जी हां, सत्ता पक्ष की तमाम हनक व हथकंडों के बावजूद जरायम की दुनिया का बेताज बादशाह डाॅन बृजेश सिंह जेल के सलाखों में रहते हुए अब राजनेता बन गया है। यह तगमा इसके पहले घूर प्रतिद्वंदी रहे मुख्तार अंसारी को मिल चुका है। श्री अंसारी अपने क्षेत्र से कई बार विधायक बन चुके है। कहा जा सकता है मुख्तार की तर्ज पर अब बृजेश सिंह को कहीं न कहीं राजनीतिक संरक्षण हासिल है। एमएलसी चुनाव में इस सीट पर भाजपा द्वारा प्रत्याशी न उतारा जाना एक वजह है। जीत के बाद जनता के प्रति आभार व्यक्त करते हुए डाॅन ने ऐलान किया है वह निर्दोशों का उत्पीड़न किसी भी दशा में हजम नहीं करेंगे। वह जनता की समस्याएं चाहे वह किसी भी स्तर की होंगी, प्रमुखता से निपटाना उनकी प्राथमिेता है। चाहते हैं। मतलब साफ है वह वाराणसी, भदोही और चंदौली के नागरिकों की आवाज बनना चाहते है और यही से तय होगा उनकी राजनीतिक सफर
डाॅन बृजेश सिंह ने जरायम की दुनिया में कदम सिर्फ अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए रखा। लेकिन बाद में वह धीरे-धीरे दुश्मनी से रंगदारी के रास्ते कोयला, रेशम, रेलवे आदि का ठेकेदारी के चलते वर्चस्व की लड़ाई में तब्दील हो गयी। इसके बाद 32 साल के जरायम के सफर में न सिर्फ 27 से ज्यादा मुकदमे यूपी के पूर्वाचल सहित गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और बंगाल तक बृजेश के खिलाफ दर्ज हुए, बल्कि पूरे भारत में इस कदर नेटवर्क फैला कि अंडरवल्र्ड डाॅन दाउद तक को मात देने के बाद एक पुलिसिया षडयंत्र के तहत आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद से ही कयास लगने लगे थे कि बृजेश का अब सियासी सफर शुरु होगा। इसकी उत्सुकता सामाजिक सरोकारों से जुड़े लोगों के साथ ही विभिन्न राजनीतिक दलों में भी थी। उनके लिए चंदौली, वाराणसी, भदोही, मीरजापुर को मुफीद माना जा रहा था, लेकिन वर्ष 2012 में चंदौली की सैयदराजा विधानसभा सीट पर मिली हार ने बृजेश को बड़ा झटका दिया। हार के पीछे पारिवारिक उलझन की दलील दी जाती रही। बाद में पत्नी एमएलसी बनी तो दलीलें धरातल पर आ गईं। हालांकि, परिवार का राजनीति से जुड़ाव पहले से था। बड़े भाई उदयनाथ सिंह उर्फ चुलबुल सिंह दो बार विधान परिषद सदस्य रहे। पत्नी अन्नपूर्णा सिंह वाराणसी से ही एमएलसी थीं। इस बार उन्हीं की जगह बृजेश सिंह ने ली है।
1 जनवरी 2008 में दिल्ली पुलिस ने जब भुवनेश्वर (उड़ीसा) में बृजेश को गिरफ्तार किया था, उस वक्त यूपी की पुलिस ने बृजेश पर पांच लाख रुपये का इनाम घोषित कर रखा था। गिरफ्तारी के तीन साल पहले से बृजेश भुवनेश्वर में रह रहा था तथा उसने वहां (विंध्याचल रीयल इस्टेट डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड) नाम से एक कंपनी चला रखी थी। जरायम की दुनिया में इस बात की जोरदार चर्चा रही कि दिल्ली पुलिस का ‘आपरेशन बृजेश’ अत्यंत नाटकीय था। गिरफ्तारी के समय बृजेश पर दर्जन भर से अधिक मामले दर्ज थे लेकिन मामलों का निस्तारण होता गया और राजनीतिक गलियारों के फाटक खुलते गए। बता दें, बृजेश सिंह उर्फ अरुण कुमार सिंह का जन्म वाराणसी में हुआ। उनके पिता रविंद्र सिंह इलाके के रसूखदार लोगों में गिने जाते थे। राजनीति में भी उनकी पैठ थी। बृजेश सिंह बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में काफी होनहार थे। 1984 में इंटर की परीक्षा में उन्होंने बहुत अच्छे अंक हासिल किए थे। इसके बाद उन्होंने यूपी कॉलेज से बीएससी की पढ़ाई की। वहां भी उनका नाम होनहार छात्रों की श्रेणी में आता था। लेकिन 27 अगस्त 1984 में पिता की हत्या के बाद बृजेश सिंह ने बदला लेने की नियत से अपराध की दुनिया में कदम रखा, तो फिर पलटकर पीछे नहीं देखा। इस हत्याकांड को अंजाम बृजेश के विरोधी हरिहर सिंह और पांचू सिंह ने अपने साथियों के साथ मिलकर दिया था। सालभर में ही 27 मई 1985 को रविंद्र सिंह का हत्यारा बृजेश के हाथ लग गया और दिनदहाड़े अपने पिता के हत्यारे हरिहर सिंह को मौत के घाट उतार दिया। यह पहला मौका था जब बृजेश के खिलाफ पुलिस थाने में मामला दर्ज हुआ।
इस वारदात के बाद फरार रहते हुए पिता के अन्य हत्यारोपियों की तलाश शुरू कर दी। 9 अप्रैल 1986 के दिन उन्होंने पिता की हत्या में शामिल रहे रघुनाथ यादव, लुल्लुर सिंह, पांचू और राजेश आदि को एक साथ गोलियों से भून डाला। इस घटना को अंजान देने के बाद बृजेश पहली बार गिरफ्तार हुए। पुलिस ने बृजेश को जेल भेज दिया। इसी दौरान उनकी मुलाकात गाजीपुर के मुडियार गांव में त्रिभुवन सिंह से हुई। बृजेश और त्रिभुवन के बीच दोस्ती हो गई और दोनों मिलकर साथ काम करने लगे। धीरे-धीरे इनका गैंग पूर्वांचल में सक्रीय होने लगा। बलुआ, कैंट, धानापुर, सकलडीहा, चेतगंज, सैदपुर, भांवरकोल, अहमदाबाद, महाराष्ट्र ही नहीं पश्चिम बंगाल तक बृजेश के खिलाफ मुकदमे दर्ज होते गए। 12 सितंबर-1992 में मुंबई के जेजे अस्पताल में दाऊद इब्राहीम के विरोधी शैलेष हलदनकर और मुंबई पुलिस के तीन जवानों की हत्या के 30 आरोपितों में बृजेश का भी नाम आया। जुलाई-2001 में गाजीपुर के उसरीचट्टी में मुख्तार गिरोह से सीधी मुठभेड़ के बाद 2004 की सर्दियों में लखनऊ के कैंट में दोनों गिरोहों का आमना-सामना हुआ। उसरीचट्टी के बाद बृजेश को गोली लगने और मौत की चर्चाएं आम हो चुकी थीं। बावजूद इसके दोनों मिलकर यूपी में शराब, रेशम और कोयले के धंधे में उतर आए। असली खेल तब शुरू हुआ जब बृजेश सिंह और माफिया डॉन मुख्तार अंसारी कोयले की ठेकेदारी को लेकर आमने-सामने आ गए। ठेकेदारी और कोयले के कारोबार को लेकर दोनों गैंग के बीच कई बार गोलीबारी हुई। दोनों तरफ से जानमाल का नुकसान भी हुआ।
90 के दशक में बृजेश सिंह का यूपी के बाहुबली मुख्तार अंसारी के गैंग से आमना-सामना हुआ। इस दौरान वह पुलिस और मुख्तार के गैंग से बचने के लिए मुंबई चले गए। यहां पहुंचने के बाद दाऊद के करीबी सुभाष ठाकुर से मुलाकात की। फिर इनके माध्यम से दाऊद से मिले। दाऊद के जीजा इब्राहिम कासकर की हत्या का बदला लेने के लिए ब्रृजेश ने 12 फरवरी 1992 को जेजे अस्पताल पहुंचे। यहां डॉक्टर बनकर गवली के गैंग के 4 लोगों को पुलिस के पहरे के बीच मार दिया। उनकी इस शातिराना चाल देखकर दाऊद बृजेश के दिमाग का लोहा मान गया। इसके बाद दोनों बेहद करीब आ गए। इस प्रकार घरेलू हत्याओं से अपराध की दुनिया में आने वाले वाले बृजेश सिंह की दाऊद से दोस्ती हो गई। हालांकि, 1993 में हुए मुंबई ब्लास्ट के बाद दोनों में मतभेद हो गया। पहले दोनों का उद्देश्य गैरकानूनी काम करके पैसा कमाना और अपराध की दुनिया में एकछत्र राज्य कायम करना था। जानकारों की मानें तो बृजेश सिंह मुंबई को दहलाने की दाऊद की योजना से पूरी तरह अनजान थे। इस ब्लास्ट में हजारों बेगुनाह मारे गए या घायल हुए। इस वारदात से बृजेश सिंह को गहरा आघात लगा। दाऊद के इस कदम के बाद दोनों के बीच एक दीवार खड़ी हो गई। माना जाता है कि इसके बाद दोनों एक-दूसरे के जानी दुश्मन बन गए। हालांकि, मुंबई ब्लास्ट के पहले ही दाऊद ने देश छोड़ दिया।
24 जनवरी-2008 को भुवनेश्वर (उड़ीसा) से दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के हाथों गिरफ्तार किया गया। कहा जा रहा था कि यह सब गृहमंत्री राजनाथ सिंह के एक नाटकीय षडयंत्र के तहत हुआ। फिरहाल, पुराने मामलों की बंद फाइलें खुलने लगीं व फरवरी-2008 में उसे वाराणसी तलब कर सेंट्रल जेल में रखा गया। सालभर बाद मुंबई में जेजे शूटआउट की सुनवाई में तीन साल का समय महाराष्ट्र और गुजरात की जेलों में कटा। 2012 में वाराणसी सेंट्रल जेल लौटे बृजेश के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने मकोका की कार्रवाई की और रिमांड पर तिहाड़ जेल ले गई। सालभर बाद लौटे बृजेश के खिलाफ फिलहाल वाराणसी जिला जज की अदालत में सिकरौरा नरसंहार कांड और गाजीपुर में उसरीचट्टी शूटआउट की सुनवाई चल रही है।
बृजेश के खिलाफ कुल आठ मामले लंबित
1. थाना चैबेपुर - गैंगस्टर एक्ट।
2. थाना बलुआ (वर्तमान में चंदौली) - हत्या, हत्या का प्रयास, बलवा, साजिश व 25 शस्त्र अधिनियम।
3. थाना भरवकोल (गाजीपुर) - बलवा, हत्या व हत्या का प्रयास।
4. थाना मोहम्मदाबाद (गाजीपुर) - बलवा, हत्या व हत्या का प्रयास, 7 क्रिमिनल ला अमेंडमेंट एक्ट।
5. थाना सैदपुर (गाजीपुर) - धारा 147, 148,149, 379, 427।
6. थाना कैंट (लखनऊ) - धारा 147, 148,149, 307, 427।
7. थाना स्पेशल सेल (नई दिल्ली) - धारा 384, 387, 506, 419, 467, 120बी।
8. थाना चैबेपुर (वाराणसी) - हत्या
1. मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी भोजपुर, आरा, बिहार - धारा 302, 307, 324, 120बी, 3-4-5 विस्फोटक अधिनियम। ं
2. विशेष न्यायाधीश मकोका-अपर सत्र न्यायाधीश पटियाला हाउस- धारा 3-4 मकोका।
3. लक्ष्मीनगर (भुवनेश्वर) - धारा 419, 420, 467, 471।
(सुरेश गांधी )

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