जिस तरह से उत्तराखंड से गुलदारों का सफाया किया जा रहा है वह दिन दूर नहीं जब ये गुलदार केवल चित्रों व चिड़ियाघरों में ही देखने हो मिलेंगे वह भी जीवंत नहीं मरे हुए गुलदारों के चित्र Ι राज्य में गुलदारों की बेतहाशा मौत कहीं कोई समझी साजिश का हिस्सा तो नहीं क्योंकि एक व्यक्ति की जिंदगी को हम लोग महत्वपूर्ण तो मानते हैं लेकिन सफाया किये जा रहे गुलदारों के प्रति लोगों का नजरिया कहीं से भी मानवतावादी नहीं लगता Ι अन्यथा उन्हें भी बचाए जाने की मुहिम शुरू हो जाती Ι
गुलदार को इस तरह मारे जाने के पीछे के कारणों पर यदि विचार किया जाय तो यह कहीं न कहीं गुलदारों के प्रति सरकार व शिकारियों सहित माफियाओं का षड्यंत्र ही नज़र आता है Ι इसका एक बहुत बड़ा कारण यह भी है कि गुलदार सहित जंगलों में पाए जाने वाले तमाम जीव –जंतु कहीं न कहीं पारिस्थितिकीय संतुलन का हिस्सा हैं और ये सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं Ι वहीँ जंगलों में शिकारियों व वन्य जीव माफियाओं ने कहीं न कहीं इस नैसर्गिक पर्यावरणीय पारिस्थितिकीय संतुलन को बिगाड़ने का ही अब तक काम किया है Ι इसमें वन्य जीवों की रक्षा करने का दायित्व जिस विभाग का था उसका भी बड़ा हाथ बताया जाता रहा है Ι गुलदार के ताबड़तोड़ तरीके से किये जा रहे शिकार को लेकर यह बात भी प्रकाश में आयी है कि जंगल माफियाओं सहित लकड़ी माफिया,जड़ी-बूटी माफिया व उच्च पर्वतीय इलाकों से यारसागम्बू (कीड़ाजड़ी) सहित वन्यजीव तस्कर व अनेक प्रकार की दुर्लभ बूटियों के माफियाओं का भी गुलदारों के सफाए में बहुत बड़ा हाथ है Ι क्योंकि गुलदारों के जंगलों में रहते हुए ये माफिया व तस्कर जंगल में गुलदारों के डर से खुले आम नहीं घूम सकते और ये गुलदार कहीं न कहीं इन जंगलों में पायी जाने वाले वन्य उत्पादों के रक्षक के रूप में इन भक्षकों के राह में रोड़ा बनकर खड़े हुए हैं लिहाज़ा इन्होने एक सोची –समझी रणनीति के तहत इन गुलदारों का सफाया किया Ι
कहने को तो उत्तराखंड में एक बहस छिड़ी हुई है कि पलायन के लिए कुछ हद तक ये गुलदार भी शामिल हैं लेकिन राज्य के अतीत में यदि झाँका जाय तो वर्ष 1926 में जिस गुलदार को विश्व प्रसिद्द शिकारी जिम कॉर्बेट ने मौत के घाट उतरा था वह रुद्रप्रयाग का आदमखोर तो 125 लोगों को अपना निवाला बना चुका था लेकिन तत्कालीन समय में राज्य से कोई पलायन नहीं हुआ यदि ऐसा हुआ होता तो आज तक राज्य का पर्वतीय इलाका खाली हो चुका होता Ι
वहीँ दूसरी तरफ यदि आकड़ों पर गौर किया जाय तो वर्ष 2003 से लेकर 2012 तक गुलदारों के हमले में 200 लोग या तो मारे गए या घायल हुए हैं Ι लेकिन गुलदारों की मौत के आंकड़े देखे जायं तो अब तक 356 गुलदार मौत के मुंह में समा चुके हैं और जो 114 बाघ मारे गए वे अलग हैं Ι इसमे वह रिकॉर्ड शामिल नहीं है जो अवैध रूप से मारे गए हैं Ι
गौरतलब हो कि उत्तराखंड की सीमाएं तीन ओर से अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से लगी हुई है और चीन व तिब्बत में गुलदारों व बाघ की खाल व हड्डियों की खासी डिमांड है जो यहाँ से नेपाल के रास्ते तस्करी होकर पहुंचाई जाती है जिसमें ऐसे वन्य तस्करों व बिचौलियों को लाखों का नहीं बल्कि करोड़ों का मुनाफा होता रहा है यही कारण है कि उत्तराखंड ऐसे माफियाओं के लिए सुरक्षित ठिकाने व कमाई के लिए बेहतरीन राज्य बन गया है जहाँ से ये माफिया अपना व्यापार बढ़ा रहे हैं और इनके इस व्यापर में वन्य जीव विभाग से लेकर गुलदारों को मौत के घाट उतारने वाले तक शामिल हैं Ι
राजेन्द्र जोशी
उत्तराखंड
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