राष्ट्रीय एकता के लिए क्षमा का सिद्धांत जरूरी: प्रणव मुखर्जी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 29 सितंबर 2015

राष्ट्रीय एकता के लिए क्षमा का सिद्धांत जरूरी: प्रणव मुखर्जी

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नई दिल्ली, 29 सितम्बर 2015, राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने जैन समाज के सर्वोपरि आध्यात्मिक पर्व पर्युषण एवं दसलक्षण महापर्व के समापन पर आयोजित क्षमापना दिवस पर कहा कि क्षमा एवं मैत्री का सिद्धांत राष्ट्रीय एकता के लिए जरूरी है। इस पर्व की आज अधिक प्रासंगिकता है। राष्ट्रपति ने क्षमापना दिवस पर अपनी शुभकामनाएं व्यक्त की। श्री मुखर्जी राष्ट्रपति भवन में सुखी परिवार अभियान के प्रणेता एवं प्रख्यात जैन संत गणि राजेन्द्र विजयजी के नेतृत्व में जैन समाज के प्रतिनिधियों से विचार संगीति में उक्त उद्गार व्यक्त किए। इस अवसर पर सांसद श्री रामसिंह भाई राठवा, श्री राजकुमार जैन, सूर्यनगर एज्यूकेशनल सोसायटी के महासचिव श्री ललित गर्ग, सुखी परिवार अभियान के श्री अमित जैन, श्री राकेश कुमार जैन आदि उपस्थित थे। श्री ललित गर्ग ने गणि राजेन्द्र विजय की महत्वपूर्ण पुस्तक ‘हिंसा का अंधेरा: अहिंसा का प्रकाश’ एवं ‘योग के व्यावहारिक प्रयोग’ श्री प्रणव मुखर्जी को भेंट की। जिस पर श्री मुखर्जी ने कहा कि जैन समाज सदैव मानवता की सेवा के लिए तत्पर रहता है। भगवान महावीर के अहिंसा, अनेकांत व अपरिग्रह का सिद्धांत लोकतांत्रिक मूल्यों की सुदृढ़ता के लिए उपयोगी है। 

इस अवसर पर गणि राजेन्द्र विजय ने सुप्रसिद्ध दार्शनिक श्री वीरचंदजी राघवजी गांधी की 150वीं जन्म जयंती की चर्चा करते हुए कहा कि जैन समाज के गौरव एवं भारतीय संस्कृति के विश्व शांतिदूत श्री वीरचंद राघवजी का यह 150वां जन्मोत्सव वर्ष है। शिकागो में 1893 मंे हुए विश्व धर्म संसद में जैन समाज के एकमात्र आचार्य विजयानंद सूरिजी महाराज को इस सम्मेलन में भाग लेने का निमंत्रण मिला था। पदयात्रा की मर्यादा के कारण वे नहीं जा सकते थे। इसलिए उन्होंने श्री राघवजी गांधी को अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजा। श्री राघवजी का संपूर्ण जीवन महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर आधारित रहा है। गणि राजेन्द्र विजय ने आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरिश्वरजी द्वारा प्रारंभ किये गये संक्रांति महोत्सव के हीरक जयंती वर्ष की चर्चा करते हुए कहा कि यह संक्रांति महोत्सव प्रतिमाह एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश के अवसर पर मनाया जाता है। इसे मनाने की परम्परा का यह 75वां वर्ष है। इसे आयोजित करने का उद्देश्य समाज में साम्प्रदायिक सौहार्द एवं आपसी भाईचारा निर्मित करना है। यह भी अहिंसा की साधना का एक विशिष्ट उपक्रम है। आज हिंसा, युद्ध, आतंकवाद, सांप्रदायिक विद्वेष एवं अराजकता के वर्तमान दौर में अहिंसा एवं राष्ट्रीय एकता के मूल्यों को स्थापित करने में जैन समाज की महत्वपूर्ण भूमिका है। 

इस अवसर पर सांसद श्री रामसिंह भाई राठवा ने गुजरात के आदिवासी अंचल में गणि राजेन्द्र विजय के प्रयासों से स्वस्थ समाज रचना की दृष्टि से किये जा रहे प्रयासों की चर्चा की। उन्होंने आदिवासी जनजीवन में अहिंसा स्थापना के लिए किये गये प्रयत्न के साथ-साथ शिक्षा, सेवा और जनकल्याण के कार्यक्रमों की जानकारी दी।

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