महँगाई बढ़ने की आशंका और वित्तीय घाटा प्रमुख चुनौती : आईएमएफ - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

महँगाई बढ़ने की आशंका और वित्तीय घाटा प्रमुख चुनौती : आईएमएफ

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वाशिंगटन 25 फरवरी, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का कहना है कि भविष्य में महँगाई बढ़ने की आशंका तथा बड़ा वित्तीय घाटा भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रमुख चुनौतियाँ हैं। जी20 देशों के वित्त मंत्रियों तथा केंद्रीय बैंक प्रमुखों की 26-27 फरवरी को चीन के शंघाई में होने वाली बैठक से पहले जारी स्टाफ नोट में आईएमएफ ने यह बात कही है। नोट में कहा गया है कि वित्तीय अस्थिरता तथा विशेषकर विकसित देशों में परिसंपत्तियों की गिरती कीमतों के कारण वैश्विक अार्थिक सुधार कमजोर पड़ा है। उसने कहा है आने वाले समय में वैश्विक अर्थव्यवस्था मजबूत होने की बजाय और कमजोर पड़ सकती है। भारत के बारे कहा गया है, “हालाँकि, बाहरी प्रभावों के प्रति अर्थव्यवस्था पहले की तुलना में ज्यादा सुरक्षित है और मुद्रास्फीति में उम्मीद से तेज गिरावट आई है, आम लोगों की महँगाई अपेक्षा का लगातार ऊँचा बना रहना और बड़ा वित्तीय घाटा अर्थव्यवस्था की प्रमुख चुनौतियाँ हैं। मुद्रास्फीति और महँगाई अपेक्षा में टिकाऊ गिरावट के लिए मौद्रिक नीति पर कड़ा रुख जारी रखना जरूरी है।” 

आईएमएफ का कहना है कि सरकार को वित्तीय घाटा कम करने का प्रयास जारी रखना चाहिये। उसने कर सुधार तथा सब्सिडी में और कटौती की भी वकालत की है। उसका कहना है कि बैंकों की बढ़ती गैर-निष्पादित परिसंपत्ति पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह वित्तीय स्थिरता के लिए खतरा हो सकता है। अाईएमएफ ने कहा है कि भारत काे आपूर्ति की राह में बाधाएँ दूर करने की दिशा में हाल किये गये सुधारों को और आगे ले जाना चाहिये; विशेषकर ऊर्जा, खनन एवं पावर क्षेत्रों में। साथ ही खाद्य भंडारण एवं वितरण के क्षेत्र में भी सुधार की जरूरत है। उसने श्रम बाजार में सुधार को भी प्राथमिकता दिये जाने का सुझाव दिया है। आईएमएफ ने जनवरी में भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास अनुमान 2016 और 2017 दोनों के लिए 7.5 फीसदी रखा था जो दुनिया की किसी भी बड़ी अर्थव्यवस्था से अधिक है। 

नोट के अनुसार वैश्विक स्तर पर आर्थिक सुधार के लिए जी20 को अपनी मौजूदा विकास रणनीतियों और योजनाओं को तत्काल लागू करना चाहिये ताकि माँग बढ़े। माँग बढ़ाने के लिए सार्वजनिक निवेश बढ़ाने तथा ढाँचागत सुधारों की आवश्यकता है। आईएमएफ का कहना है कि जिन विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति केंद्रीय बैंक के लक्ष्य से काफी कम है वहाँ मौद्रिक नीति को समावेशी रखना जरूरी है। 

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