नयी दिल्ली 24 अप्रैल(वार्ता) मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर ने न्यायालयों में लंबित मामलों में हो रही बढ़ोतरी पर गहरी चिंता व्यक्त करने के साथ ही आबादी के अनुरूप न्यायाधीशों की संख्या में बढ़ोतरी करने में कार्यपालिका की निष्क्रियता पर कड़ी आपत्ति जतायी है। न्यायमूर्ति ठाकुर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में मुख्यमंत्रियों एवं उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीशों के सम्मेलन को संबोधित करते हुये आज उस भावुक हो गये और उनका गला रूंध गया, जब उन्होंने कहा कि आप पूरी जिम्मेदारी न्यायपालिका पर नहीं डाल सकते हैं। उन्होंने कहा कि न:न सिर्फ अपराध या आम लोगों के मामले अदालतों तक पहुंच रहे हैं बल्कि विकास से जुड़े मामले भी अदालतों में आ रहे हैं। ऐसी स्थिति में आलोचना करना उचित नहीं होगा। उन्होंने कहा कि वर्ष 1987 में विधि आयोग ने प्रति दस लाख आबादी पर न्यायाधीशों की संख्या दस से बढ़ाकर 50 करने की सिफारिश की थी लेकिन अब तक इस दिशा में कुछ भी नहीं हुआ है।
सरकार की निष्क्रियता की वजह से न्यायाधीशों की संख्या नहीं बढ़ी है। उन्होंने कहा कि विधि आयोग की सिफारिश के साथ ही उच्चतम न्यायालय ने भी वर्ष 2002 में न्यायधीशों की संख्या बढाने का समर्थन किया था। उस समय प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता वाली कानून विभाग से संबंधित संसदीय समिति ने भी प्रति दस लाख आबादी पर न्यायधीशों की संख्या को 10 से बढाकर 50 करने की सिफारिश की थी। न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा कि अभी प्रति दस लाख आबादी पर न्यायाधीशों की संख्या 15 है, जो अमेरिका, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों की तुलना में बहुत कम है। उन्होंने कहा कि वर्ष 1987 में 40 हजार न्यायाधीशों की जरूरत थी और जब से अब तक देश की आबादी में 25 करोड़ की बढ़ोतरी हो चुकी है। मुख्य न्यायाधीश ने सरकार के मेक इन इंडिया और सरल कारोबारी माहौल के लिए जा रहे उपायों का उल्लेख करते हुये कहा कि भारत दुनिया का सबसे तेज गति से बढ़ने वाला अर्थव्यवस्था बन चुका है। हम प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आमंत्रित कर रहे है। हम चाहते हैं कि लोग यहां आकर मेक इन इंडिया करें और भारत में निवेश करें। हम जिन्हें आमंत्रित कर रहे हैं वे भी देश की न्याय प्रणाली पर बढ़ रहे बोझ से चिंतित है। सक्षम न्याय प्रणाली विकास के लिए जरूरी है।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें