आलेख : बहसों में उसका निष्पक्ष और वस्तुपरक होना अति आवश्यक है. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 11 जुलाई 2015

आलेख : बहसों में उसका निष्पक्ष और वस्तुपरक होना अति आवश्यक है.

टीवी चैनलों पर दिखाई जाने वाली बहसों का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए विचार-मंथन द्वाराजनता के सोच या फिर उसके चिन्तन का सही-सही प्रतिनिधित्व करना ताकि श्रोता/दर्शक के ज्ञान में इज़ाफा हो.अन्य प्रकार के विषयों यथा विज्ञान,समाजशास्त्र,पर्यावरण,कला-साहित्य आदिसे जुडी बहसों में एंकर आत्मपरक हो सकता है, मगर राजनीतिक विषयों और खासतौर पर समसामयिक और अति संवेदनशील मुद्दों पर होने वाली बहसों में उसका निष्पक्ष और वस्तुपरक होना अति आवश्यक है.एक बात यह भी ज़रूरी है कि डिस्कशन/बहस में जो भी ‘पन्नेलिस्ट’/प्रवक्ता बुलाये जाएँ वे अनिवार्यतः देश की पक्ष और विपक्ष की प्रमुख राजनीतिक विचारधाराओं से सम्बन्ध रखने वाले हों.इससे बहस में संतुलन और आकर्षण बना रहेगा. पैनल बड़ा हो तो सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रवक्ताओं को आमंत्रित किया जाना चाहिए.मसलन अगर पैनल में सात बोलने वाले हैं तो तीन पक्ष से,तीन प्रतिपक्ष से और एक निष्पक्ष(विचारक/पत्रकार/विश्लेषक) होने चाहिए.

एंकर अपना ज्ञान कम बघारे,नपी-तुली भाषा में विषय का प्रवर्त्तन करे,खुद को कम समय दे और विद्वान/विशेषज्ञ-प्रवक्ता को बोलने का समय अधिक दे.बहस के दौरान समय-समय पर असंयत अथवा खुंदक खाए प्रवक्ता की बेवजह और जानबूझ कर ध्यान बंटाने के लिए की जाने वाली टोका-टोकी/अनर्गल प्रलाप पर लगाम कसे क्योंकि एक बार यह सिलसिला शुरू हो जाता है तो फिर थमता नहीं है. बहस के दौरान कभी-कभी ऐसा लगता है कि एंकर खुद किसी दल-विशेष का प्रवक्ता बन रहा होता है.यह कोई उम्दा अथवा निष्पक्ष ‘एंकरिंग’ नहीं कहलाएगी. दर्शक/श्रोता सब समझता है.इस प्रवृत्ति से भी बचने की सख्त ज़रूरत है.

सरकार उचित समझे तो टीवी चैनलों पर दिखाई जाने वाली बहसों खास तौर पर राजनीतिक और देशहित से सीधे-सीधे जुडी बहसों के लिए एक आचार-संहिता जारी कर सकती है ताकि दर्शकों को किच-किच से परे एक सार्थक,साफसुथरी और ज्ञानवर्द्धक ‘डिबेट’ देखने/सुनने को मिल सके।




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शिबन कृष्ण रैणा
अलवर

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