केन्द्र को बड़ा झटका, उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन हटा, 29 अप्रैल को शक्तिपरीक्षण - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

केन्द्र को बड़ा झटका, उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन हटा, 29 अप्रैल को शक्तिपरीक्षण

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देहरादून 21 अप्रैल, नैनीताल उच्च न्यायालय ने आज एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन हटाने तथा श्री हरीश रावत को 29 अप्रैल को विधानसभा में विश्वासमत प्रस्ताव लाने के निर्देश दिये हैं। उच्च न्यायालय का यह फैसला केंद्र सरकार के लिए बड़ा झटका है जिसने राज्य में संवैधानिक संकट पैदा होने को हवाला देते हुए 27 मार्च को वहां राष्ट्रपति शासन लगाया था। न्यायालय ने यह फैसला निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत की उन याचिकाओं पर दिया जिनमें राज्य में राष्ट्रपति शासन तथा केन्द्र सरकार द्वारा जारी किये गये विनियोग अध्यादेश को चुनौती दी गयी थी। न्यायालय ने अपने फैसले में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाये जाने को अनुचित करार दिया और उसे हटाने का निर्देश देते हुए श्री रावत को 29 अप्रैल को विधानसभा में विश्वासमत लाने को कहा। उच्च न्यायलय के फैसले को केन्द्र सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय में चुनौती दिये जाने की संभावना है और इसे देखते हुए कांग्रेस ने सर्वोच्च न्यायालय में आज एक केविएट दायर कर दी। कांग्रेस समेत विभिन्न गैर भाजपा दलों ने उच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है और कहा है कि यह मोदी सरकार की गैर-भाजपा सरकारों को गिराने की कोशिशों पर करारा तमाचा है। दूसरी ओर भाजपा ने कहा कि हरीश रावत सरकार 27 मार्च से पहले ही अल्पमत में थी, अब भी अल्पमत में है और पार्टी 29 अप्रैल को भी यह साबित कर देगी कि वह सरकार अल्पमत में ही है। 

श्री हरीश रावत ने न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए लोकतंत्रिक, धर्मनिरपेक्ष तथा विकास की पक्षधर ताकतों की जीत बताया और कहा कि वह न्यायलय के निर्देश के अनुरूप 29 अप्रैल को अपना बहुमत सिद्ध कर देंगे। इन याचिकाओं की सुनवाई के दौरान पिछले तीन दिन में मुख्य न्यायाधीश एम. जोसफ तथा न्यायमूर्ति बी. के. बिष्ट की खंडपीठ ने कई बार तल्ख टिप्पणियां की। न्यायालय ने कहा था कि भ्रष्टाचार के कारण यदि किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाने लगेगा तो देश में किसी भी सरकार का बचना मुश्किल होगा। न्यायालय में यह टिप्पणी भी की थी कि राष्ट्रपति का निर्णय किसी राजा का निर्णय नहीं है जिसकी समीक्षा न की जा सके। उसका कहना था कि राष्ट्रपति तथा न्यायाधीश भी गलती कर सकते हैं और उनके फैसलों की समीक्षा की जा सकती है। उत्तराखंड में राजनीतिक संकट 18 मार्च को विधानसभा में विनियोग विधेयक पारित किये जाने के दौरान पैदा हुआ था। विनियोग विधेयक मतदान के लिए रखे जाने पर भाजपा के विधायकों ने इस पर मत विभाजन की मांग की थी जिसका कांग्रेस के नौ विधायकों ने भी समर्थन किया था। लेकिन विधान सभा अध्यक्ष ने हंगामे के बीच विधेयक को पारित घोषित कर दिया था। इसके तुरंत बाद भाजपा के 27 तथा कांग्रेस के नौ विधायकों ने राज्यपाल से मिलकर अपना पक्ष रखा था। उन्होेंने कहा था कि हरीश रावत सरकार अल्पमत में आ गयी है और उसे बर्खास्त कर दिया जाना चाहिये। बाद में भाजपा के विधायक दिल्ली आकर राष्ट्रपति से भी मिले थे और उनके समक्ष अपना पक्ष रखा था। 

इस बीच राज्यपाल ने श्री रावत को 28 मार्च को विधानसभा में बहुमत साबित करने का निर्देश दिया था। लेकिन इससे पहले ही केन्द्र सरकार ने वहां राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से सिफारिश की थी और 27 मार्च को वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। इसी दिन विधानसभा अध्यक्ष ने कांग्रेस के नौ बागी विधायकों को उनकी पार्टी की शिकायत पर सदन की सदस्यता के अयोग्य घोषित कर दिया था। इन बागी विधायकों ने भी उच्च न्यायालय में अध्यक्ष के फैसले को चुनौती देते हुए याचिका दायर की हुयी है जिस पर आगे की सुनवाई 23 अप्रैल को होगी। श्री रावत ने राष्ट्रपति शासन लगाये जाने को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। उनकी याचिका पर न्यायालय की एकल पीठ ने उन्हें 31 मार्च को विधानसभा में बहुमत साबित करने को कहा था। एकल पीठ के इस फैसले को केन्द्र सरकार ने खंडपीठ में चुनौती दी थी। इस बीच केन्द्र ने राज्य में विनियोग विधेयक पारित नहीं होने का हवाला देते हुए नये वित्त वर्ष के लिए राज्य के खर्चे का इंतजाम करने के लिए विनियोग अध्यादेश जारी किया था। 

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