मित्र लोग जानते हैं कि १९६७ से लेकर १९७७ तक मैं प्रभु श्रीनाथजी की नगरी नाथद्वारा में सेवारत रहा.एक तरह से मेरे अकादमिक और गृहस्थ जीवन की शरुआत इसी पावन नगरी से हुयी.स्मृति-पटल पर इस जगह की बहुत-सारी सुखद स्मृतियाँ अभी तक अंकित हैं.
मैं जब भी दुबई आता हूँ तो दुबई में बने प्रभु श्रीनाथजी के मंदिर के दर्शन करना नहीं भूलता हूँ.अजमान से लगभग एक-डेढ़ घंटे की दूरी पर स्तिथ यह मंदिर-परिसर देखने लायक है.सर्वधर्म सद्भाव की सुंदर झलक मिलती है यहाँ.गुरुद्वारा,शिरडी के सांई का मंदिर,शिवजी का मंदिर, प्रभु श्रीनाथजी का मंदिर आदि सबकुछ एक ही जगह पर.इस बार कुछ ऐसा योग बना कि दुबई स्थित श्रीनाथजी के मंदिर के स्थानीय मुखियाजी से भेंट हो गयी.जब उन्हें यह मालूम पड़ा कि मैं नाथद्वारा में रहा हूँ और वहां कॉलेज में मैं ने पढ़ाया है तो पूछिये मत. सत्तर के दशक की नाथद्वारा नगर की सारी बातें और घटनाएँ दोनों की आँखों के सामने उभर कर आ गयीं. (मनोहर कोठारी,नवनीतन पालीवाल, दशोराजी,भंवरलाल शर्मा,बहुगुणा साहब,ललितशंकर शर्मा,मधुबाला शर्मा,बाबुल बहनजी, कमला मुखिया, देवपुराजी आदि जाने कितने-कितने परिचित नाम हमारे वार्तालाप के दौरान हम दोनों को याद आये.)हालांकि वे सीधे-सीधे मेरे विद्यार्थी कभी नहीं रहे क्योंकि जब मैं कॉलेज में था तो वे आठवीं कक्षा में पढ़ते थे.मगर जैसे ही उन्हें ज्ञात हुआ कि नाथद्वारा मंदिर के वर्तमान मुखियाजी श्री इंद्रवदन मेरे विद्यार्थी रहे हैं तो वे सचमुच विह्वल हो उठे.गदगद इतने हुए कि मुझे अपना गुरु समझने लगे.स्पेशल प्रसाद मंगवया और मुझे भेंट किया.इस अवसर पर लिए गये कुछेक चित्र: मंदिर परिसर के बाहर मुख्य सडक पर बैंक ऑफ बडौदा का विशालकाय भवन है और उसके सामने वह मार्ग है जहाँ से होकर भीतर मंदिर की ओर जाया जाता है।
शिवेन रैना
Email: skraina123@gmail.com

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