नरेन्द्र मोदी सरकार की अर्थव्यवस्था को तेजी से पटरी पर लाने की मुहिम को भूमि अधिग्रहण कानून और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के लटक जाने से झटका लगा है तथा इसके जल्दी हल नहीं होने पर विदेशी निवेशको को आकर्षित करने के अभियान का पहिया डगमगा सकता है। मोदी सरकार का एक वर्ष पूरा होने जा रहा है और इस दौरान उसने अार्थिक सुधार से जुड़े कई महत्वपूर्ण निर्णय लिये। बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 प्रतिशत किया गया। रक्षा एवं रियल्टी क्षेत्र में एफडीआई को उदार बनाया गया तथा रेलवे में इसकी अनुमति दी गयी। सरकार ने भारत को वैश्विक विनिर्माण का प्रमुख केन्द्र बनाने एवं रोजगार सृजन के लिए मेक इन इंडिया कार्यक्रम का ऐलान कर पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित किया।
डिजिटल इंडिया अभियान के बल पर आईटी का उपयोग कर लोगों के द्वार पर प्रशासन को पहुंचाने और स्किल इंडिया कार्यक्रम के जरिये देश में युवाओं को दक्ष बनाकर कुशल कामगारो की संख्या बढाने पर जोर दिया। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष( आईएमएफ) और विश्व बैंक जैसे वैश्विक संगठनों ने सरकार के इन सुधार उपायों को जमकर सराहा और भारत को दुनिया की सबसे तीव्र गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था के खिताब से नवाजा। हालांकि हाल के कुछ महीने में राजनीतिक स्तर पर हुये कुछ घटनाक्रमों विशेषकर भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक और जीएसटी से जुड़े संविधान संशोधन विधेयक के लटकने से वैश्विक संगठनों के सुर भी बदल गये हैं।
न्यूनतम वैकिल्पक कर (मैट) के तहत बकाये कर के भुगतान के लिए विदेशी निवेशकों को जारी नोटिस से भी सरकार की सुधारवादी छवि पर असर पड़ा है। वित्त मंत्रालय ने संस्थागत विदेशी निवेशको (एफआईआई) की मैट से जुड़ी शिकायतों को निपटाने के लिए शाह समिति का गठन किया है लेकिन एफआईआई का विश्वास जीतने में सरकार फिलहाल सफल होती नहीं दिख रही है।

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