विशेष : एस पी की यादें, गुलाम मीडिया के गुलाम कर्मी! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 28 जून 2015

विशेष : एस पी की यादें, गुलाम मीडिया के गुलाम कर्मी!

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आज इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में चल रहे एस.पी.सिंह स्मृति व्याख्यानमाला में मैं भी देर से ही सही लेकिन समय से पहुंचा था! कुछ लकीरबाजी कुछ फकीरबाजी होती रही। एस.पी.सिंह के साथ काम करने और न करने का खुशी व अफसोस जाहिर किए जाते रहे। उनके होने न होने की स्थिति का समाजशास्त्रीय अध्ययन होता रहा। कुल मिलाकर बात यह निकलकर आई कि पूंजी का सब खेल है और हम पूंजी के गुलाम। कोई लेट कर गुलामी कर रहा है, कोई झूक कर तो कोई इन दोनों से इतर।मीडिया की सच्चाई यही है। राहुल देव इस बात को जोर देकर कहते रहे कि आखिर मीडिया कॉरपोरेट से दूर कब रहा है। मीडिया हमेशा से कॉर्पोरेट के अधीन ही रहा है। वो बात दीगर है तब कुछ स्पेस जनसरोकारिता के लिए होते थे आज नहीं। 

मीडियाकर्मियों को कार्पोरेट और जनसरोकारिता में सामंजस्य बिठाने के बारे में सोचने की जरूरत है। इसी बात को आआपा नेता आशुतोष भी दोहराते रहे। उन्होंने यहां तक कहा कि आज मीडियाकर्मियों की आर्थिक स्थिति इसी कार्पोरेटाइजेशन के कारण सुधरी है। स्टींगरों की स्थिति के बारे में एक मित्र ने जब सवाल किया तो उनका जवाब था कि स्टींगर अपनी खबर न दें! उन्हें जवाब मिला कि तब तो टीवी चैनल खबरों के अभाव में मर जायेंगे! उनका भाव था कि ऐसी स्थिति नहीं आयेगी। आशुतोष से किसी ने पूछ लिया की आप जब नौकरी छोड़े थे तब आपकी सैलरी कितनी थी? वे बिना बताएं दूसरी बातों अपनी बात रखते गए। अंजना ओम कश्यप यहां पर भी अपनी गरम मिज़ाजी का परिचय दिए बिना नहीं रह पायीं! उनको इस बात का डर था कि कहीं उनकी व आशुतोष की साझा तस्वीरें कोई ट्वीटर पर न लगा दे। शायद विवाद से बचना चाहती थी अंजना! वैसे भी उनके अनुसार उनके साथ भक्त लोग ज्यादा ट्वीटर-ट्वीटर खेलते हैं! पत्रकारिता में आज भी पत्रकारिता बची हुई है, इस बात को साबित करने का उन्होंने भरसक प्रयास किया लेकिन जो सुनने आए थे वो भी गलती से पत्रकारिता से ही जुड़े हुए थे। ऐसे में काले दाल की खिचड़ी का स्वाद कैसा होता है, सब जानते थे। 

सच्चाई यही है कि अब मीडिया में कोई मंच नामक संस्था बची नहीं है। अब संवाद का समय है। भाषण सुनने के लिए कोई तैयार नहीं है। अब मीडिया के बड़े संपादकों को यह मान लेना चाहिए कि वो जो कह रहे हैं उसका क्रॉस वैरीफिकेशन करने की तकनीक नई पीढ़ी के पास है! आज की पीढ़ी भ्रम में कम है, समझ में ज्यादा। इस बात को जिस दिन मीडिया के तथाकथित ट्रेंड मेकर समझ जायेंगे उस दिन से मीडिया में व्याप्त ‘आपातकाल’ की आशंका दूर होती नज़र आयेगी!



आशुतोष कुमार सिंह
स्वच्छ भारत अभियान 

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