कांग्रेस ने एनक्रिप्शन नीति को वापस लिये जाने के सरकार के फैसले का जनता के दबाव का परिणाम बताते हुए आज आरोप लगाया कि 16 महीनों से मोदी सरकार व्यक्ति की निजता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने आैर नियंत्रित करने का कुत्सित प्रयास कर रही है। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने यहाँ पार्टी की ब्रीफिंग में आरोप लगाया कि पहले तो इलैक्ट्राॅनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने एनक्रिप्शन नीति का मसौदा जारी किया, फिर 24 घंटों के अंदर उसमें बदलाव किया गया और बाद में जनता की ओर से विरोध के सुर उठने पर उसे वापस ले लिया गया। सरकार ने यह भी कहा है कि इस मसौदे पर वह पुनर्विचार करके दोबारा लाएगी। उन्होंने कहा कि यह मसौदा इंटरनेट सुरक्षा के नाम पर लोगों की 24 घंटे जासूसी करने तथा लाइसेंस एवं पंजीकरण राज वापस लाने की साजिश था।
इससे भारत को समूचे आईटी जगत से अलग थलग पड़ने का खतरा था। देश में 24.31 करोड़ इंटरनेट उपभोक्ता हैं जिनमें 17.30 करोड़ मोबाइल पर इंटरनेट इस्तेमाल करते हैँ। करीब 11.20 करोड़ फेसबुक इस्तेमाल करते हैं। आठ करोड़ से अधिक लोग व्हाट्सएप का उपयोग करते हैं और 2.20 करोड़ लोग ट्विटर उपयोग करते हैं। नयी नीति से ये सब लोग सरकार के निगरानी के अधीन आ जाएँगे। श्री सुरजेवाला ने कहा कि मोदी सरकार 16 माह से लगातार एक के बाद एक व्यक्ति की निजता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलने के प्रयास कर रही है। इसका ताजा उदाहरण महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार द्वारा सरकार की आलोचना में लिखने पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करने का फरमान था जिसे भारी विरोध के बाद वापस लिया गया है। गुजरात में भी पटेल आरक्षण के आंदोलन में राज्य के छह करोड़ 30 लाख लोगों को व्हॉट्सएप के प्रयोग को रोका गया था। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के एक छात्र समूह द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ लिखने पर प्रतिबंधित करने के प्रयास और नेट न्यूट्रिलिटी के मुद्दे पर ट्राई के परिपत्र भी इसी का उदाहरण है।
संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद द्वारा इस व्यवस्था को केवल कारोबार के संबंध में किये जाने के बयान की आलोचना करते हुए कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि वह सफेद झूठ बोल रहे हैं। मसौदे में साफ साफ लिखा है कि ना केवल कारोबारी बल्कि कारोबार एवं ग्राहक, सरकार एवं कारोबार, सरकार एवं जनता तथा आम जनता के बीच संदेशों को 90 दिनों तक सहेज कर रखना होगा। इसके लिये अरबाें रुपये का खर्च होगा, वो कहां से आएगा। श्री सुरजेवाला ने कहा कि आगे इस बारे में निर्णय करते हुए सरकार को यह ध्यान में रखना चाहिये कि कहीं इससे दो व्यक्तियों के बीच निजी संवाद में विश्वास का संकट तो नहीं पैदा हो जाएगा। क्या इससे लाइसेंस एवं पंजीकरण राज को बढ़ावा नहीं मिलेगा। गूगल, याहू, अमेजन, फ्लिपकार्ट, एमएसएन, रेडिफ, क्रोम, मोज़ीला आदि विदेशी कंपनियों को देश में पंजीकरण कराना होगा। यह डिजीटल इंडिया और ‘ईज़ ऑफ बिज़नेस’ के लिहाज से हतोत्साहित करने वाली बात होगी। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार का ऐसा निर्णय देश को 17वीं सदी में ले जाने का प्रयास होगा। तभी उन्हें जनता के विरोध को देखते हुए यू टर्न लेना पड़ा है। मोदी सरकार निर्णय पहले लेती है, सोचती बाद में है।

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