विशेष : सेल्फ़ी, सोशल मीडिया और सशक्तिकरण ? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 4 जुलाई 2015

विशेष : सेल्फ़ी, सोशल मीडिया और सशक्तिकरण ?

सेल्फ़ी शब्द से आप शायद ही रूबरू न हुए हों। क्यों ले चुके न आप अपनी भी सेल्फ़ी। अगर नहीं ली है तो देर मत कीजिये। बस फटाफट अपना एंड्राइड फोन उठाकर खिच्च् खिच्च् कर डालिये। बाकी एक्सप्रेशंस कैसे और क्या देने हैं, ये आप ही तय कीजिये। दरअसल आधुनिकता के बढ़ते क़दमों के साथ एक शोर सा उठा। जिसमें फ्रंट, बैक कैमरे के साथ पिक्सलों का भी जिक्र था। साथ ही तस्वीर के टाइप की उपज हुई जिसका नामकरण सेल्फ़ी के तौर पर हुआ। कोई भौहें टेढ़ी करके सेल्फ़ी ले रहा है तो कोई प्यार जताने के लिए किस देने जैसा एक्सप्रेशन देकर। मतलब ये कि सेल्फ़ी के साथ एक्सप्रेशंस की क्या बात-क्या बात ? न जाने कितने तरीके बस कुछ क्लोज अप और पासपोर्ट साइज़ की फोटो की तर्ज पर। एकदम होड़ सी शुरू हो गयी। मॉल्स, पब, रेस्त्रां सेल्फ़ी का बहाना बन गए। अजी बैकग्राउंड कुछ सॉलिड टाइप का होना चाहिए न। नहीं तो फिर बताएंगे कैसे कि हम भी फला फला जगह जा चुके हैं।

फिलवक्त बेटियों को समाज में अव्वल स्थान पर पहुंचाने की दिशा में मोदी ने सेल्फ़ी विद डॉटर का एक व्यापक तौर पर आयोजन किया। जिसकी प्रशंसा में कई देशों ने तारीफें पढ़ीं। पर एक बात फिर से पुरानी विचारधारा से तैयार सींखचे में फँसी हुई नज़र आई। सशक्त और बेटी समेत नारी को तथाकथित हिम्मत थमाई गई। सोशल मीडिया पर इस आयोजन के बाद कहें या साथ से ही फूहड़ता चिपकाई जानें लगी। लोगों की नज़रें और जुबान से सरकती अफ़सोस की ध्वनि रिश्ते में पाप तय करने लगा। जी दरअसल हम कांग्रेस के बड़बोले दिग्विजय सिंह एवम् टीवी एंकर अमृता राय की पर्सनल फ़ोटो की बात कर रहे हैं। खूब जमकर, धड़ल्ले से फोटो को शेयर, लिंक, क्लिक कर दो तनों के बीच की दूरियों को भाँपने का प्रयास किया जा रहा है। उम्र को माई बाप की तरह रटते हुए जन्म की तारीखें तलाशी जा रही हैं।

बहरहाल इतना सब कुछ क्यों और किसलिए हो रहा है ? क्या महज दिग्विजय सिंह की फजीहत के लिए। यदि इसीलिए ये सब हो रहा है तो ज़रा नारीत्व के अस्तित्व में धाँसे गए उन गहरे काँटों को, समाज की फब्तियों के  असर फिर उनके साथ बसर को अपने दिमाग में सौ, दो सौ मील तक दौड़ा कर देखिये। सच नारीत्व को फिर से कठघरे में खड़े होकर रोना ही पड़ेगा। मानेंगे न।



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'आत्मीय'
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