नयी दिल्ली 08 मई, संसद की एक समिति ने देश के ग्रामीण इलाकों में स्वछता अभियान की धीमी गति पर चिंता जताते हुए कहा है कि गत डेढ़ वर्ष में मात्र साढ़े आठ प्रतिशत इलाकों को ही स्वच्छ बनाया जा सका है लेकिन उसने सामुदायिक स्वच्छता परिसरों के निर्माण में तेज गति की प्रशंसा भी की है। कांग्रेस के के़ वेणुगोपाल की अध्यक्षता वाली ग्रामीण विकास मंत्रालय की स्थायी संसदीय समिति ने पेयजल एवं स्वछता विभाग से संबंधित अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि दो अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान शुरू होने से पहले तक 42.05 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों को स्वच्छ बनाया गया था लेकिन उसके बाद 18 मार्च 2016 तक केवल 50.74 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों को स्वच्छ बनाया गया।
समिति ने इस बात पर भी गहरी निराशा व्यक्त की है कि इन डेढ़ वर्षों में केवल 9 जिलों के 155 प्रखंडों के 50 हज़ार 208 गाँव को ही खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि हिमाचल प्रदेश , पश्चिम बंगाल, मेघालय, गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ तथा राजस्थान ने तो इस दिशा में अच्छा काम किया है लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार और आंध्र प्रदेश बढ़िया काम नहीं कर रहें हैं। रिपोर्ट के अनुसार बिहार के 30070 गाँव में से मात्र 233 तथा उत्तर प्रदेश के 96461 गांव में से मात्र 383 गाँव को खुले में शौच से मुक्त बनाया गया है। समिति ने कहा है कि 2019 तक देश के सभी ग्रामीण इलाकों को स्वच्छ बनाने के लिए न केवल ग्रामीण विकास मंत्रालय बल्कि राज्य सरकारों को भी काफी कुछ करने की जरूरत है। समिति के अनुसार डेढ़ वर्षों में करीब तीस गुना अधिक सामुदायिक स्वच्छता परिसर बनाये गए। वर्ष 2014-15 में 1109 सामुदायिक स्वछता परिसर बनाये गए थे लेकिन 2015-16 में इन परिसरों की संख्या बढ़कर 30256 हो गयी। इनमें से सर्वाधिक 7141 परिसर महाराष्ट्र में बनाये गए।

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