर्त भी रख दी थी कि वे ‘दीने-इस्लाम’ को भी स्वीकार करें। यदि वे मोहम्मद को परमात्मा का दूत स्वीकार करें तो यह मान लिया जाएगा कि उस राज्य की मोहम्मद के राज्य से मित्रता है। अन्यथा उस राज्य को शत्रु राज्य माना जाएगा।इससे स्पष्ट लक्षित होता है कि मोहम्मद अपने जीवनकाल में स्वयं ही राज्य और मजहब को एक ही बात मानता था। प्रो. इनान ने यह तो नहीं लिखा कि मोहम्मद साहब की मित्रता के इस निमन्त्रण को उसके समीपवर्ती किस-किस राज्य ने स्वीकार कर लिया और किस-किस ने इसको अस्वीकार किया। किन्तु उसने यह अवश्य लिखा है कि अपने किस-किस पड़ोसी देश को हजरत मोहम्मद ने इस प्रकार का मैत्री सन्देश अथवा निमन्त्रण भेजा था। मोहम्मद के देहान्त के उपरान्त उसके राज्य के प्रबन्धकर्ता को ‘खलीफा’ की उपाधि दी गई और उसका यह कर्त्तव्य माना गया कि वह मोहम्मद साहब के पद चिन्हों पर चलकर उनके राज्य पर शासन करे और उसकी वृद्धि भी करे।

इस प्रकार खलीफाओं का शासन चलने लगा। कुछ कालोपरान्त, जब तीसरे खलीफा के शासनकाल में इराक में इस्लामी राज्य स्थापित हुआ तो खलीफा ने अरब के रेतीले प्रदेश को छोड़ दिया और इराक की राजधानी बगदाद को ही अपनी राजधानी घोषित कर दिया। खलीफा हारूँ रशीद के शासनकाल में उसके राज्य सिपहसालार मोहम्मद- बिन-कासिम ने भारत के सिन्ध प्रदेश पर आक्रमण किया। भारत पर यह उसका प्रथम सफल आक्रमण सिद्ध हुआ। यद्यपि इससे पूर्व भी भारत को धन-धान्य से सम्पन्न देश मानकर इस्लामी आक्रमण का असफल प्रयास हुआ था।

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अशोक "प्रवृद्ध"
गुमला
झारखण्ड 

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