जी हां, ऐसा इसलिए क्योंकि बिहार में एक बाद एक फिर से हत्या, लूट, डकैती की घटनाएं उफान पर है। ताजा मामला दरंभगा व सीतामढ़ी का है जहां रंगदारी न दिए जाने पर दो इंजीनियरों की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई। जबकि दो डाक्टरों के घर के सामने बम धमका कर 5 लाख की रंगदारी मांगी गयी है। रविवार को ही सासाराम में एक ही परिवार के तीन लोंगों की गोली मारकर हत्या कर दी गयी है। सप्ताहभर पहले दर्जनभर से अधिक लोगों की पहले ही हत्या की जा चुकी है। यानी 12 साल पूर्व लालूराज की धटनाओं का खूनी मंजर एक बार फिर पूरे बिहार को दहशत में ला दिया है
बेशक, बिहार में 12 साल बाद फिर से रंगदारी का पुराना रोग लौट आया है? सड़क निर्माण में लगे इंजीनियर ब्रजेश सिंह और मुकेश कुमार की दिनदहाड़े हुई हत्या कुछ ऐसा ही बयां कर रही है। हौसलाबुलंद बदमाशों का दुस्साहस इतना कि उन्होंने हत्या के बाद वहां छोड़े एक पर्चे पर लिखा है, “जहां जाओगे वहीं पाओगे, मुझसे बचकर बिहार में कहां जाओगे।” दरअसल मामला रंगदारी से जुड़ा हुआ है। सड़क निर्माण करने वाली प्राइवेट कंपनी ब एंड ब के प्रोजेक्ट इंजीनियर मुकेश कुमार सिंह और काम की मॉनिटरिंग कर रही रोडिक कंसल्टेंट कंपनी के फिल्ड इंजीनियर ब्रजेश कुमार सिंह बिहार के दरभंगा में राजमार्ग 88 के कंस्ट्क्शन के काम में लगे थे। पिछले कई दिनों से सीएंडसी कंपनी से 50 लाख रुपये की रंगदारी मांगी जा रही थी। खासबात यह है कि रंगदारी की मांग के बाद सुरक्षा के लिए 5 पुलिसवाले तैनात भी किए गए थे, लेकिन वारदात से ठीक पहले विशेष कारण बताकर पुलिस सुरक्षा हटा ली गयी।
यहां जिक्र करना जरुरी है कि कुछ इसी अंदाज में 12 साल पहले 2003 में स्वर्णिम चुतर्भुज सड़क के निर्माण में लगे इंजीनियर सत्येंद्र दुबे की रगंदारी नहीं देने पर हत्या कर दी गई थी। अब इसे जंगलराज की वापसी नही ंतो और क्या कहेंगे? दोनों इंजीनियरों की हत्या के पीछे कुख्यात अपराधी संतोष झा का हाथ बताया जा रहा है। मतलब साफ है नीतीश सरकार के शपथ ग्रहण के डेढ़ महीने के भीतर ही राज्य में कानून-व्यवस्था अपराधियों के आगे लाचार हो गई है। रविवार, 27 दिसंबर को सीतामढ़ी में डॉक्टर पीपी लोहिया के घर पर जमकर गोलाबारी हुई है। डॉक्टर से 5 लाख की रंगदारी मांग गई है। अब पूरा परिवार दहशत में है। रविवार 27 दिसम्बर को ही सासाराम में एक ही परिवार के तीन लोंगों की गोली मारकर हत्या कर दी गयी है। शनिवार, 26 दिसंबर को दरभंगा में दो इंजीनियरों की हत्या, 5 लाख की रंगदारी मांगी गई थी। वैशाली में दो समुदायों में लड़ाई हुई, इस दौरान एक पुलिस इंस्पेक्टर अजीत कुमार की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। दरभंगा में एएसपी विजय कुमार पासवान की चाकू मारकर हत्या की गई। 7 दिसंबर को शिवहर में बिजली कंपनी टेक्नोक्रेट प्राइवेट लि. के सुपरवाइजर उमाशंकर सिंह की हत्या मुकेश पाठक ने ही कर अपना मंसूबा जता दिया था कि अब बिहार में रंगदारी न देने वालों की खैर नहीं। पटना में 12 साल की दलित लड़की से डीएम ऑफिस के कैंपस में रेप हुआ। महिला पुलिस के साथ छेड़खानी हुई। ये सभी घटनाएं बीते दो महीने के भीतर की है, जब से नीतीश कुमार की सरकार बड़ी जीत के साथ वापसी की है।
सूबे की जनता हैरान है। वह सोच रही है कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के जंगलराज को खत्म कर सुशासन लाने का वादा करने वाले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को क्या हो गया है? जंगलराज खत्म करने की जगह वह खुद क्यों उस जंगलराज का हिस्सा बन गये? लालू-नीतीश की दोस्ती का असर जल्द ही कानून-व्यवस्था पर भी दिखने लगा। एक ओर राज्य में जहां तेजी से अपराध का ग्राफ बढ़ रहा है तो दूसरी ओर अपराधियों के हौसले बुलंद होने की वजह से पुलिस का मनोबल टूट रहा है। दोनों की दोस्ती होने के कुछ दिनों के भीतर ही स्वच्छ छवि वाले महानिदेशक अभयानंद को हटाकर राज्य सरकार ने एक तरह से जंगलराज की वापसी के संकेत भी दे दिये थे। पिछले कुछ माह के दौरान बढ़ी आपराधिक वारदातें इस बात की ओर इशारा कर रही हैं कि जंगलराज फिर वापस आ रहा है। देखा जाय तो इन दिनों बिहार के अखबारों में अपराध की खबरें भरी रहती हैं। अखबारों में हर रोज छपने वाली ये घटनाएं बता रही हैं कि यहां एक बार फिर अपराधी सिर उठा रहे हैं। बलात्कार, अपहरण, हत्या, डकैती, छीना-झपटी, लूट, चोरी और भ्रष्टाचार की खबरें हर तरफ से आ रही हैं। राज्य में बढ़ती आपराधिक वारदात सरकार के सुशासन के दावों की पोल खोलने के लिए काफी है। 2013 में जहां 3441 हत्याएं, 5506 लोगों के अपहरण, 1128 बलात्कार के मामले दर्ज हुए थे वहीं इस साल सिर्फ छह माह में ही (जून तक) 1765 हत्याएं हो चुकी हैं। इसके अलावा 3029 अपहरण व 593 बलात्कार के मामले दर्ज किये जा चुके है। पुलिस विभाग की वेबसाइट द्वारा जारी इन आकड़ों को देखने से साफ जाहिर होता है कि मई माह से अपराध के मामलों में तेज बढ़ोतरी हुई है। यह इस बात का सबूत है कि लोकसभा चुनाव में हारने के बाद लालू और नीतीश ने अपना वजूद बचाने के लिए जैसे ही हाथ मिलाया, अपराधियों के हौसले बुलंद हो गये।
इतना ही नहीं, अपराध को कुचलने की जगह अब नीतीश कुमार खुद अपराधियों से गठजोड़ करने लगे हैं। दागी छवि वाले नेता उनके भरोसेमंद साथी बन गये हैं। अनन्त सिंह, सुनील पांडेय, विजय कुमार शुक्ला, अजय सिंह, राजेश कुमार रोशन उर्फ बबलू, शाह आलम शब्बू व राजेश कुमार उर्फ चुन्नू ठाकुर कुछ ऐसे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेता नीतीश के पहले से ही साथ हैं। अब लालू प्रसाद यादव से दोस्ती के बाद जनता जंगलराज की वापसी की आशंका से भयभीत है। राजनीतिक-आपराधिक गठजोड़ को खत्म किये बगैर बिहार में कभी सुशासन स्थापित नहीं होगा। यह कड़वा सच सभी नेता जानते हैं लेकिन सत्ता के मोह में वे जनता के हितों को ताक पर रख अपराधियों को अपना रहनुमा समझने लगते हैं। यही कारण है कि बिहार की राजनीति में हमेशा से बाहुबलियों का बोलबाला रहा है। आंकड़ों के मुताबिक राज्य के 243 विधायकों में 141 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें सबसे अधिक सत्ताधारी दल जनता दल यूनाइटेड में हैं। इस वक्त जनता दल यूनाइटेड के 117 विधायकों में से 58 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से 43 पर हत्या, लूट और हत्या की कोशिश जैसे संगीन मामले दर्ज हैं। राज्य के ज्यादातर बड़े डॉन जदयू में शामिल हो चुके हैं। बीते कुछ समय में बबलू देव, शाह आलम शब्बू और चुन्नू ठाकुर जैसे कुख्यात अपराधियों ने जिस तरह नीतीश कुमार का दामन थामा है उसने सत्ताधारी जदयू का चेहरा और चरित्र पूरी तरह बदल दिया है। अब जदयू का नाम सुनते ही नीतीश के चेहरे के साथ वो सभी चेहरे उभारते हैं जो बीते तीन दशक में बिहार में आतंक के पर्याय रहे हैं। सवाल उठता है कि क्या ऐसे दल से किसी सकारात्मक बदलाव की उम्मीद की जा सकती है?
यह सच है कि नीतीश राज के पहले कार्यकाल में कानून का राज स्थापित हुआ था और व्यवस्था में सुधार हुआ। अपराधी पकड़े गये, लेकिन अब स्थितियां एक बार फिर बदल रही हैं। अपराध तेजी से बढ़ रहा है। आखिर इसकी वजह क्या है? अचानक ऐसा क्या हुआ कि अपराधी एक बार फिर पुलिस प्रशासन पर हावी होने लगे? और इसके लिए जिम्मेदार कौन है? पुलिस प्रशासन में भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। थानेदार तक के तबादले और तैनाती में लाखों रुपये की रिश्वत वसूली जा रही है। पैसे लेकर थाने नीलाम किये जाते हैं। जब थानेदार पैसे के बल पर थाना खरीदेगा तो उसका ध्येय कानून का राज कायम करना तो नहीं होगा। वह पैसे कमाने पर ज्यादा जोर देगा। इसकी वजह से अपराधी या तो पकड़े नहीं जाते और पकड़े जाते हैं तो पैसे के बल पर छूट जाते हैं। मतलब भ्रष्टतंत्र ने आम नागरिकों को रिश्वतखोर पुलिसवालों और अपराधियों के हवाले कर दिया है। लेकिन सवाल वही है क्या सूबे के कर्णधार बने नेता इस व्यवस्था में सुधार चाहते हैं? इसके लिए इच्छाशक्ति का होना जरूरी है। लेकिन नेताओं की कार्यशैली देखकर यह कहना मुश्किल है कि वे व्यवस्था में सुधार लाना चाहते है।
(सुरेश गांधी)


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