कहाँ गए मुख्यमंत्री बिहार के वादे
प्रद्योत कुमार,बेगूसराय। बिहार से झारखण्ड विभाजन के बाद बेगूसराय एक मात्र बिहार का औद्यागिक शहर है।यहाँ से काफी अपेक्षाएं हैं लेकिन ये शहर हमेशा से ही आपसी राजनितिक प्रतिद्वन्दिता के कारण उपेक्षित होने का दर्द झेलते रहा है जबकि ये शहर भौगोलिक,राजनितिक,सांस्कृतिक,बौद्धिक एवं यातायात के दृष्टिकोण से अपना एक अलग स्थान रखता है बिहार में। इसके औद्योगिक विकास के एवं अन्य विकास के लिये मुख्य रूप से ऊर्जा चाहिए लेकिन नहीं है जितना चाहिए,जबकि श्री नितीश कुमार,मुख्यमंत्री बिहार ने वर्ष 2010 में अपने चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि,"मैंने जो पांच वर्षों तक काम किया है उसी का मज़दूरी मांगने आया हूँ,इस बार मुझे सेवा करने का मौका दीजिये तो इन पांच वर्षो में मैं हर घर बिजली दूँगा ओर शहर को 20-22 घंटे बिजली मिलेगी"लेकिन हाँ इतना ज़रूर था कि चुनाव के समय लगभग 22-23 घंटे बिजली मिलती थी बेगूसराय शहर को,अब फिर वही रोना लगा हुआ है15 से 16 घंटे बिजली मिलती है।कहाँ गए मुख्यमंत्री बिहार सरकार के वादे जो उन्होंने चुनाव के समय किया था।सच ये है कि बिहार सरकार का बिजली विभाग एक ऐसा अनुशासनहीन विभाग है जहाँ कोई किसी की नहीं सुनता है।एक निदेशक,प्रोजेक्ट की बात कार्यपालक अभियंता प्रोजेक्ट नहीं सुनते हैं,कार्यपालक अभियन्ता की बात जे ई नहीं सुनते हैं क्यों?क्योंकि यहाँ सब मैनेज है।सब से एक दूसरे का तार मेनेजिगं सिस्टम से जुड़ा हुआ है,फिर कैसे कोई किसी को आदेश दे सकता है ये बड़ी बात है। ए टू जेड वाले बेगूसराय में बिजली विभाग का सारा पुराना तार बदलने का कार्य कर रहा है,सामन बदले जा रहे हैं फिर भी इंफ्रास्ट्रक्चर ठीक नहीं होने का रोना रोती है ये विभाग जबकि 40 मेगावाट बेगूसराय और 40 मेगावाट बरौनी को मिल रही है बिजली,फिर भी रोना है।आज से 4-5 महीने पहले इस ज़िला को 21-22 घंटे बिजली मिलती थी।एक हैरत की बात बता दूँ कि ए टू जेड वालों ने बगैर ज़रूरत का भी तार विभागिय मैनेज से तो खिंचा है साथ ही साथ काम का स्तर इतना कमज़ोर है कि पूरे ज़िला में मौत की नंगी तार खींच दी है।लोड भेरिफिकेशन भी यहाँ की मुख्य समस्या है जो कि मैनेजिंग सिस्टम से जुड़ा हुआ है और राजस्व का होश उड़ा हुआ है। ऐसी हालात में कैसे होगी बिजली पर निर्भर विकास,और अगर नहीं हो सकता तो क्या वो चुनावी स्टंट था जो वादे सी एम बिहार ने किए थे बिहार वासियों को भरपूर बिजली देने का???? किसी ने सही कहा है कि चुनावी जुमलेवाजी को जुमलेवाज कहते हैं और चुनावी स्टंट को स्टंटवाज कहते हैं,अब तय इस देश और राज्य की जनता को करना है कि आपका नेता जिसे आपने चुन कर भेजा है वो हक़ीक़त में जुमलेवाज है या स्टंटवाज है।
कड़ी धुप में भी डटे रहे मतदाता
प्रद्योत कुमार,बेगूसराय। आज पांचवां चरण का आम पंचायत चुनाव मतदान वीरपुर और चेरियाबरियारपुर प्रखंड में शान्तिपूर्ण तरीक़े से समाप्त हो गया,ज़िलप्रशासन की चौकसी एवं सजगता के कारण मतदाता इस कड़ी धुप में भी मतदान करने आये ये बड़ी बात है।इतनी बे शुमार गर्मी के बावजूद भी वीरपुर में कुल 60580 मतदाता का 63% एवं चेरियाबरियारपुर प्रखंड में कुल 90696 का 65% मतदाताओं ने मतदान किया,ये प्रशासन की अच्छी व्यवस्था के कारण ही सम्भव हो सका। ख़ुद जिलाधिकारी,मो० नौशाद युसूफ एवं आरक्षी अधीक्षक,बेगूसराय श्री रंजीत कुमार मिश्र ने मतदाताओं के बीच जाकर उनको निर्भीकता से मतदान के लिये प्रेरित किया एवं मतदाताओं के बीच उनकी उपस्थिति ही प्रेरणादायी साबित हुआ।
बिचौलियों के बीच फंसे किसान
अरूण कुमार मटिहानी बेगूसराय जब तक जातिवाद और निरक्षरता कायम है तब तक रोटी पकती रहेगी बिचौलियों की,जी हाँ ऐसी ही कुछ त्रासदी के शिकार होते आ रहे हैं गरीब किसान परिवार बरौनी प्रखण्ड के ग्राम पंचायत मल्हपुर बिशनपुर जो कि नगर परिषद बिहट और असुरारी मौजे मे कुछेक हिस्सा में पड़ता है। इस कारण वहाँ के किसान सरकारी अनुदानों से वंचित रह जाते हैं जब ग्रामीण किसी भी बात की जानकारी के लिए ब्लॉक जाते हैं तो ब्लॉक अधिकारी उन्हें नगर परिषद कार्यालय जाने को कहते हैं और नगर परिषद जाने पर ब्लॉक जाने के लिए कहा जाता है,अब बिचारे ये किसान जाएं तो जाएं कहाँ इनका मार्ग दर्शक शायद कोई नहीं है।अगर किसी भी तरह की कोई जानकारी मिल भी गई तो बिचौलियों के हाथ आने से कुछ हासिल होने से रहे इन सभी समस्याओं की जड़ हारे और जीते हुए मुखिया,सरपंच एवं वार्ड सदस्य की महानता का दुष्परिणाम ही तो है जो प्रत्याशी चुनाव जीत कर पदभार संभालते हैं उनसे हारे हुए प्रत्याशी अपना साँठ-गाँठ बिठाकर ब्लॉक और नगर परिषद के अधिकारियों से भी साँठ-गाँठ बिठाकर निरीह किसानों के हकों पर कुण्डली मारकर बैठ जाते हैं।नतीजा साफ़ ही है फिर तो जिसे किसी भी तरह के अनुदानों से वंचित रहना उनकी नियति ही है,यहाँ बिजली,पानी आदि की व्यवस्था तो नदारद ही माना जाता है बिजली 10-12 घंटे रहती तो है ही परन्तु उपभोक्ताओं को डीम रोशनी में रहने की आदत सी पड़ गई है और गैर उपभोक्ताओं के घर हीटर जल रहे होते हैं और तो और सही ढंग से बिजली का पोल और बिजली के तारों का ढीला रहना भी खतरनाक साबित हुआ है।कइयों बार आश्रितों को ज्ञानाभाव के कारण लाभ नहीं मिल पाता है,यहाँ बिजली पोल के रास्त से कम और बाँस को पोल के उपयोग में ज़्यादा लाते हैं जो मौत का जाल सी प्रतीत होता है।मल्हीपुर बिसनपुर निवासी श्रीमती आभा सिंह ने यह भी जानकारी दी कि ग्रामीण सड़क योजना का भी बद्दत्तर हाल है।इन्दिरा आवास योजनाओं का लाभ भी जिन्हें मिलना चाहिए वे तो टकटकी लगाए रहते हैं और लाभ मिलता उन्हें है जो किसी भी मायने मे उक्त लाभ के हकदार ही नहीं हैं और इस तरफ़ किसी भी अधिकारी का कोई ध्यान नहीं है कारण मिलीभगतहै। अब गौर तलब है कि एक ही परिवार के तीन तीन सदस्यों ने अलग अलग ठीकानो पर तीन तीन इन्दिरा आवास योजनाओं का लाभ उठाते हैं और बाकी मुँह ताकता रहता है।ऐसी ही कुछ पैक्स घोटालें की भी हालात किसानों के लिए कोढ बना हुआ है। उपस्थित किसान कृष्ण नन्दन सिंह,शिवअवतार सिंह,रामविनोद सिंह,मनोज सिंह,टूना सिंह,सियाराम सिंह रोहित सिंह,वसंत सिंह आदि के कथनानुसार किसी भी तरह का लाभ या अनुदान जो सरकारी माध्यमों से मिलते हैं तो प्रथम तो हमें जानकारी ही नहीं मिलती है।हाँ यदा कदा मुखिया जी की कृपा होने पर कुछ कुछ मिल जाता है बाकी हालात तेघड़ा प्रखण्डों का भी बरौनी प्रखण्डों से भिन्न नही है।अब सवाल यह उठता है कि इन बिचारों के तारणहार कहाँ छुप गए हैं क्योंकि आज जो गरीबों को अमीर बनाने के लिए नेता आए वो स्वयं तो अमीर बड़े झटके के साथ बन जाते हैं और बिचारे गरीब और भी गरीबी के करीबी बन सिसकते हुए दम तोड़ने के सिवाय अन्य कोई विकल्प नहीं।
बिचौलियों के बीच फंसे किसान
अरूण कुमार मटिहानी बेगूसराय जब तक जातिवाद और निरक्षरता कायम है तब तक रोटी पकती रहेगी बिचौलियों की,जी हाँ ऐसी ही कुछ त्रासदी के शिकार होते आ रहे हैं गरीब किसान परिवार बरौनी प्रखण्ड के ग्राम पंचायत मल्हपुर बिशनपुर जो कि नगर परिषद बिहट और असुरारी मौजे मे कुछेक हिस्सा में पड़ता है। इस कारण वहाँ के किसान सरकारी अनुदानों से वंचित रह जाते हैं जब ग्रामीण किसी भी बात की जानकारी के लिए ब्लॉक जाते हैं तो ब्लॉक अधिकारी उन्हें नगर परिषद कार्यालय जाने को कहते हैं और नगर परिषद जाने पर ब्लॉक जाने के लिए कहा जाता है,अब बिचारे ये किसान जाएं तो जाएं कहाँ इनका मार्ग दर्शक शायद कोई नहीं है।अगर किसी भी तरह की कोई जानकारी मिल भी गई तो बिचौलियों के हाथ आने से कुछ हासिल होने से रहे इन सभी समस्याओं की जड़ हारे और जीते हुए मुखिया,सरपंच एवं वार्ड सदस्य की महानता का दुष्परिणाम ही तो है जो प्रत्याशी चुनाव जीत कर पदभार संभालते हैं उनसे हारे हुए प्रत्याशी अपना साँठ-गाँठ बिठाकर ब्लॉक और नगर परिषद के अधिकारियों से भी साँठ-गाँठ बिठाकर निरीह किसानों के हकों पर कुण्डली मारकर बैठ जाते हैं।नतीजा साफ़ ही है फिर तो जिसे किसी भी तरह के अनुदानों से वंचित रहना उनकी नियति ही है,यहाँ बिजली,पानी आदि की व्यवस्था तो नदारद ही माना जाता है बिजली 10-12 घंटे रहती तो है ही परन्तु उपभोक्ताओं को डीम रोशनी में रहने की आदत सी पड़ गई है और गैर उपभोक्ताओं के घर हीटर जल रहे होते हैं और तो और सही ढंग से बिजली का पोल और बिजली के तारों का ढीला रहना भी खतरनाक साबित हुआ है।कइयों बार आश्रितों को ज्ञानाभाव के कारण लाभ नहीं मिल पाता है,यहाँ बिजली पोल के रास्त से कम और बाँस को पोल के उपयोग में ज़्यादा लाते हैं जो मौत का जाल सी प्रतीत होता है।मल्हीपुर बिसनपुर निवासी श्रीमती आभा सिंह ने यह भी जानकारी दी कि ग्रामीण सड़क योजना का भी बद्दत्तर हाल है।इन्दिरा आवास योजनाओं का लाभ भी जिन्हें मिलना चाहिए वे तो टकटकी लगाए रहते हैं और लाभ मिलता उन्हें है जो किसी भी मायने मे उक्त लाभ के हकदार ही नहीं हैं और इस तरफ़ किसी भी अधिकारी का कोई ध्यान नहीं है कारण मिलीभगतहै। अब गौर तलब है कि एक ही परिवार के तीन तीन सदस्यों ने अलग अलग ठीकानो पर तीन तीन इन्दिरा आवास योजनाओं का लाभ उठाते हैं और बाकी मुँह ताकता रहता है।ऐसी ही कुछ पैक्स घोटालें की भी हालात किसानों के लिए कोढ बना हुआ है। उपस्थित किसान कृष्ण नन्दन सिंह,शिवअवतार सिंह,रामविनोद सिंह,मनोज सिंह,टूना सिंह,सियाराम सिंह रोहित सिंह,वसंत सिंह आदि के कथनानुसार किसी भी तरह का लाभ या अनुदान जो सरकारी माध्यमों से मिलते हैं तो प्रथम तो हमें जानकारी ही नहीं मिलती है।हाँ यदा कदा मुखिया जी की कृपा होने पर कुछ कुछ मिल जाता है बाकी हालात तेघड़ा प्रखण्डों का भी बरौनी प्रखण्डों से भिन्न नही है।अब सवाल यह उठता है कि इन बिचारों के तारणहार कहाँ छुप गए हैं क्योंकि आज जो गरीबों को अमीर बनाने के लिए नेता आए वो स्वयं तो अमीर बड़े झटके के साथ बन जाते हैं और बिचारे गरीब और भी गरीबी के करीबी बन सिसकते हुए दम तोड़ने के सिवाय अन्य कोई विकल्प नहीं।



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