पटना, 31 अक्टूबर। बिहार विधान सभा का चल रहा चुनाव केवल राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय रडार पर भी आ गया है। अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेन्सी ‘मूडीज’ ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चेतावनी दी है कि वह अपने विवादास्पद बयान देने वाले नेताओं पर लगाम लगावें वरना वह अपनी अंतरराष्ट्रीय विष्वसनीयता ‘‘खो देंगे।’’ लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, उनके पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और उनकी पार्टी भाजपा के अन्य नेता इस चुनाव में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण पैदा करने के लिए ‘‘अंतरराष्ट्रीय विष्वसनीयता खो देने’’ का भी जोखिम उठाने से वाज नहीं आ रहे हैं।
इसका ताजा उदाहरण भाजपा की ओर से प्रसारित भड़काऊ विज्ञापन है जिसमें आरोप लगाया गया है कि बिहार में आतंकी रहते हैं। चुनाव आयोग तक ने इस विज्ञापन को चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन माना है और ऐसे विज्ञापन के प्रकाषन पर रोक लगायी है। देष में नरेन्द्र मोदी सरकार के आने के बाद से ‘‘असहिष्णुता’’ और ‘‘हिंसा के सहारे विरोधियों का मुँह बंद करने’’ का माहौल पैदा किया जा रहा है। भिन्न विचार रखने और उसको व्यक्त करने की आजादी खतरे में पड़ती नजर आ रही है। इस फासिस्ट प्रवृत्ति के खिलाफ पूरे देष में और विदेष में भी ‘‘बगावत’’ हो रही है। साहित्यकार, कालाकार, फिल्मकार, वैज्ञानिक और आम बुद्धिजीवी इसके विरोध में खड़े हो रहे हैं। लेकिन भाजपा की प्रतिक्रिया क्या है? मोदी सरकार के वित्तमंत्री अरूण जेटली ने कहा कि यह ‘‘बनावटी बगावत’’ है। खुद भाजपा ने कहा कि ये सब भाजपा-विरोधी और वामपंथी हैं। तो क्या अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट एजेन्सी मूडीज भी भाजपा-विरोधी और वामपंथी है? जाहिर है, भाजपा और उसकी केन्द्र सरकार इन फासिस्ट प्रवृत्तियों पर रोक लगाने को तैयार नहीं है।
इस हालतों में बिहार विधान सभा के लिए अगले दो चरणों का मतदान और भी महत्वपूर्ण हो गया है। भाजपा के सहयोगी संगठन जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमले कर रहे हैं और केन्द्र सरकार उनको रोक नहीं रही है। दूसरी ओर लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए प्रख्यात साहित्यकार, कलाकार, फिल्मकार, वैज्ञानिक और बुद्धिजीवी मैदान में उतर गये हैं। भाजपा और उसके गठबंधन को कड़ी षिकस्त देकर बिहार के मतदाता दिखा देंगे कि वे लोकतांत्रिक अधिकारों के रक्षकों के साथ है, इन अधिकारों को छीनने वालों के साथ नहीं।
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