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गुरुवार, 9 जुलाई 2015

व्यापम मामले में मौतों से डरी जेल प्रशासन कैदियों को कहीं और ले जाने को कहा

मध्य प्रदेश के व्यापमं घोटाले में गिरफ्तार 30 वर्षीय पशु चिकित्सक की इंदौर जिला जेल में बीमार होने के बाद एक स्थानीय अस्पताल में संदिग्ध हालात में मौत से खड़े हुए बवाल के बाद जेल प्रशासन घोटाले में बंद 17 विचाराधीन कैदियों को किसी दूसरे कारागार में स्थानांतरित करना चाहता है. माना जा रहा है कि जेल प्रशासन भविष्य में इस तरह के बवाल से बचने के लिये व्यापमं घोटाले के इन आरोपियों को दूसरे कारागार भेजना चाहता है. हालांकि, इस कवायद के पीछे उसका औपचारिक तर्क है कि करीब 920 कैदियों वाले जेल में इलाज की पुख्ता व्यवस्था नहीं है. 

जिला जेल के अधीक्षक आरएस भाटी ने बताया, ‘हम व्यापमं घोटाले में बंद 17 आरोपियों को किसी ऐसे जेल में स्थानांतरित करने के लिये जिला अदालत में जल्द ही अर्जी दायर करेंगे, जहां कैदियों के लिये 24 घंटे खुला रहने वाला अस्पताल और पर्याप्त चिकित्सा स्टाफ हो.’ भाटी ने बताया कि फिलहाल जिला जेल में व्यापमं घोटाले के 17 आरोपियों समेत करीब 920 कैदी हैं. लेकिन इस जेल की चिकित्सा व्यवस्था का जिम्मा एक पार्ट टाइम डॉक्टर पर है, जो रात के वक्त आमतौर पर उपलब्ध नहीं रहते. ऐसे में यह व्यवस्था कम्पाउंडर और पुरुष नर्स के भरोसे रहती है. 

व्यापमं घोटाले के आरोपियों में शामिल नरेन्द्र सिंह तोमर (30) की जिला जेल में 27 जून को देर रात तबीयत बिगड़ी थी. जेल से उसे महाराजा यशवंतराव अस्पताल ले जाया गया, जहां कुछ देर बाद उसे मृत घोषित कर दिया गया था. संदिग्ध हालात में तोमर की मौत के मामले की न्यायिक जांच की जा रही है. मूलत: मुरैना जिले के रहने वाले तोमर को पुलिस ने व्यापमं घोटाले में दलाली के आरोप में 17 फरवरी को गिरफ्तार किया था. उस वक्त वह सहायक पशु चिकित्सा अधिकारी के रूप में रायसेन जिले में पदस्थ था. 

इस बीच, व्यापमं घोटाले का खुलासा करने वाले आरटीआई कार्यकर्ताओं में शामिल डॉ. आनंद राय ने कहा कि इस मामले में जिला जेल में बंद 17 आरोपियों को किसी दूसरे जेल में स्थानांतरित करने की कवायद ‘स्वागतयोग्य’ है.  उन्होंने कहा, ‘व्यापमं घोटाले की बड़ी मछलियों की गिरफ्तारी के लिये इन 17 आरोपियों का जिंदा रहना बेहद जरूरी है.’ 

राय ने तोमर के इलाज में प्रदेश सरकार की गंभीर लापरवाही का भी आरोप लगाया. उन्होंने कहा, ‘जिला जेल में तोमर के इलाज के लिये डॉक्टर उपस्थित नहीं था. उसे जब महाराजा यशवंतराव अस्पताल ले जाया गया, तब वहां जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल के चलते चिकित्सा व्यवस्था चरमरायी हुई थी. अगर उसे वक्त पर इलाज मिल जाता, तो उसकी जान बच सकती थी.’  

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