भाजपा के विजन डाॅक्यूमेंट में जनता को धोखा देने का है विजन: माले - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 3 अक्टूबर 2015

भाजपा के विजन डाॅक्यूमेंट में जनता को धोखा देने का है विजन: माले


  • 5 डिसमिल आवासीय जमीन देने की बात कहने वाली भाजपा भूमि सुधार आयोग की सिफारिशों को लागू करने का क्यों नहीं करती वादा? 
  • भाजपा के एजेंडे में बटाईदारों के हक-अधिकार पर एक शब्द नहीं.

cpi ml logoपटना 2 अक्टूबर 2015, माले राज्य सचिव कुणाल ने भाजपा द्वारा बिहार विधानसभा चुनाव 2015 के लिए जारी विजन डाॅक्यूमेंट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि इसमें केवल जनता को और ज्यादा धोखा देने का विजन है. किसानों, भूमिहीनों, बेघरों, महादलितों समेत अन्य वर्गों के लिए उसके विजन डाॅक्यूमेंट में जो वादे किये गये हैं, वे महज चुनावी जुमला हैं. बिहार की जनता इसे देख-सुन रही है.

उन्होंने कहा कि भाजपा सभी गरीबों को आवास के लिए 5 डिसमिल जमीन देने का वादा कर रही है. भूमिहीनों को खेती की जमीन भी उपलब्ध करायी जाए, उस पर वह पूरी तरह चुप्प है. जबकि जब बिहार में भाजपा-जदयू की सरकार थी, तब डी बंद्योपाध्याय आयोग ने भूमि सुधार से संबंधित अपनी रिपोर्ट में कहा था कि बिहार में 21 लाख एकड़ से अधिक फालतू जमीन है. यदि इसे भूमिहीन गरीबों में बांटा जाए तो प्रत्येक परिवार को कम से कम 10 डिसमिल जमीन हासिल होगी. यदि सच में भाजपा को गरीबों की इतनी चिंता होने लगी है तोे वह भूमि सुधार आयोग की सिफारिशों को मुकम्मल तौर पर लागू करने की बात क्यों नहीं कर रही है?

उन्होंने आगे कहा कि भाजपा का कहना है कि उसकी सरकार बनी तो किसानों को बड़ी राहत दी जाएगी. लेकिन पूरे देश की जनता ने देखा है कि किसानों के प्रतिरोध के बावजूद मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण अध्यादेश लेकर आई. क्या इसी तरह के अध्यादेशों से किसानों की भलाई होगी. भाजपा बटाईदार किसानों को किसान मानती ही नहीं है, उसके लिए बड़े भूस्वामी ही किसान हैं. इसलिए उसके विजन डाॅक्यूमेंट में बटाईदार किसानों के रजिस्टेशन व उनका कानूनी अधिकार दिलाने की बात सिरे से गायब है. साथ ही उसका कहना है कि समय पर ऋण अदा करने वाले किसानों से ब्याज नहीं लिया जाएगा. लेकिन आज बिहार के अधिकांश किसान महाजनी व बैंक के कर्ज से आत्महत्या कर रहे हैं. तमाम तरह के कर्ज की मंसूखी भाजपा के लिए कोई एजेंडा नहीं है.

बिहार को पिछड़ेपन से निकालने का वादा करने वाली भाजपा ठेका-मानदेय की नीति पर भी एक शब्द नहीं बोल रही. क्या ठेका-मानदेय की नीति को जारी रखते हुए बिहार में ठेका-मानेदय पर काम कर रहे लाखों लाख लोगों का कोई कल्याण हो सकता है. असल में इन नीतियों को बदलने का सवाल है. जबकि भाजपा खुले तौर पर काॅरपोरेटपरस्त नीतियों को बढ़ाने वाली पार्टी है.

छात्रों के लिए लॅपटाॅप, बालिकाओं के लिए स्कूटी आदि के लोकलुभावन नारे भी दरअसल गरीबों का वोट ठग लेने के लिए दिए जा रहे हैं. यदि सचमुच में उसे बिहार की शिक्षा की चिंता होती, तो वह मुचकंुद दूबे आयोग की सिफारिशों को संपूर्णता में लागू करने की बात कहती. इसके बजाए वह चंद चुनावी घोषणाएं कर रही है.

 महिलाओं की सुरक्षा का भी सवाल उनके एजेंडे में नहीं है. हत्यारों-अपराधियों पर लगाम लगाने, स्पीडी ट्रायल करके उन्हें सजा देने व इस तरह की घटनाओं के लिए संबंधित जिले के प्रशासन को जिम्मेवार बनाने और एक नई राजनीतिक संस्कृति विकसित करके ही महिलाओं को सम्मान व सुरक्षा दिया जा सकता है.

सर्वविदित है कि बिहार में गरीबों के जनसंहारियों को भाजपा ने संरक्षण दिया है. ऐसे में जनसंहारियों को उचित दंड व पीडि़तों को न्याय दिलाने की बात तो भाजपा कर भी नहीं सकती. भाजपा के बड़े नेता गरीबों के हत्यारों को बचाने वालों में रहे हैं.

उन्होंने कहा कि भाजपा के यह चुनावी जुमला बिहार की जनता समझ रही है. भाजपा गठबंधन हो या फिर जदयू-राजद का गठबंधन इनकी नीतियां एक जैसी हैं. इनके विकास माॅडल में न तो कोई रोजगार सृजन है और न ही गरीबों का कोई अधिकार है. इसके बरक्स माले व वामपंथ वैकल्पिक नीतियों के साथ चुनाव के मैदान में है. भूमि सुधार आयोग, मुचकुंद दूबे आयोग की सिफारिशों को संपूर्णता में लागू करने के प्रति वचनबद्ध है. ठेका-मानदेय की नीति को समाप्त करके स्थायी रोजगार हमारा एजेंडा है.

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