सुनंदा पुष्कर के केस ने नई करवट ले ली है.सूत्रों के मुताबिक अब यह माना जा रहा है कि सुनंदा की मौत स्वाभाविक नहीं अस्वाभाविक थी और पूरी सम्भावना है कि विष देकर उसकी इहलीला समाप्त कर दी गयी हो.आशा की जानी चाहिए कि सुनंदा की मौत से जुड़े सारे कहे-अनकहे तथ्य जल्दी ही सामने आयेंगे.
जनवरी १९६२ में जन्मी सुनंदा मूलत:कश्मीर के सोपोर जिले की रहने वाली थीं. वहीँ पली-बढ़ी और वहीँ की आबोहवा में उसका रंग-रूप निखरा. कश्मीर में बढ़ते आतंकवाद की वजह से १९९० में कश्मीर से विस्थापित होकर उसका पूरा परिवार जम्मू आकर बस गया था. सुनंदा के पिता श्री पी०एन० दास सेना में अफसर रह चुके हैं.१९८६-१९८८ में श्रीनगर के गवर्नमेंट वीमेंस कॉलेज से स्नातक की डिग्री लेने वाली सुनंदा पुष्कर का पहला विवाह दिल्ली में काम करने वाले एक युवक संजय रैना से हुआ था लेकिन एक साल बाद ही यह शादी टूट गई थी. बाद में सुनंदा ने सुजित मेनन से शादी की. केरल के इस व्यवसायी का कारोबार दुबई में था, लिहाजा सुनंदा भी दुबई जा पहुंची. एक दुर्घटना में सुजित मेनन का निधन हो गया.बाद में सुनंदा ने दुबई में जीविकोपार्जन के लिए कई तरह की छोटी-बड़ी नौकरियां कीं. दुबई में ही सुनंदा ने अपने पिता पुष्करनाथ दास से “पुष्कर” शब्द लेकर अपना नाम सुनंदा पुष्कर रखा था. सुजित से सुनंदा का लगभग एक २२-२३ साल का बेटा भी है.कहते हैं, थरूर की मुलाकात सुनंदा से दुबई की एक हाई प्रोफाइल पार्टी में हुयी थी.२२ अगस्त २०१० को हुयी शशि थरूर के साथ उसकी यह तीसरी शादी थी.इधर, शशि थरूर की भी यह तीसरी शादी थी.
माना जा रहा है कि सुनंदा अगरचे एक निहायत ही भावुक,सेवाभावी और संवेदनशील किस्म की महिला थी, उतनी ही बुलंद हौसले और जीवट वाली महिला भी थी.मेरे एक मित्र ने सुनंदा के इस ‘बुलंद हौसले”वाले पक्ष पर मुझे एक घटना बहुत पहले मेल की थी जिसे मैं साझा कर रहा हूँ: “सुनंदा का एक वाकया मुझे याद है.तब वह कश्मीर में छानपुरा इलाके में रहती थी और वीमेन्स कॉलेज, श्रीनगर में पढ़ती थी .एक दिन रोज़मर्रा की तरह मैं अपने कार्यालय अपनी बाइक पर जा रहा था और मुझे ‘नुमाईश चौक’ पर भीड़-सी दिखाई दी. भीड़ में मैंने एक परिचित लड़की को भी देखा. बाइक रोक कर मैं ने उस लड़की से कारण पूछा तो पता चला कि छानपुरा में मिनी-बस/ मेटाडोर में कई लडकियां सवार हुयीं थीं जिसमें सुनंदा भी बैठी थी.रास्ते में किसी मनचले ने मेटाडोर में बैठी किसी लड़की के साथ छेड़खानी करी थी जिसपर सुनंदा ने उस लड़के को मिनी बस से उतार कर उसकी धुनाई की थी! शिबनजी, मैं आपसे सहमत हूँ कि वह एक निर्भय व बहादुर औरत थी. आत्महत्या करने की बात उसके खून में नहीं हो सकती थी, आखिर वह एक बहादुर सैनिक की बेटी भी तो थी !”
कश्मीरी होने के नाते सुनंदा को कश्मीर में हो रहे राजनीतिक और सामाजिक भेदभाव की चिंता हमेशा सताती रहती थी. कश्मीर मुद्दे ख़ास तौर पर धारा ३७० पर उसने तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का विरोध किया था।एक टेलिविज़न चैनल को दिए इंटरव्यू में उसने कहा था, "संविधान के अनुच्छेद 370 पर फिर से विचार करने की ज़रूरत है क्योंकि इस धारा से महिलाओं के खिलाफ़ भेदभाव होता है.” तब सुनंदा का यह बयान विवाद का मुद्दा बना था और बाद में थरूर को सुनंदा की तरफ से इस बयान के लिए अपनी पार्टी से माफ़ी मंगनी पड़ी थी. सुनंदा कश्मीर की बेटी थी इसलिए वहां के दुःख-दर्द से वह बखूबी वाकिफ थी.कहते हैं कि जब वह दुबई में थी तो उसने ऐसे कई विस्थापित कश्मीरी नवयुवकों की वहां पर हर तरीके से मदद की जो उसके पास नौकरी पाने या अन्य तरह की सहायता मांगने के लिए जाते थे.
सुनंदा और शशि थरूर दोनों की यह तीसरी शादी थी.दोनों की पहले से संताने थीं, पढ़े-लिखे दोनों थे और दोनों ने सोच-समझकर प्रणय-सूत्र में बंधना स्वीकार किया होगा. दरअसल, इस में कोई शक नहीं कि ढलती आयु के पडाव पर इस तरह के वैवाहिक रिश्तों को बनाने में प्रायः ‘रूप-यौवन’ अथवा “शारीरिक आकर्षण” की प्रधानता अधिक रहती है और पति-पत्नी के पवित्र रिश्ते की परम्परागत शुचिता गौण हो जाती है. तीसरी शादी तक आते-आते रूप-यौवन की खुमारी का सोता जब सूखने लग जाता है तो फिर ज़मीनी हकाकीकते नमूदार होने लगती हैं.पुरुष की दृष्टि से बात करें तो जो पुरुष पहली स्त्री के रहते दूसरी के रूप-लावण्य पर मुग्ध हो सकता है,कालान्तर में वह दूसरी के रहते तीसरी पर भी आसक्त हो सकता है और इस तरह तीसरी के रहते हुए चौथी पर भी आसक्त न हो, इसकी क्या गारंटी? नारी की दृष्टि से बात करें तो ऐसी स्थितियों में नारी की अपनी मजबूरियों रहती हैं. खास तौर पर ऐसी नारी की जो विस्थापित हो चुकी हो,जिसने अपने दो-दो पति गवां दिए हों और सहारा पाने के लिए जद्दोजहद कर रही हो.पुरुष की तरफ से बढ़ाया गया प्रेम से भरा ‘निश्छल’ सहारे का हाथ उसको रोमांचित ही नहीं करता बल्कि अपने जीवन से जुड़े किसी बड़े निर्णय को लेने के लिए उत्प्रेरित भी करता है.सुनंदा की पूरी कहानी उसके “रूप-लावण्य” की कहानी कम,उसकी मजबूरियों की कहानी अधिक लगती है.
शिबन कृष्ण रैणा
अलवर

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