जैन धर्म में चातुर्मास का अत्याधिक महत्व है। चातुर्मास काल सदैव अध्यात्मिक वातावरण और अच्छे विचार परिवर्तन का अवसर प्रदान करते है। जिस प्रकार बादल की सार्थकता बरसने में है, पुष्प की सुगंध में तथा सूर्य की सार्थकता रौशनी में है उसी प्रकार चातुर्मास की सार्थकता परिवर्तन में है।
चातुर्मास को जैन धर्म में सामूहिक वर्षायोग तथा वर्षावास व चातुर्मास के रूप में जाना जाता है, जैन मान्यता अनुसार बारिश के मौसम के दौरान, अनगिनत कीड़े, सूक्ष्माति सूक्ष्म जीवों को आंखों में नहीं देखा जा सकता है तथा वर्षा के मौसम के दौरान जीवो की उत्त्पति भी सर्वाधिक होती है. हलन - चलन की ज्यादा क्रियाये इन मासूम जीवो को ज्यादा परेशान करेगी. अन्य प्राणियों को साधुओ के निमित से कम हिंसा होे तथा उन जीवो को ज्यादा अभयदान मिले अतः चारित्रआत्माऐं चार महीने के लिए एक स्थल पर रहने के लिए अर्थात विशेष परिस्थितिओं के अलावा एक ही जगह पर रह कर स्वकल्याण के उदेश्य से ज्यादा से ज्यादा स्वाध्याय, तप, प्रवचन, प्रतिक्रमण तथा जिनवाणी के प्रचार-प्रसार को महत्व देते है।
यह सर्व विदित ही कि चारित्र आत्माओं का कोई स्थायी स्थल नहीं होता तथा जन कल्याण की भावना संजोये वे वर्ष भर एक स्थल से दुसरे स्थान तक पद यात्रा कर श्रावक-श्राविकाओ को अहिंसा, सत्य, ब्रम्हचर्य व धार्मिक जीवन व्यतीत करने का विशेष ज्ञान बांटते रहते है तथा पुरे चातुर्मास अर्थात 4 महीने तक एक क्षेत्र की मर्यादा में स्थाई रूप से निवासित रहते हुए जैन दर्शन के अनुसार मौन-साधना, ध्यान, उपवास, स्व अवलोकन की प्रक्रिया, सामयिक ओर प्रतिक्रमण की विशेष साधना, धार्मिक उदबोधन, संस्कार शिविरों से हर महानुभाव के मन मंदिर में जन-कल्याण की भावना जाग्रत करने का सुप्रयास जारी रहता है.. तीर्थंकरो ओर सिद्ध पुरुषों की जीवनियो से अवगत कराने की प्रक्रिया इस पुरे वर्षावास के दरम्यान निरंतर गतिमान रहती है तथा परिणिति सुश्रवाको तथा सुश्रविकाओ के द्वारा अनगिनत उपकार कार्यो के रूप में होती है। एक सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार पर्युषण पर्व की आराधना भी इसी दौरान होती है..पर्युषण के दिनों में जैन समुदाय की गतिविधि विशेष रहती है तथा जो जैन धर्मवलम्बी वर्ष भर या पुरे चार माह तक कतिपय कारणों से जैन दर्शन में ज्यादा समय नहीं प्रदान कर पाते वे इन पर्युषण के 8 दिनों में अवश्य ही रात्रि भोजन का त्याग, ब्रम्हचर्य, स्वाध्याय, जप - तप मांगलिक प्रवचनों का लाभ तथा साधु-संतो की सेवा में संलिप्त रह कर जीवन सफल करने की मंगल भावना दर्शाते है।
चातुर्मास का सही मूल्यांकन श्रावको ओर श्राविकाओ के द्वारा लिए गए स्थायी संकल्पों एवं व्रत प्रत्याखानो से होता है। यह समय आध्यात्मिक क्षेत्र में लगात्तर नई ऊँचाइयों को छुने हेतु प्रेरित करने के लिए है, अध्यात्म जीवन विकास की वह पगडण्डी है जिस पर अग्रसर होकर हम अपने आत्स्वरूप को पहचानने की चेष्टा कर सकते है। साधु-साध्वियो के भरसक सकारात्मक प्रयांसो की बदोलत कई युवा धर्म की ओर उन्मुख होकर ज्ञान-ध्यान सीखकर स्वयं के साथ दूसरों के कल्याण की सोच हासिल करते है, कई सुश्रावक-सुश्रविका पारंगत होकर स्वाध्यायी बनकर जिन क्षेत्रो में साधू-साध्वी विचरण नहीं कर रहे है, वहां जाकर स्वाध्याय तथा जन कल्याण की भावना का प्रचार प्रसार कर अपना जीवन संवार लेते है।
सैकंडो जिज्ञासाओ को शांत करने का सुअवसर है,चातुर्मास।
स्वधर्मी के कल्याण की अलख जगाता है,चातुर्मास
जीवदया की ओर उन्मुख करता है चातुर्मास
जन से जैन बने, प्रेरणादाई है चातुर्मास
साहित्य की पुस्तकों से रूबरू होने का जरिया है,चातुर्मास
उपवास से कर्म निर्जरा का सन्मार्ग दिखाता है चातुर्मास
सम्यग ज्ञान ,दर्शन ओर चरित्र की पाटी पढ़ाता है,चातुर्मास
कई धार्मिक.शेक्षणिक शिविरों की जन्मदात्री है,चातुर्मास
कई राहत कार्यों के आयोजनों का निर्माता है चातुर्मास
तपस्वी तथा आचार्या भगवन्तो के पावन दर्शन से लाभान्वित होने का मार्ग है चातुर्मास
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