विशेष : झारखण्ड में देश का पहला खेल विश्वविद्यालय का मार्ग प्रशस्त - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 5 जुलाई 2015

विशेष : झारखण्ड में देश का पहला खेल विश्वविद्यालय का मार्ग प्रशस्त

देश में पहली बार झारखण्ड में खेल विश्वविद्यालय की स्थापना का मार्ग साफ और प्रशस्त हो गया है तथा आशा है राज्य स्थापना दिवस पन्द्रह नवम्बर तक ही झारखण्ड प्रदेश में शारीरिक शिक्षा एवं खेलों की शिक्षा, शोध व ज्ञान के विस्तार के साथ खिलाडिय़ों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षण के उद्देश्य से राजधानी राँची में देश व राज्य का प्रथम खेल विश्वविद्यालय अस्तित्व में आ जायेगा । इसके लिए सत्रह जून बुधवार को राँची के होटल बीएनआर में राज्य सरकार और भारतीय कोयला निगम की आनुषांगिक कम्पनी सेन्ट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल)  के मध्य झारखण्ड खेल विश्वविद्यालय एवं झारखण्ड खेल अकादमी स्थापित करने का समझौता अर्थात एम ओ यू हुआ, जिसके तहत सीसीएल निगमित सामाजिक दायित्व कोष से राष्ट्रीय खेलों के लिए बने विशाल खेल परिसर में इस विश्वविद्यालय की स्थापना करेगा। 

मुख्यमंत्री रघुवर दास और सीसीएल के सीएमडी गोपाल सिंह की उपस्थिति में समझौते पर सीसीएल की ओर से सीएम (सीएसआर) जी तिवारी और राज्य की ओर से खेल सचिव अविनाश कुमार ने हस्ताक्षर किये। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इस समझौते को राज्य के सवा करोड़ से अधिक युवाओं के लिए एक बडा अवसर बतलाते हुए कहा कि इस राज्य में एकलव्य की कमी नहीं है। कमी थी, एक द्रोणाचार्य की। द्रोणाचार्य की वह कमी यह संस्थान पूरा करेगा। झारखण्ड खेल विश्वविद्यालय एवं अकादमी की स्थापना राज्य में खेल और खिलाडियों के लिए वरदान साबित होगा। राज्य में 1.32 करोड़ युवा हैं। यह उनके सपनों का संस्थान होगा। यहाँ अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधा दी जायेगी । मुख्यमंत्री दास ने यह भी खुलासा किया कि उन्होंने केंद्रीय उर्जा एवं कोयला मंत्री पीयूष गोयल से राँची में झारखण्ड खेल विश्वविद्यालय की स्थापना में मदद माँगी थी और इतनी द्रुत गति से उनके मंत्रालय ने जो सहयोग किया है यह प्रशंसनीय है। खेल मंत्री अमर कुमार बाउरी ने इसे देश के लिए गौरव की बात बतलाते हुए कहा कि यह पूरे देश के लिए गर्व की बात है। देश में पहली बार खेल विश्वविद्यालय की स्थापना की जा रही है। राज्य में इसका वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर होगा। इसका फायदा यहाँ के खिलाड़ियों को मिलना चाहिए। यहाँ के खिलाड़ियों में क्षमता की कमी नहीं है ।जिसे प्रशिक्षण देकर उच्च स्तर तक पहुँचाया जा सकता है। जो खिलाड़ी खेल में अपनी उम्र गुजार दे रहे हैं, उनके लिए रोजगार की व्यवस्था भी होनी चाहिए।

उल्लेखनीय है कि फरवरी, 2011 में राँची में चौंतीसवें राष्ट्रीय खेलों के आयोजन के लिए अरबों रूपये खर्च कर एक विशाल क्षेल परिसर का निर्माण किया गया था, परन्तु राष्ट्रीय क्षेलों के आयोजन के बाद से ही उस उद्देश्य से बना विशाल खेल परिसर लगभग अनुपयुक्त ही पड़ा था लेकिन अब इसका समुचित उपयोग खिलाडियों के प्रशिक्षण के लिए हो पाएगा। मुख्य सचिव राजीव गौबा ने कहा कि 2011 में राष्ट्रीय खेल के समय आधारभूत संरचना का निर्माण किया गया था। इसका उपयोग यदा-कदा ही हो रहा था। इसके रखरखाव के लिए कोई दीर्घकालीन व्यवस्था नहीं थी। इस कारण इसकी गुणवत्ता भी गिर रही थी ।इस समझौते से रखरखाव हो पायेगा और राज्य के खिलाडियों का प्रतिभा संवारने का काम भी हो पायेगा। सीसीएल के प्रबन्ध निदेशक गोपाल सिंह ने कहा कि खेल गाँव में उपलब्ध अधिसंरचना का इससे अच्छा सदुपयोग नहीं हो सकता था कि वहाँ देश और झारखंड के प्रतिभावान खिलाडियों को उनके खेलों में विशेष प्रशिक्षण दिया जाये। झारखण्ड में खेल और खिलाडियों को लेकर असीम क्षमता है और यहाँ कई धौनी, असुन्ताएँ और दीपिकाएँ पैदा हो सकती हैं, आवश्यकता मात्र उन्हें उचित प्रोत्साहन देने की है। 

उल्लेखनीय है कि झारखण्ड के खिलाडियों ने देश और दुनिया में झारखण्ड का परचम लहराया है और अब इस तरह की आधारभूत संरचना खडी होने और अंतरराष्ट्रीय स्तर का प्रशिक्षण प्राप्त होने से राज्य के खिलाडियों को अपना कौशल दुनिया के सामने पेश करने का बडा अवसर प्राप्त होगा। सीसीएल के सीएमडी गोपाल सिंह का यह कहना भी आशा जगाता है कि यह प्रयास किया जायेगा कि कैसे खेल के माध्यम से गरीब ग्रामीणों का विकास हो? पूरे देश में ऐसा समझौता नहीं हुआ था। पहली बार ऐसा हुआ है । इसे देश का सबसे बेहतरीन संस्थान बनाया जायेगा। देश के लिए उदाहरण बनेगा । इसमें कोई शक नहीं कि झारखण्ड खेल विश्वविद्यालय के अस्तित्व में आ जाने से जहाँ झारखण्ड के युवा और देश के युवाओं को खेल के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा को निखारने का अच्‍छा मौका मिल जायेगा वहीँ खेलों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार कर खेल जगत में प्रदेश को देश में अग्रणी राज्य के रूप में स्थापित करने और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाए जाने के उद्देश्य से भी यह कारगर साबित होगी तथा खेल सुविधाओं के विकास एवं प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों को पर्याप्त अवसर उपलब्ध होंगे। 

उल्लेखनीय है कि झारखण्ड सरकार और सेन्ट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड के मध्य समझौते के शर्तों के अनुसार इसके लिए एक संयुक्त परियोजना कमेटी बनायी जायेगी, इसमें झारखण्ड खेल प्राधिकरण की भागीदारी 26 से 49 प्रतिशत तक होगी। इसमें 15 खेल विधाओं की खेल अकादमी की स्थापना की जायेगी और 1400 विद्यार्थियों का नामांकन होगा। 700 प्रतियोगिता से आयेंगे ।शेष 700 में 350 राज्य सरकार और 350 सीसीएल से चयनित बच्चे होंगे । इनका खर्च राज्य सरकार व सीसीएल उठायेंगे। समझौते के अनुसार लाभ में सरकार को हिस्सा मिलेगा और हानि की भरपाई भी सरकार करेगी। एकेडमी में नामांकन पानेवाले बच्चों की शिक्षा के लिए विद्यालय की भी स्थापना होगी। इसके संचालन के लिए प्रशासी परिषद का गठन होगा, जिसके अध्यक्ष सह संरक्षक मुख्य सचिव होंगे और सह संरक्षक सीसीएल के सीएमडी होंगे।कार्यकारिणी परिषद का गठन भी किया जायेगा, जिसके अध्यक्ष खेलकूद व कला संस्कृति विभाग के सचिव होंगे। 50 प्रतिशत राज्य के बच्चे होंगे और इनको वसूलनीय शुल्क में 50 प्रतिशत की छूट मिलेगी। शेष 50 प्रतिशत विद्यार्थियों का चयन पूरे देश से होगा।स्थापना में प्रारंभिक व्यय सीसीएल के सीएसआर फंड से होगा। अकादमी में नामांकन लेनेवाले बच्चों को प्लस टू तक की शिक्षा और 500 रु प्रतिमाह छात्रवृति अर्थात स्टाइपेंड भी दी जायेगी। हालाँकि इसके विरोधी भी पक्ष-विपक्ष में कई मौजूद हैं, और समझौते के पूर्व ही राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा के खेलकूद प्रकोष्ठ के अनिल कुमार ने राज्यपाल को पत्र लिख कर खेल यूनिवर्सिटी और खेल अकादमी के लिए होने वाले एमओयू को रोकने की माँग करते हुए लिखा है कि कमेटी में खेल से जुड़े लोगों को शामिल नहीं किया गया है। मुख्यमंत्री व खेल मंत्री भी कमेटी में नहीं हैं। कमेटी में सिर्फ खेल विभाग और सीसीएल के आला अधिकारियों को शामिल किया गया है।  इससे न तो खिलाड़ियों को और न सरकार को फायदा होगा।

उल्ल्लेख्न्नीय है कि देश में खेल विश्वविद्यालय स्थापित करने की पहल कोई नहीं है, इससे पूर्व भी राजस्थान में ऐसी पहल हो चुकी है,लेकिन राजस्थान सरकार की वह पहल परवान न चढ़ सकी। वर्ष 2011 में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बजट में निजी जनसहभागिता मोड (पीपीपी) में प्रदेश के पहले खेल विश्वविद्यालय की घोषणा की थी। निजी फर्म ने सरकारी अनुदान प्रतिशत को लेकर मतभेद होने पर अपने हाथ वापस खींच लिए। तब दिसंबर 2012 में सरकार ने सरकारी खेल विश्वविद्यालय की घोषणा की, परन्तु यह मामला पाँच साल बाद भी मामला जमीन आंवटन से आगे नहीं बढ़ सका। जबकि विश्वविद्यालय के लिए लगाए गए कुलपति का बाकायदा वेतन उठ रहा है।

वर्र्तमान में विज्ञान ने बहुत उन्नति की है, मगर मानव के स्वास्थ्य के साथ बहुत खिलवाड़ भी हुआ है। आधुनिकता की दौड़ में अंतरराष्ट्रीय भाईचारा व मैत्री तो बहुत दूर की बात है, मनुष्य अपने परिवार को ही कलह से नहीं बचा पा रहा है। खेल जहाँ मनुष्य को स्वास्थ्य प्रदान करते हैं, वहीं मानव को सबके साथ मिलकर चलना भी सिखाते हैं। खेलकूद से हमारी कार्य क्षमता बढ़ती है, तो देश का विकास भी होगा और देश श्रेष्ठता की ओर बढ़ेगा। इसके लिए राज्य व देश में खेलों को बढ़ावा देना होगा, ताकि हम जहाँ प्रदेश व देश को चुस्त-दुरुस्त व सेहतमन्द नागरिक दे सकें। इसी से विश्व स्तर के कई खिलाड़ी भी निकाले जा सकते हैं। ओलंपिक जैसी संसार की सबसे बड़ी खेल प्रतियोगिता में भारत के लिए पदक जीतकर देश व झारखण्ड को गौरव दिला सकें।आशा है झारखण्ड में खेल विश्वविद्यालय और खेल अकादमी के स्थापन से इस उद्देश्य की पूर्ति अर्थात खेल और खिलाडियों के विकास और प्रतिभा निखारने के पर्याप्त अवसर अवश्य ही प्राप्त होंगे ।



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-अशोक “प्रवृद्ध”-
गुमला
झारखण्ड 

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